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मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

लोकप्रिय या व्यावहारिक ?

        उत्तर प्रदेश में सरकार सँभालने के बाद जिस तरह से अखिलेश ने परीक्षाओं को देखते हुए शाम ६ से रात १० बजे तक निर्बाध बिजली दिए जाने के आदेश पावर कारपोरेशन को जारी किये और साथ ही २० अप्रैल तक इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अतिरिक्त बिजली खरीद के लिए १५० करोड़ रूपये भी दिए उससे लगा था कि शायद प्रदेश में शाम को बिजली आपूर्ति में कुछ सुधार आ जायेगा पर उनकी यह घोषणा शक्ति भवन के अधिकारियों के फ़र्ज़ी अनुमानों के आगे पूरी तरह से हवाई साबित हो गयी है. अभी तक प्रदेश में बिजली विभाग जिस तरह से काम करता रहा है आज भी उसके काम करने की शैली में कोई बदलाव नहीं आया है जिस कारण से आज भी समस्याएं उसी जगह पर हैं. ऐसा नहीं है कि अखिलेश ने अधिकारियों से इस आदेश के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं ली होगी पर उन्होंने जिस तरह से आंकड़े बाज़ी में महारत हासिल कर रखी है उसके बाद वहां से कुछ सही होने की आशा भी नहीं की जा सकती है.  इस विभाग में कोई तेज़ तर्रार पूर्ण कालिक मंत्री होना चाहिए जो प्रदेश की ऊर्जा ज़रूरतों के बारे में सही तरह से निर्णय लेने की क्षमता रखता हो.
             अभी तक प्रदेश के बिजली विभाग को यही नहीं पता है कि वास्तव में प्रदेश की बिजली आवश्यकता क्या है और उसके मुकाबले यहाँ पर कितनी बिजली उपलब्ध है ? प्रदेश के अधिकारियों ने "प्रतिबंधित मांग" नामक एक नया शब्द खोज निकाला है जिसके पीछे वे बड़ी खूबसूरती से पूरे आंकड़ों को छिपा जाने में सफल रहते हैं. यह वह मांग है जो प्रदेश ऊर्जा विभाग जनता को अपने रोस्टर के हिसाब से बिजली देने पर मानता है पर वास्तव में यह मांग बहुत अधिक होती है क्योंकि इसमें सही आंकड़ों को छिपाने की असीमित संभावनाएं होती हैं. अभी तक सभी सरकारें संभवतः इस प्रतिबंधित मांग को ही वास्तविक मांग मानकर योजनायें बनाने में ही लगी रहती हैं जिससे प्रदेश के ऊर्जा परिदृश्य में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है. अब आवश्यकता है की इस तरह के आंकड़ों से जुडी बाजीगरी को छोड़कर ठोस नीतियां बनायीं जाये और उन पर समयबद्ध तरीके से अमल भी किया जाये जिससे आने वाले समय में इस स्थिति को काफी हद तक परिवर्तित किया जा सके. पर इस विभाग में जिस स्तर पर भ्रष्टाचार मचा हुआ है उसे रोक पाने में अभी तक कोई भी सफल नहीं हो पाया है जिससे विभाग के पास बिजली खरीदने के लिए धन की कमी हमेशा ही बनी रहती है. हो सकता है कि आने वाले समय में प्रदेश में निजी क्षेत्र में भरपूर बिजली हो पर उसे खरीदने के लिए विभाग के पास पैसा ही न बचे ? 
          अखिलेश को एक बात सीखनी ही होगी की संकट ग्रस्त किसी भी तंत्र को सही ढंग से चलाने के लिए उसे यथार्थ के धरातल पर उतर कर ही सोचने से ठीक किया जा सकता है और इस तरह से किसी भी लोकलुभावन घोषणा से किसी का भला नहीं होने वाला है. आज प्रदेश के कितने हिस्से को शाम को ६ से १० तक निर्बाध और पूरी बिजली मिल रही है यह सभी जानते हैं. गाँवों में रहने वालों के लिए बिजली तो वैसे ही दुर्लभ थी जो पहले कभार कभार दिन में दिख जाती थी पर इस आदेश के बाद से अब ५-५ मिनट के लिए आँख मिचौनी करती बिजली इस आदेश पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रही है ? पूरे प्रदेश में इस समय बिजली की मांग ११ हज़ार मेगावाट तक पहुँच रही है जिसका अंदाज़ा विभाग को था ही नहीं क्योंकि अभी तक वह प्रतिबंधित मांग के हसीन सपनों में ही जी रहा था पर जब अखिलेश के आदेश के बाद सभी जगह बिजली एक साथ में देने की क़वायद शुरू की गयी तो अधिकारियों के होश ही उड़ गए. इस मसले पर अब सीएम के स्तर से तुरंत दख़ल होना चाहिए और इस आदेश को वापस लिया जाना चाहिए. बिजली की उपलब्धता के अनुसार व्यावहारिक रोस्टर बनाया जाना चाहिए जिस पर अमल करना संभव हो केवल प्रेस विज्ञप्ति जारी करने और ज़मीन पर कुछ करने में बहुत बड़ा फ़र्क होता है और जनता अखिलेश से इस तरह की हवाई घोषणाओं की अपेक्षा नहीं करती है.      
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