देश की सबसे प्रतिष्ठित सरकारी सेवा आईएएस में चयनित हुए अभ्यर्थी भी किस तरह से नियमों के तहत आवश्यक मानी जाने वाली ट्रेनिंग से विमुख रहते हैं इसका पता इसी बात से चलता है कि केंद्र को इस बारे में स्पष्ट निर्देश देने को बाध्य होना पड़ा है कि जो भी अधिकारी इसको समय से पूरा नहीं करते हैं उन्हें सेवा के दौरान मिलने वाले लाभों से वंचित रखा जाये और उन्हें ट्रेनिंग लेने वालों के बराबर न माना जाये. आख़िर क्या कारण है कि अपने लम्बे सेवा काल में ये अधिकारी इस तरह से बर्ताव करते हैं और जो कुछ उन्हें पता होना चाहिए उसे भी वे जानने के इच्छुक नहीं रहते हैं ? क्या सरकार उनके बिना बात के ही उन्हें ऐसी ट्रेनिंग देने का प्रयास करती रहती है या फिर कुछ अन्य कारणों से ये अधिकारी अपने को इस तरह की ट्रेनिंग आदि से ऊपर समझने लगते हैं ? जहाँ तक सरकार के पक्ष को देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि समय समय पर आने वाली नयी नयी प्रशासनिक चुनौतियों से निपटने के लिए ही इन अधिकारियों को तैयार रखना ही इस पूरा कार्यक्रम का आधार होता है पर जब भी इस पर उचित ध्यान नहीं दिया जाता है तभी समस्याएं सामने आने लगती हैं.
आज देश में हर क्षेत्र में जिस तरह से राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ता ही जा रहा है उसे देखते हुए कई बार कुछ अधिकारी अपने को किसी राजनैतिक गुरु के साथ जोड़ लेते हैं और उस स्थिति में उनको इस तरह के किसी भी काम के लिए राज्य सरकारें छोड़ती ही नहीं है जिससे वे अपने को सुरक्षित रखते हुए ट्रेनिंग से बच जाया करते हैं ? पर इस तरह से किसी भी ट्रेनिंग आदि से बचकर भागने से किसी को क्या मिलता है यह तो किसी को नहीं पता पर देश के जिन बहुमूल्य संसाधनों से पैसे जुटाकर इनकी ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाती है वह बेकार हो जाती है. इसके लिए सरकार को कुछ ऐसे संशोधन करने चाहिए जिससे सभी के लिए रोटेशन के आधार पर ट्रेनिंग आवश्यक हो जाये और कोई भी अधिकारी इससे बचा न रह सके ? जब तक इस तरह की ट्रेनिंग को बाध्यकारी नहीं बनाया जायेगा तब तक इन बड़े बाबुओं की नकेल नहीं कसी जा सकेगी ? ऐसा भी नहीं है कि पहले सरकारों ने इस बारे में कुछ सोचा नहीं होगा पर जब निर्णय लेने की बात आती है तो सरकार को इन बड़े बाबुओं की बात तो रखनी ही पड़ती है और जब देश का पूरा प्रशासनिक ढांचा इनके इर्द गिर्द ही घूमता है तो कौन इनके गले में घंटी बाँधने का साहस कर सकेगा ?
अब यह व्यवस्था ऐसे ही नहीं चलनी चाहिए क्योंकि इसका सबसे बड़ा नुकसान देश को होता है जब हर जगह पर समयानुसार निरंतर ट्रेनिंग की व्यवस्था है तो किसी भी स्थिति में इन बड़े बाबुओं को इससे छूट कैसी दी जा सकती है ? क्या १९८५ में चुने गए अधिकारी कंप्यूटर के बारे में इतना जानते थे जितना आज उनको इन्हीं विशेष ट्रेनिंग्स के ज़रिये सिखाया गया है ? क्या देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव आदि के सिलसिले में आने जाने वाले अधिकारियों के लिए देश के बारे में और अधिक जानने की आवश्यकता नहीं है ? क्यों ये आज एक स्थान पर ठहर जाना चाहते हैं ? कायदे से नियम ऐसे होने चाहिए कि इनके तय सेवा वर्ष पूरे होने पर इन्हें इन ट्रेनिंग केन्द्रों में रिपोर्ट करना आवश्यक कर दिया जाये और उस समय के पूरा होने पर इन्हें अपने काडर से स्वतः ही ट्रेनिंग सेंटर में जाना आवश्यक कर दिया जाये और जब वहां से ट्रेनिंग का प्रमाणपत्र लेकर ये वापस आयें तो ही इन्हें राज्य सरकार अपने अनुसार तैनाती दे सके. पर हर बात में अधिकारों के लिए चिल्लाने वाली राज्य सरकारें इस बात को नहीं होने देना चाहेंगीं क्योंकि इससे उन्हें देश के संघीय ढांचे पर प्रहार होते दिखाई देगा और वे अपने चहेते अधिकारियों को अपने अनुसार हांकती रहेंगीं ? इससे उनका कुछ तात्कालिक भला भले ही हो जाये पर देश के लिए अधिकारियों को तैयार करने की प्रक्रिया को झटका लगना तय ही है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आज देश में हर क्षेत्र में जिस तरह से राजनैतिक हस्तक्षेप बढ़ता ही जा रहा है उसे देखते हुए कई बार कुछ अधिकारी अपने को किसी राजनैतिक गुरु के साथ जोड़ लेते हैं और उस स्थिति में उनको इस तरह के किसी भी काम के लिए राज्य सरकारें छोड़ती ही नहीं है जिससे वे अपने को सुरक्षित रखते हुए ट्रेनिंग से बच जाया करते हैं ? पर इस तरह से किसी भी ट्रेनिंग आदि से बचकर भागने से किसी को क्या मिलता है यह तो किसी को नहीं पता पर देश के जिन बहुमूल्य संसाधनों से पैसे जुटाकर इनकी ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाती है वह बेकार हो जाती है. इसके लिए सरकार को कुछ ऐसे संशोधन करने चाहिए जिससे सभी के लिए रोटेशन के आधार पर ट्रेनिंग आवश्यक हो जाये और कोई भी अधिकारी इससे बचा न रह सके ? जब तक इस तरह की ट्रेनिंग को बाध्यकारी नहीं बनाया जायेगा तब तक इन बड़े बाबुओं की नकेल नहीं कसी जा सकेगी ? ऐसा भी नहीं है कि पहले सरकारों ने इस बारे में कुछ सोचा नहीं होगा पर जब निर्णय लेने की बात आती है तो सरकार को इन बड़े बाबुओं की बात तो रखनी ही पड़ती है और जब देश का पूरा प्रशासनिक ढांचा इनके इर्द गिर्द ही घूमता है तो कौन इनके गले में घंटी बाँधने का साहस कर सकेगा ?
अब यह व्यवस्था ऐसे ही नहीं चलनी चाहिए क्योंकि इसका सबसे बड़ा नुकसान देश को होता है जब हर जगह पर समयानुसार निरंतर ट्रेनिंग की व्यवस्था है तो किसी भी स्थिति में इन बड़े बाबुओं को इससे छूट कैसी दी जा सकती है ? क्या १९८५ में चुने गए अधिकारी कंप्यूटर के बारे में इतना जानते थे जितना आज उनको इन्हीं विशेष ट्रेनिंग्स के ज़रिये सिखाया गया है ? क्या देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव आदि के सिलसिले में आने जाने वाले अधिकारियों के लिए देश के बारे में और अधिक जानने की आवश्यकता नहीं है ? क्यों ये आज एक स्थान पर ठहर जाना चाहते हैं ? कायदे से नियम ऐसे होने चाहिए कि इनके तय सेवा वर्ष पूरे होने पर इन्हें इन ट्रेनिंग केन्द्रों में रिपोर्ट करना आवश्यक कर दिया जाये और उस समय के पूरा होने पर इन्हें अपने काडर से स्वतः ही ट्रेनिंग सेंटर में जाना आवश्यक कर दिया जाये और जब वहां से ट्रेनिंग का प्रमाणपत्र लेकर ये वापस आयें तो ही इन्हें राज्य सरकार अपने अनुसार तैनाती दे सके. पर हर बात में अधिकारों के लिए चिल्लाने वाली राज्य सरकारें इस बात को नहीं होने देना चाहेंगीं क्योंकि इससे उन्हें देश के संघीय ढांचे पर प्रहार होते दिखाई देगा और वे अपने चहेते अधिकारियों को अपने अनुसार हांकती रहेंगीं ? इससे उनका कुछ तात्कालिक भला भले ही हो जाये पर देश के लिए अधिकारियों को तैयार करने की प्रक्रिया को झटका लगना तय ही है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें