जन लोकपाल बिल के लिए आन्दोलन चला रही टीम अन्ना के मुख्य रणनीतिकार अरविन्द केजरीवाल ने ग्रेटर नोयडा में मतदाताओं को जागरूक करते हुए की जा रही अपनी एक जनसभा में जो कुछ भी कहा उसकी उस भाषा में कोई आवश्यकता नहीं थी. आज कुछ इस तरह का चलन बढ़ता ही जा रहा है कि अपनी बात को मज़बूती से कहने के स्थान पर विवादित तरीके से कहा जाने लगा है जिससे इस पूरे प्रकरण में मुख्य मुद्दे पीछे छूट जाया करते है और बेकार की बातों में देश की वो ऊर्जा नष्ट होने लगती है जिसको ठीक से उपयोग किया जाये तो वह काफी कुछ करने की संभावनाएं रखती है. किसी भी बात को कहने के लिए हमारे लोकतंत्र ने सभी को पूरी छूट दे रखी है पर जब शिक्षित और देश भर में अभियान चला रहे इन लोगों को भी इस तरह की बातें करनी पड़ें तो ऐसा लगता है कि कहीं से उनमें हताशा घर कर रही है. जनता के मन में देश के राजनैतिक ढांचे के लिए रोष है पर जब बात संसद की आती है तो उसकी सर्वोच्चता को जनता आज भी मानती है क्योंकि यह जनता की आवाज़ और पसंद से ही चलता है. अपनी बात कहने का मतलब अपनी बात को सही ठहराना ही होना चाहिए न कि दूसरों पर इस तरह से उंगली उठाई जाये कि मूल मुद्दे कहीं दूर छिटक कर जा गिरें. अन्ना के आन्दोलन को जनता की शक्ति मिली हुई है और किसी भी स्थिति में किसी को भी इस आन्दोलन की मूल भावना से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं है.
यह सही है कि संसद में बहुत सारे ऐसे तत्व भी पहुँच जाया करते हैं जिनकी जगह जेल में होनी चाहिए बल्कि यह सभी जानते हैं कि बहुत सारे लोग जेलों में रहते हुए ही चुनाव जीत जाते हैं ? अब एक परिपक्व लोकतंत्र में जो कुछ आसान है उसी का ये तत्व लाभ उठा लेते हैं जिससे आज संसद/विधान मंडलों में बाहुबलियों और दागी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है ? देश की राजधानी में बैठकर कुछ भी कहना बहुत आसान होता है पर जब दूर दराज़ के क्षेत्रों में काम करना पड़ता है तो सही तस्वीर और कठिनाइयाँ सामने आने लगती है. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आरोप लगाना बहुत आसान है पर मौजूदा कानून में एक समय सीमा में उन्हें सज़ा दिलवा पाना एक दूसरी बात ही है. अगर जनता का जुड़ाव टीम अन्ना से हुआ तो उसके पीछे मुख्य कारण यही रहा कि हर एक हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त है और उसे लगा कि बहुत दिनों के बाद एक सही तरीके से चलाया जाने वाला आन्दोलन सामने आया है. नि:संदेह केजरीवाल ने जो कुछ भी कहा है उससे संसद की अवमानना का केस बनने वाला है और तब यही लोग यह कहते घूमेंगें कि उन्होंने ग़लत क्या कहा था पर संसद की सर्वोच्चता कि बनाये रखने एक लिए बजट सत्र में कोई न कोई केजरीवाल के ख़िलाफ़ अवमानना नोटिस ज़रूर देगा और तब उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी.
यह सही है कि देश के राजनैतिक दल भी अपनी कुछ सीटें जीतने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि वे भी बाहुबलियों के इस तरह के खेल में उलझे हुए हैं ? ऐसा नहीं है कि इन लोगों के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है पर एक दल अगर दागियों को छोड़ता है तो दूसरा उन्हें लपक लेता है ऐसा कब तक चलता रहेगा ? देश के लोगों को अब यह सोचना ही होगा कि आख़िर कब तक ये बाहुबली जनता के अधिकारों का हनन करते रहेंगें और विधायिका में पहुँचते रहेंगें ? किसी एक के करने से कुछ भी नहीं होने वाला है क्योंकि ये सब इक्के दुक्के स्तर पर होता है और जो आज किसी की आँख के तारे हैं वे अगले पल ही किरकिरी बन जाते हैं ? संसद पर जो आरोप लगा है उसमें कुछ हद तक सच्चाई भी है और यदि नेताओं को देश, संसद और अपनी गरिमा की इतनी ही चिंता है तो उन्हें कम से कम आपराधिक मामले में वांछित किसी भी व्यक्ति को अपने टिकट नहीं देने चाहिए और देश के लिए जहाँ से भी इस तरह के असामाजिक पर मज़बूत तत्व चुनाव मैदान में हों वहां पर अपने सयुक्त प्रत्याशी को खड़ा करना चाहिए जिससे जनता के सामने स्पष्ट चुनाव करने का विकल्प भी उपलब्ध रहे ? जो कुछ भी टीम अन्ना चाहती है वह देश हित में है पर कई बार उसका तरीका ठीक नहीं होता है आज वो इस तरह की हरकतें करते हैं तो कल को कोई अन्य भी इसी तरह से उन पर भी आरोप लगा सकता है. किसी भी स्थिति में शालीनता को नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि इसके बिना समाज का ताना बाना बिखरने लगता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यह सही है कि संसद में बहुत सारे ऐसे तत्व भी पहुँच जाया करते हैं जिनकी जगह जेल में होनी चाहिए बल्कि यह सभी जानते हैं कि बहुत सारे लोग जेलों में रहते हुए ही चुनाव जीत जाते हैं ? अब एक परिपक्व लोकतंत्र में जो कुछ आसान है उसी का ये तत्व लाभ उठा लेते हैं जिससे आज संसद/विधान मंडलों में बाहुबलियों और दागी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है ? देश की राजधानी में बैठकर कुछ भी कहना बहुत आसान होता है पर जब दूर दराज़ के क्षेत्रों में काम करना पड़ता है तो सही तस्वीर और कठिनाइयाँ सामने आने लगती है. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आरोप लगाना बहुत आसान है पर मौजूदा कानून में एक समय सीमा में उन्हें सज़ा दिलवा पाना एक दूसरी बात ही है. अगर जनता का जुड़ाव टीम अन्ना से हुआ तो उसके पीछे मुख्य कारण यही रहा कि हर एक हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त है और उसे लगा कि बहुत दिनों के बाद एक सही तरीके से चलाया जाने वाला आन्दोलन सामने आया है. नि:संदेह केजरीवाल ने जो कुछ भी कहा है उससे संसद की अवमानना का केस बनने वाला है और तब यही लोग यह कहते घूमेंगें कि उन्होंने ग़लत क्या कहा था पर संसद की सर्वोच्चता कि बनाये रखने एक लिए बजट सत्र में कोई न कोई केजरीवाल के ख़िलाफ़ अवमानना नोटिस ज़रूर देगा और तब उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी.
यह सही है कि देश के राजनैतिक दल भी अपनी कुछ सीटें जीतने के चक्कर में यह भूल जाते हैं कि वे भी बाहुबलियों के इस तरह के खेल में उलझे हुए हैं ? ऐसा नहीं है कि इन लोगों के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता है पर एक दल अगर दागियों को छोड़ता है तो दूसरा उन्हें लपक लेता है ऐसा कब तक चलता रहेगा ? देश के लोगों को अब यह सोचना ही होगा कि आख़िर कब तक ये बाहुबली जनता के अधिकारों का हनन करते रहेंगें और विधायिका में पहुँचते रहेंगें ? किसी एक के करने से कुछ भी नहीं होने वाला है क्योंकि ये सब इक्के दुक्के स्तर पर होता है और जो आज किसी की आँख के तारे हैं वे अगले पल ही किरकिरी बन जाते हैं ? संसद पर जो आरोप लगा है उसमें कुछ हद तक सच्चाई भी है और यदि नेताओं को देश, संसद और अपनी गरिमा की इतनी ही चिंता है तो उन्हें कम से कम आपराधिक मामले में वांछित किसी भी व्यक्ति को अपने टिकट नहीं देने चाहिए और देश के लिए जहाँ से भी इस तरह के असामाजिक पर मज़बूत तत्व चुनाव मैदान में हों वहां पर अपने सयुक्त प्रत्याशी को खड़ा करना चाहिए जिससे जनता के सामने स्पष्ट चुनाव करने का विकल्प भी उपलब्ध रहे ? जो कुछ भी टीम अन्ना चाहती है वह देश हित में है पर कई बार उसका तरीका ठीक नहीं होता है आज वो इस तरह की हरकतें करते हैं तो कल को कोई अन्य भी इसी तरह से उन पर भी आरोप लगा सकता है. किसी भी स्थिति में शालीनता को नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि इसके बिना समाज का ताना बाना बिखरने लगता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भाषा का तर्क माना जा सकता है, लेकिन सार है.
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