सेना से जुड़ी कुछ ख़बरों को इधर कुछ ऐसे प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे वह भी कोई मसालेदार ख़बर हो जबकि सेना से सम्बंधित किसी भी बात को छापने या प्रसारित करने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि ख़बर में कितनी सच्चाई है ? जिस तरह से समाचार पत्र और टीवी चैनल लगातार कुछ नया बताने के चक्कर में इस तरह की घटनाओं को जिस नाटकीय अंदाज़ में प्रस्तुत करने लगे हैं उसकी भारतीय सन्दर्भ में कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भारतीय सेना विश्व के सबसे अनुशासित सेनाओं में से ही एक है और जब भी इसको कोई ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है तो कुछ अपवादों को छोड़कर इसने अपने काम को भारत या विदेशों में संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत शांति सेना के रूप में बखूबी निभाया है. जनवरी की जिस घटना को इतना बड़ा करके बताया जा रहा है उससे यही लगता है कि सेना जिस तरह से काम करती है उस पर भारत में कोई नज़र रखना शुरू कर चुका है कहीं ऐसा तो नहीं भारतीय सेना के इस तरह के अभ्यासों पर भी दुश्मन देश अपने एजेंटों के माध्यम से नज़र रखने की कोशिश करता है ?
हम सभी अपनी विभिन्न सड़क यात्राओं के दौरान सेना का लम्बे लम्बे काफ़िले अक्सर ही देखा करते हैं जो कि सेना की एक यूनिट का दूसरी जगह जाना भी हो सकता है और सेना का नियमित अभ्यास भी, पर इस तरह से १६ जनवरी की रात सेना के सामान्य अभ्यास को जनरल वी के सिंह के उम्र विवाद से जुड़ी सर्वोच्च न्यायलय में याचिका से जोड़ने की ख़बर में कितनी सत्यता हो सकती है ? इस मसले पर सेना, रक्षा मंत्रालय और सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के अभ्यास सेना करती रहती है और उत्तर भारत में कोहरे के समय पूरी यूनिट को इस तरह से चलने का अभ्यास करने का चलन रहा है. इस मामले में जिस तरह से सरकार और सेना के बीच मतभेद दिखाने की कोशिश कुछ लोगों द्वारा की जा रही है उसकी जितनी निंदा की जाये वह कम ही है क्योंकि देश की सेना जिन परिस्थितियों में काम करती है उसमें किसी के लिए व्यक्ति के लिए उसे समझ पाना आसान नहीं है. सेना की विभिन्न यूनिटें अपनी ज़रूरतों के अनुसार अभ्यास में लगी रहती है और इसके लिए जो भी तयशुदा प्रक्रिया होती है उसका हमेशा ही अनुपालन करती है फिर इस तरह की निराधार बातें करने से क्या साबित होने वाला है ?
जिस तरह से कुछ अतिउत्साही लोग इस पूरे प्रकरण को सेना के तख्ता पलट से जोड़ने में लगे हुए हैं उन्हें शायद भारतीय संविधान और सेना के काम करने के बारे में पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि किसी अन्य अशांत देश की तरह हमारी सेनाएं हर समय सड़कों पर नहीं घूमती रहती हैं और वे जिस अनुशासन का पालन हमेशा ही करती रही हैं उस स्थिति में उन पर इस तरह का संदेह करना केवल कल्पना ही है. खेद की बात यह है कि इस मसले को १९८४ के आपरेशन ब्लू स्टार के बाद उपजी हुई परिस्थितयों में कुछ सैनिकों द्वारा किये जाने वाले विरोध से जोड़ा जा रहा है जबकि उस समय वह विरोध केवल कुछ जगहों पर ही था जिसे जल्दी ही सुलझा लिया गया था. सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच उनके उम्र विवाद को लेकर तनातनी चल रही है पर सेना की इस गतिविधि को उनके याचिका दायर करने से जोड़ने वाले लोग आख़िर क्या करना चाहते हैं ? आज तक जितने भी सेनाध्यक्ष हुए हैं हर सरकार ने उनका सम्मान किया है और आज भी इतने विरोध और मतभेद होने के बाद भी सेनाध्यक्ष या सेना की निष्ठा पर संदेह करने वालों की निष्ठा की ही जांच की जानी चाहिए कि आख़िर वे किस दम पर ऐसी बातें कर रहे हैं ? सेना और सरकार ने इस मसले पर स्थिति स्पष्ट कर दी है और अब इस मसले पर बिना मतलब कयास लगाये जाने बंद होने चाहिए और सेना पर बिना बात के आरोप लगाने वालों की भी जांच होनी ही चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हम सभी अपनी विभिन्न सड़क यात्राओं के दौरान सेना का लम्बे लम्बे काफ़िले अक्सर ही देखा करते हैं जो कि सेना की एक यूनिट का दूसरी जगह जाना भी हो सकता है और सेना का नियमित अभ्यास भी, पर इस तरह से १६ जनवरी की रात सेना के सामान्य अभ्यास को जनरल वी के सिंह के उम्र विवाद से जुड़ी सर्वोच्च न्यायलय में याचिका से जोड़ने की ख़बर में कितनी सत्यता हो सकती है ? इस मसले पर सेना, रक्षा मंत्रालय और सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के अभ्यास सेना करती रहती है और उत्तर भारत में कोहरे के समय पूरी यूनिट को इस तरह से चलने का अभ्यास करने का चलन रहा है. इस मामले में जिस तरह से सरकार और सेना के बीच मतभेद दिखाने की कोशिश कुछ लोगों द्वारा की जा रही है उसकी जितनी निंदा की जाये वह कम ही है क्योंकि देश की सेना जिन परिस्थितियों में काम करती है उसमें किसी के लिए व्यक्ति के लिए उसे समझ पाना आसान नहीं है. सेना की विभिन्न यूनिटें अपनी ज़रूरतों के अनुसार अभ्यास में लगी रहती है और इसके लिए जो भी तयशुदा प्रक्रिया होती है उसका हमेशा ही अनुपालन करती है फिर इस तरह की निराधार बातें करने से क्या साबित होने वाला है ?
जिस तरह से कुछ अतिउत्साही लोग इस पूरे प्रकरण को सेना के तख्ता पलट से जोड़ने में लगे हुए हैं उन्हें शायद भारतीय संविधान और सेना के काम करने के बारे में पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि किसी अन्य अशांत देश की तरह हमारी सेनाएं हर समय सड़कों पर नहीं घूमती रहती हैं और वे जिस अनुशासन का पालन हमेशा ही करती रही हैं उस स्थिति में उन पर इस तरह का संदेह करना केवल कल्पना ही है. खेद की बात यह है कि इस मसले को १९८४ के आपरेशन ब्लू स्टार के बाद उपजी हुई परिस्थितयों में कुछ सैनिकों द्वारा किये जाने वाले विरोध से जोड़ा जा रहा है जबकि उस समय वह विरोध केवल कुछ जगहों पर ही था जिसे जल्दी ही सुलझा लिया गया था. सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच उनके उम्र विवाद को लेकर तनातनी चल रही है पर सेना की इस गतिविधि को उनके याचिका दायर करने से जोड़ने वाले लोग आख़िर क्या करना चाहते हैं ? आज तक जितने भी सेनाध्यक्ष हुए हैं हर सरकार ने उनका सम्मान किया है और आज भी इतने विरोध और मतभेद होने के बाद भी सेनाध्यक्ष या सेना की निष्ठा पर संदेह करने वालों की निष्ठा की ही जांच की जानी चाहिए कि आख़िर वे किस दम पर ऐसी बातें कर रहे हैं ? सेना और सरकार ने इस मसले पर स्थिति स्पष्ट कर दी है और अब इस मसले पर बिना मतलब कयास लगाये जाने बंद होने चाहिए और सेना पर बिना बात के आरोप लगाने वालों की भी जांच होनी ही चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
nice post thanks for sharing with us
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