केंद्रीय बजट में जिस तरह से विभिन्न क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में एक नए सिरे से विचार कर इस पूरी तरह से सीधे लाभार्थियों तक पहुँचाने की जिस तरह से वक़ालत की गयी है उससे यही लगता है कि सरकार ने इस पूरे क्षेत्र को सुधारने का मन बना रखा है क्योंकि जिस तरह से विभिन्न मदों में दी जाने वाली सब्सिडी से बिचौलियों को लाभ मिलता है और आम लोगों के लिए यह एक बुरा सपना जैसा ही हो जाता है उस स्थिति में ऐसा कुछ किये जाने की आवश्यकता थी जो इस क्षेत्र में सुधार की शुरुवात तो कर ही सके ? आज देश के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सब्सिडी में ही चला जाता है जबकि उसके सही प्रबंधन से यह धनराशि किसी अन्य कल्याणकारी योजना में लगायी जा सकती है. सब्सिडी की राजनीति कुछ ऐसा रूप ले चुकी है कि कोई भी राजनैतिक दल चाहते हुए भी इसके बारे में खुलकर बात नहीं करना चाहता जबकि यह देश की आर्थिक सेहत से जुड़ा हुआ मामला है. केवल कुछ लोकप्रिय क़दमों के चलते कोई भी दल किसी भी स्थिति में इस क्षेत्र को छेड़ना नहीं चाहता है जबकि आज इस पर प्राथमिकता के आधार पर काम करने की ज़रुरत है क्योंकि इस पर जिस तरह से राजनीति हावी होती जा रही है उसके बाद आने वाले समय में सरकारों के पास धन ही नहीं होगा जो इस तरह की सब्सिडी की व्यवस्था कर सके ?
कृषि और खाद्य क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी की आवश्यकता तो हमेशा ही रहेगी पर इस क्षेत्र से किसी भी तरह का कर /राजस्व सरकार को नहीं मिलता है ? जिस तरह से बड़ी मात्रा में इस क्षेत्र के लिए सब्सिडी दी जाती है फिर भी आवश्यकता पड़ने पर राज्य सरकारें इस बात पर अंकुश नहीं लगा पाती हैं कि उनकी संस्थाओं के माध्यम से बिकने वाली कृषि उपयोग की सामग्री पर कोई कालाबाजारी न होने पाए तो जिस उद्देश्य से यह सब्सिडी दी जाती है वह पूरी तरह से विफल हो जाता है. क्या केंद्र से मिलने वाली इस तरह की कोई भी सहायता पर राज्यों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती है ? हर वर्ष पूरे देश में जब खाद की आवश्यकता होती है तो किसानों को वह मिल ही नहीं पाती और क्या वह खुले बाज़ार से सरकारी खाद विक्रेताओं से कालाबाज़ारी के जरिये इसे खरीदने के लिए मजबूर नहीं होता है ? इस बात की ज़िम्मेदारी आख़िर किस पर डाली जाए कि यह सब्सिडी सही लाभार्थी तक पहुँच जाये क्या आज एक समय में केंद्र के पास ऐसा कोई कानून है जिसके तहत वह किसानों को सीधे यह लाभ दे सके ? उसके ऐसा करने पर अकर्मण्य राज्यों को यह लगने लगता है कि यह देश के संघीय ढांचे पर चोट है और राज्यों के अधिकारों का हनन पर जब किसान अपनी ज़रूरतों के लिए भटकता रहता है तो इन्हें यह नहीं दिखाई देता है कि किसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
आज देश को समग्र रूप से सोचने की ज़रुरत है केवल अच्छी विकास दर से आगे जा रहे राज्यों को सोचकर बनायीं गयी कोई भी नीति पूरे देश को किसी भी तरह से आगे नहीं ले जा पायेगी. जिस तरह से ५० जिलों में मोबाइल फर्टीलायज़र प्रबंध को प्रायोगिक तौर पर लागू करने की बात वित्त मंत्री ने कहा है उसके लिए केवल प्रावधान से ही काम नहीं चलने वाला है इसके लिए जिन राज्यों के जिन जिलों को चयित किया जा रहा है उनकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि देश के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकने वाली इस योजना को पूरे मनोयोग से लागू करवाने के प्रयास करें. इस पूरे तंत्र के प्रबंधन में खास और कर्मठ अधिकारियों की तैनाती भी करें जिससे इनकी प्रगति और आने वाली समस्याओं के बारे में सही ढंग से केंद्र तक आवाज़ पहुंचाई जा सके. केवल राजनीति के लिए और भी बहुत सारे अवसर आयेंगें और उनके माध्यम से तब भी अपनी राजनीति को चमकाया जा सकता है ? केवल स्वार्थी राजनीति से आगे बढ़कर सोचने का अब यही सही समय है और केंद्र को भी राज्यों के साथ बेहतर तालमेल के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे दोनों के राजनैतिक हित जहाँ पर टकराने की सम्भावना हो वहां पर देश हित की बात को आगे रखकर सरकार को निर्णय लेने पर किसी भी तरह की राजनीति न किये जाने का आश्वासन भी देना चाहिए क्योंकि आज जो सरकार में है कल वे विपक्ष में भी हो सकते हैं तो उन्हें भी इस तरह की समस्या का सामना करना ही होगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अच्छी जानकारी .. आपके इस महत्वपूर्ण पोस्ट से हमारी वार्ता समृद्ध हुई है
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