मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

भारत चीन सबंध

               वियतनाम के साथ मिलकर तेल क्षेत्र में काम करने की भारत की मंशा किसी भी तरह से  चीन को रास नहीं आ रही है और वह विभिन्न अवसरों पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने से नहीं चूक रहा है इसके बावजूद भारत भी इन विवादों पर केवल बयानबाजी करने के स्थान पर अपने सम्बन्ध इन देशों से मज़बूत करने में जुटा हुआ है. वियतनाम के तेल भंडारों पर कब्ज़ा करने की रणनीति की साथ अमेरिका यहाँ बहुत वर्षों तक उलझा रहा और अब चीन इन क्षेत्रों पर अपना दबदबा बनाकर इन क्षेत्रों को केवल अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए सुरक्षित रखना चाहता है. भारत एक तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और इस बात को किसी देश द्वारा न मानने से अब भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है इस स्थिति से निपटने के लिए ही चीन अब दबाव की नीति में असफल रहने पर भारत को भुगतने तक की चेतावनी देने लगा है. इस मसले पर भारत ने जिस तरह से पाक के चीन के साथ गठबंधन का जवाब वियतनाम और दक्षिण कोरिया के सतह उसके पडोसी देशों के साथ सम्बन्ध मज़बूत करने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया है उसको चीन के रणनीतिकार भी मान रहे हैं. 
       भारत का यह मानना है कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में किसी भी देश को व्यापारिक गतिविधियाँ चलने की पूरी छूट है और भारत को कोई देश इससे अधिकार से कैसे रोक सकता है ? भारत ने चीन को जिस तरह से कूटनीतिक और आर्थिक जाल में उलझाना शुरू किया है उससे चीन भी हैरान है क्योंकि अभी तक वह जब चाहे अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर कुछ भी कहता रहता था और भारत उसका केवल कूटनीतिक स्तर पर ही जवाब दिया करता था पर भारत की अब बदली हुई व्यापारिक ज़रूरतों की बात की जाये या फिर देश की बदली हुई रणनीति जिसने चीन के लिए अलग तरह की समस्या खड़ी कर दी है कि वह खुले तौर पर भारत पर कोई आरोप भी नहीं लगा सकता है क्योंकि भारत अपने अधिकार का नियमों के तहत ही उपयोग कर रहा है. चीन के रणनीतिकारों ने सोल में भारत की कोरिया से बढती हुई नजदीकियां भी देखी हैं और उन्हें इस बात की हैरानी अधिक है कि भारत ने चुपचाप वही काम करना शुरू कर दिया है जो अभी तक चीन किया करता था. इससे परेशान चीन ने अपने राष्ट्रपति द्वारा लिए गए स्टैंड से हटाकर भारत को इन क्षेत्रों में व्यापारिक गतिविधियाँ चलाने से रोकने के लिए एक बार फिर से कहा है. 
       चीन का अभी तक जो इतिहास रहा है उसमें किसी भी तरह से भारत के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह इस तरह के कूटनीतिक क़दमों के साथ अपनी चीन से लगती सीमा के साथ सामरिक तैयारियों को एक चरण बद्ध तरीके से चलाता रहे क्योंकि चीन ने जिस तरह से अपने कब्ज़े वाले तिब्बत में रेल नेटवर्क को मज़बूत करना शुरू किया है वह भारत के लिए चिंता की बात तो है ही साथ ही किसी युद्ध जैसे माहौल में चीन द्वारा उसका सैनिक उपयोग करके युद्ध में बढ़त बनाने की कोशिश की जा सकती है. वर्तमान सरकार ने सामरिक महत्त्व से ज़रूरी कुछ सीमान्त परियोजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर शुरू कर दिया है जिसकी बहुत आवश्यकता थी इस बार के रेल बजट में उत्तराखंड में रेल नेटवर्क को बढ़ने के प्रस्ताव से भारत की इन तैयारियों के बारे में पता चलता है क्योंकि जब चीन को पता होगा कि भारत की सामरिक तैयारियां अच्छे से चल रही हैं तो युद्ध की संभावनाएं कम ही हो जायेंगीं. आज चीन को भी अपनी व्यापारिक गतिविधियों को तेज़ी से चलाने के लिए भारत जैसे बड़े और पडोसी बाज़ार की ज़रुरत है जो उसे भारत के ख़िलाफ़ कोई बड़ा कदम उठाने से रोकती रहेगी क्योंकि किसी भी युद्ध या अप्रिय स्थिति में भारत चीन के माल पर रोक लगाकर उसको बड़ा आर्थिक झटका देने की क्षमता तो रखता ही है.  
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल, चीन जैसे पड़ोसी के रहते हुए भारत को सतर्कता से आगे बढते रहना अत्यावश्यक है। हाँ यदि उत्तरी सीमा पर तिब्बत स्वतंत्र हो सके तो स्थिति बदल सकती है।

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  2. सारे लाभ का अधिकार चीन अपने लिये रखना चाहता है।

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