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रविवार, 18 मार्च 2012

बेरोजगारी भत्ते का स्वरुप ?

         यूपी में जिस तरह से सेवायोजन कार्यालयों में बेरोजगारों की भीड़ उमड़ रही रही है उससे पूरा प्रशासनिक तंत्र असफल होता नज़र आ रहा है माया सरकार द्वारा केवल बैकलाग भर्तियों के बारे में ही सोचने से प्रदेश में सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण का काम बहुत धीमी गति से चला करता था पर सपा की मुलायम सरकार ने जिस तरह से पिछली बार अपने वायदे के अनुसार बेरोजगारी भत्ता दिया था उसी उम्मीद से इस बार भी बेरोजगार कुछ पाने के लिए भीड़ की शक्ल में लगातार इन कार्यालयों में पहुँच रहे हैं. जिस तरह से पंजीकरण के लिए कई प्रमाण पत्रों की आवश्यकता होती है उसके चलते तहसीलों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है और आम दिनों में कुछ रुपयों में मिलने वाले ये फार्म आज १०० रुपयों में बिक रहे हैं ? सेवायोजन कार्यालयों में इस इस तरह के फार्म भी खुली तौर पर उपलब्ध नहीं हैं और बिना पैसे दिए कुछ भी नहीं हो पा रहा है. ऐसी स्थिति में सरकार की तरफ से स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए जबकि प्रदेश में लगता यह है कि अभी भी चुनाव आचार संहिता लगी हुई है और सरकार कहीं दिखाई नहीं दे रही है ? जिस तरह से कैबिनेट ने केवल ३५ वर्ष से ऊपर के बेरोजगारों को ही भत्ता देने का ऐलान किया है उसके बाद भी इससे कम उम्र के लोग आख़िर क्यों इन कार्यालयों में भीड़ बढ़ा रहे हैं ? ऐसे में फिलहाल यह कह देना चाहिए कि जिन लोगों की उम्र ३५ से अधिक है अभी केवल उन्हीं का पंजीकरण किया जायेगा जिससे इन कार्यालयों में फैली हुई अफ़रा-तफ़री को रोका जा सके.  
           यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि बेरोजगारी को स्वरोजगार से किस तरह से अलग किया जाये जिससे सरकार की मंशा और सार्वजानिक धन का सही दिशा में उपयोग हो सके ? आज जिस तरह से कहीं भी काम करने वाले लोग और यहाँ तक स्वरोजगार में लगे हुए लोग भी केवल सरकारी नीति का लाभ उठाने के बारे में सोच रहे हैं वह पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि कोई भी सरकार इन लोगों को नौकरी नहीं दे सकती है तो ऐसे में प्रदेश की खस्ता आर्थिक स्थिति पर इस तरह से अपात्रों द्वारा बोझ डालना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? पिछली बार यह धनराशि कम थी जिसके चलते कम लोगों ने इसके लिए पंजीकरण कराया था पर अब इस तरह से सरकारी धन की लूट को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? इस भत्ते को देने के साथ ही सरकार को इस बात पर भी रोक लगनी चाहिए कि यदि किसी भी लाभ उठाने वाले व्यक्ति को किसी भी तरह के रोजगार में लगा हुआ पाया गया तो उनसे पूरी धनराशि की वसूली भी की जाएगी जिससे यह लाभ वास्तव में इसके हकदारों तक पहुँच सके ? पर इन मामलों में जिस राजनैतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है लोक लुभवान नीतियों के आगे वह घुटने टेकती नज़र आती है जिससे अंत में पार्टी और प्रदेश का कोई हित नहीं होता है और न ही इन बेरोजगारों के लिए कुछ ठोस किया जा सकता है. 
     अच्छा होता कि इनको पूरे वर्ष में में ४ महीने के लिए किसी काम में लगाया जाता और हर महीने घर बैठे भत्ते देने के स्थान पर इनसे इन ४ महीनों में किसी सरकारी काम को करवाने में मदद भी ली जाती गांवों में अनौपचारिक शिक्षा के लिए इनका उपयोग किया जाता और जिन गांवों में विद्यालयों में शिक्षकों की आज भी कमी है वहां पर इनसे कुछ कार्य लिया जाता जिससे यह भी पता चल जाता कि कौन वास्तव में बेरोजगार है और कौन केवल एक अच्छी सरकारी नीति का ग़लत ढंग से लाभ उठाना चाहता है ? शहरों में आज यातायात से लेकर अन्य जगहों पर काम करने वालों की बेहद कमी है जिससे वहां पर होने वाले काम में अडंगा लगता रहता है इसमें से बेरोजगारों को प्रशिक्षित कर इस भत्ते के एवज में इनसे कुछ घन्टों के लिए स्वेच्छा से काम करवाया जा सकता है ? जितनी बड़ी संख्या में ये लोग आवेदन कर रहे हैं अगर उसको इस तरह की सरकारी नीति के साथ जोड़ दिया जाये तो आने वाले समय में प्रदेश सरकार इस मद जो भी धन खर्च करने वाली है उसके एवज में उसे भले ही घंटों में ही सही पर काम करने वाले हाथ तो अवश्य ही मिल जायेंगें ? किसी बेरोजगार की मदद हो जाये इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है पर उहें केवल बैठकर खाने की आदत डलवाना क्या देश की आने वाली पीढ़ी के साथ अन्याय नहीं है ? अखिलेश सरकार में काबिल लोगों की कमी नहीं है और आशा की जा सकती है कि इस तरह की लुभावनी नीतियों को थोड़ा यथार्थ के धरातल पर उतारने की कोशिश भी की जाये जिससे खर्च होने वाले धन के बदले सरकार को काम करने वाले हजारों हाथ भी मिल सकें......  
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