यूपी के सीएम बनने के बाद जिस तरह से अखिलेश यादव की कैबिनेट ने अपने पहले ही फ़ैसले में अपने चुनावी वायदों पर अमल करना शुरू किया उससे लगता है कि सपा ने अपनी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है. किसी भी दल या सरकार के लिए अपनी सरकार बचाते हुए आगे आने वाले चुनावों में अपने को मज़बूत करना प्राथमिकता में होता है पर अखिलेश सरकार द्वारा जिस तरह से सभी छात्रों को टैबलेट और लैपटॉप देने की नीति पर अमर करना शुरू किया गया है उसमें प्रदेश की वास्तविक स्थिति से बहुत समस्या आ सकती है. प्रदेश में अभी भी बहुत जगहों पर बिजली पहुंची ही नहीं है क्योंकि केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी राजीव गाँधी विद्युतीकरण योजना को पिछले बसपा सरकार ने इसलिए कोई भाव नहीं दिया था कि उसमें राजीव गाँधी का नाम जुड़ा हुआ था ? इन टैबलेट और लैपटॉप को चलाने के लिए दूर दराज़ के स्थानों पर जब बिजली ही नहीं है तो इनका उपयोग छात्र किस तरह से कर पायेंगें यह अभी भी भविष्य के गर्भ में है ? इस नीति को एक संशोधन के साथ लागू किया जा सकता है कि जहाँ पर विद्युत आपूर्ति की स्थिति ठीक नहीं है वहां पर छात्रों को इसके मूल्य के बराबर धनराशि देने का विकल्प भी दिया जाये जिससे उनके लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता सही दिशा में खर्च हो सके वरना ये सभी उपकरण औने पौने दामों पर बाज़ार में बिकते हुए नज़र आयेंगें ?
सरकार को काम करने की पूरी छूट होती है पर इस तरह की लोकलुभावन नीतियां राज्य के अर्थ तंत्र पर भारी बोझ डालती हैं ? कोई भी सरकार यह अधिकार रखती है तो जनता के लिए नयी नयी नीतियां बनाये पर अखिलेश उस पीढ़ी के नेता नहीं हैं जो यह सब करना अपनी मजबूरी समझती है उनसे प्रदेश देश और सभी को यह आशा है कि वे कुछ हटकर काम करेंगें. उनके पास आज विचारशील लोगों की अच्छी संख्या है और इस बात पर उन्हें फिर से विचार करना चाहिए कि जो भी नीतियां बनायीं जाएँ उनसे प्रदेश के युवाओं को लम्बे समय तक आर्थिक विकल्प उपलब्ध रहें. जिस धन से आज प्रदेश सरकार इन टैबलेट और लैपटॉप को खरीदने जा रही है आने वाले समय में अगर इस धनराशि से एक ऐसा फंड बना दिया जाये जिससे आने वाले समय में आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण व्यावसायिक पढ़ाई नहीं कर पाते हैं उनको लोन दिया जा सके तो इससे प्रदेश वास्तव में तरक्की के रास्ते पर दौड़ने लगेगा क्योंकि आज आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोग मंहगी होती शिक्षा नहीं ले पाते हैं. वैस एक काम और भी किया जा सकता है कि हर विद्यार्थी के लिए सरकार यह विकल्प उपलब्ध करा दे कि उसे यह लोन मिल सकता है जिससे किसी भी जाति और वर्ग के बच्चे उच्च शिक्षा के सपने आसानी से पूरे कर सकें ? प्रदेश में कानून, सड़क बिजली जैसी समस्याओं पर विचार करने के लिए चरण बढ तरीक से काम होना चाहिये क्योंकि इससे ही गाँवों तक तरक्की के रास्ते खुलेंगें. अखिलेश के पास पूरा समय और बहुमत है तो इस समय उनके पास अवसर भी हैं कि प्रदेश में व्याप्त अकर्मण्यता के कैंसर से भी वे सख्ती से निपटें उनके द्वारा प्रदेश के हित में लिए गए किसी भी फ़ैसले से होने वाली किसी भी असुविधा को जनता इलाज समझ कर आसानी से मान लेगी.
नीतियां घोषित करना आसान है पर उन्हें बिना भ्रष्टाचार के लागू कर पाना बहुत ही मुश्किल काम है क्योंकि जब तक सरकारी खरीद में पारदर्शिता नहीं लायी जाएगी तब तक कोई भी नीति भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगी. जब बात ३००० हज़ार करोड़ की खरीद से जुड़ी हुई हो तो सरकार को और भी सावधानी से काम करने की ज़रुरत पड़ेगी. एक समय में यूपी सरकार के आँखों के तारे अपट्रान का आज क्या हाल है कोई नहीं जनता है पर यदि टैबलेट और लैपटॉप की खरीद के लिए इस जैसी किसी जिन्दा या संघर्षशील कम्पनी को चुना जाये और सारा काम पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाये तो प्रदेश सरकार को दोहरा लाभ हो सकता है जहा एक तरफ उसकी नीति पर अमल हो जायेगा वहीं दूसरी तरफ इतने बड़े पैमाने पर होने वाली खरीद से किसी आर्थिक संकट से जूझती हुई कम्पनी को जीवन दान भी मिल सकता है ? एक समय अपट्रान जैसी कम्पनी भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाले टीवी बनाया करती थी पर बाद में नीति गत ख़ामियों के चलते ही इसके पास काम ही नहीं बचा ऐसे में सरकार के मुखिया होने के नाते अखिलेश से यह उम्मीद करना ज्यादा तो नहीं होगा कि जो काम वे अपने दम पर कर सकते हैं कम से कम उनके बारे में काम तो शुरू कर ही दें. प्रदेश को जिस तरह से मज़बूत नेतृत्व देने वाले मुख्यमंत्री की आवश्यकता है वैसे ही उसे नीतियों पर सख्ती से काम करने वाले अधिकारियों की भी ज़रुरत है. पिछले पांच वर्षों में चाटुकार अफसरों ने जिस तरह से प्रदेश को अपने चंगुल में जकड़ा और बसपा सरकार में वे मंत्रियों से भी ताक़तवर हो गए अब उनको भी काम करने की आदत डालनी ही होगी और सार्थक नीतियां बनाकर विकास की गति को आगे बढ़ने वाले अफसरों को पूरे मनोयोग से काम करने की छूट भी नयी सरकार को देनी ही होगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सरकार को काम करने की पूरी छूट होती है पर इस तरह की लोकलुभावन नीतियां राज्य के अर्थ तंत्र पर भारी बोझ डालती हैं ? कोई भी सरकार यह अधिकार रखती है तो जनता के लिए नयी नयी नीतियां बनाये पर अखिलेश उस पीढ़ी के नेता नहीं हैं जो यह सब करना अपनी मजबूरी समझती है उनसे प्रदेश देश और सभी को यह आशा है कि वे कुछ हटकर काम करेंगें. उनके पास आज विचारशील लोगों की अच्छी संख्या है और इस बात पर उन्हें फिर से विचार करना चाहिए कि जो भी नीतियां बनायीं जाएँ उनसे प्रदेश के युवाओं को लम्बे समय तक आर्थिक विकल्प उपलब्ध रहें. जिस धन से आज प्रदेश सरकार इन टैबलेट और लैपटॉप को खरीदने जा रही है आने वाले समय में अगर इस धनराशि से एक ऐसा फंड बना दिया जाये जिससे आने वाले समय में आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण व्यावसायिक पढ़ाई नहीं कर पाते हैं उनको लोन दिया जा सके तो इससे प्रदेश वास्तव में तरक्की के रास्ते पर दौड़ने लगेगा क्योंकि आज आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोग मंहगी होती शिक्षा नहीं ले पाते हैं. वैस एक काम और भी किया जा सकता है कि हर विद्यार्थी के लिए सरकार यह विकल्प उपलब्ध करा दे कि उसे यह लोन मिल सकता है जिससे किसी भी जाति और वर्ग के बच्चे उच्च शिक्षा के सपने आसानी से पूरे कर सकें ? प्रदेश में कानून, सड़क बिजली जैसी समस्याओं पर विचार करने के लिए चरण बढ तरीक से काम होना चाहिये क्योंकि इससे ही गाँवों तक तरक्की के रास्ते खुलेंगें. अखिलेश के पास पूरा समय और बहुमत है तो इस समय उनके पास अवसर भी हैं कि प्रदेश में व्याप्त अकर्मण्यता के कैंसर से भी वे सख्ती से निपटें उनके द्वारा प्रदेश के हित में लिए गए किसी भी फ़ैसले से होने वाली किसी भी असुविधा को जनता इलाज समझ कर आसानी से मान लेगी.
नीतियां घोषित करना आसान है पर उन्हें बिना भ्रष्टाचार के लागू कर पाना बहुत ही मुश्किल काम है क्योंकि जब तक सरकारी खरीद में पारदर्शिता नहीं लायी जाएगी तब तक कोई भी नीति भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगी. जब बात ३००० हज़ार करोड़ की खरीद से जुड़ी हुई हो तो सरकार को और भी सावधानी से काम करने की ज़रुरत पड़ेगी. एक समय में यूपी सरकार के आँखों के तारे अपट्रान का आज क्या हाल है कोई नहीं जनता है पर यदि टैबलेट और लैपटॉप की खरीद के लिए इस जैसी किसी जिन्दा या संघर्षशील कम्पनी को चुना जाये और सारा काम पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाये तो प्रदेश सरकार को दोहरा लाभ हो सकता है जहा एक तरफ उसकी नीति पर अमल हो जायेगा वहीं दूसरी तरफ इतने बड़े पैमाने पर होने वाली खरीद से किसी आर्थिक संकट से जूझती हुई कम्पनी को जीवन दान भी मिल सकता है ? एक समय अपट्रान जैसी कम्पनी भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाले टीवी बनाया करती थी पर बाद में नीति गत ख़ामियों के चलते ही इसके पास काम ही नहीं बचा ऐसे में सरकार के मुखिया होने के नाते अखिलेश से यह उम्मीद करना ज्यादा तो नहीं होगा कि जो काम वे अपने दम पर कर सकते हैं कम से कम उनके बारे में काम तो शुरू कर ही दें. प्रदेश को जिस तरह से मज़बूत नेतृत्व देने वाले मुख्यमंत्री की आवश्यकता है वैसे ही उसे नीतियों पर सख्ती से काम करने वाले अधिकारियों की भी ज़रुरत है. पिछले पांच वर्षों में चाटुकार अफसरों ने जिस तरह से प्रदेश को अपने चंगुल में जकड़ा और बसपा सरकार में वे मंत्रियों से भी ताक़तवर हो गए अब उनको भी काम करने की आदत डालनी ही होगी और सार्थक नीतियां बनाकर विकास की गति को आगे बढ़ने वाले अफसरों को पूरे मनोयोग से काम करने की छूट भी नयी सरकार को देनी ही होगी.
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