मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 18 जून 2012

बिजली संकट और यू पी

          जिस तरह से पूरे उत्तर भारत में बिजली का संकट दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है उससे निपटने के लिए केंद्र या राज्य सरकारों के पास कोई ठोस योजना दिखाई नहीं देती है क्योंकि बिजली उत्पादन को पिछले दो दशकों में वह प्राथमिकता दी ही नहीं गयी जिसकी आवश्यकता थी. साथ ही इस सरकारी विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार ने रही सही कसर भी पूरी ही कर दी है. यूपी में सरकार ने जिस तरह से शाम ७ बजे शौपिंग मॉल्स को बंद करने के निर्देश दिए हैं जिससे शहरों में कुछ बिजली बचाकर ग्रिड और फ्रीक्वेंसी की स्थिति को संभाले रखा जा सके. ऐसा नहीं है कि यह संकट केवल यूपी में ही है बल्कि इस बार उत्तर भारत में मानसून पूर्व बारिश न होने के कारण स्थिति ख़राब ही है और जब तक पानी नहीं बरसता है तब तक बिजली की मांग कम होने की कोई सम्भावना नहीं है. क्या देश के विकास को मानसून के भरोसे ही छोड़ा जा सकता है जबकि हमें अपनी ज़रुरत के हिसाब से नीतियां बनाने में ही कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी है ?
        देश में परंपरागत साधनों से जितनी बिजली बनायीं जा सकती है उसके लिए भी ठोस प्रयास नहीं किये जा सके है जिसका असर आज साफ़ दिखाई दे रहा है और आने वाले समय में यह बढ़ने ही वाला है क्योंकि जिस तरह से देश में आबादी बढ़ने के साथ उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढती ही जा रही है उसे पूरा करने के लिए नए नए उद्योग भी दूर दराज़ के क्षेत्रों तक विकसित होते जा रहे हैं जिससे बिजली की मांग अब गांवों तक में भी बढ़ती ही जा रही है इस मांग को पूरा करने के लिए अब केंद्र और राज्यों को सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए नयी नीतियां बनाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक सही दिशा में सोच नहीं विकसित होगी तब तक इस तरह की समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला जा सकेगा. किसी भी बिजलीघर को लगाने में ही कई वर्ष लग जाया करते हैं और जब बिना बात के राजनीति करके सभी अपने को सही साबित करना है तो प्रयासों में कमी हो जाती है.
       ऊर्जा पर देश को अब अगले ५० वर्षों के लिए नीतियां बनाने की आवश्यकता है और इसे कानूनी और संवैधानिक दर्ज़ा भी दिया जाये जिससे आने वाले समय में कोई भी दल सरकार चलाये पर वो इससे पीछे न हट पाए. इस पूरी प्रक्रिया पर नज़र रखने के लिए एक नियामक आयोग भी बनाया जाये जो नियमों के उल्लंघन के बारे में सरकारों को सचेत करता रहे और बिजली उत्पादन बढ़ाने में ठीक प्रयास न करने वाले प्रदेशों को केन्द्रीय सेक्टर से कम बिजली देने का नियम भी बनाया जाना चाहिए. अभी तक देश के राजनैतिक दलों में जिस स्तर पर वैचारिक मतभेद रहते हैं उसे देखते हुए अब ऐसे प्रयासों की ज़रुरत है जो देश के सामने आने वाले इस तरह के और गंभीर ऊर्जा संकट से बचने के कोई रास्ते भी निकाल सके. देश को इस क्षेत्र में केवल बातें नहीं चाहिए और कुछ ठोस प्रयास अगर अभी से शुरू कर भी दिए जाएँ तो आने वाले समय में इस पर कुछ हद तक नियंत्रण करने में सफलता मिल सकती है. हजीरा-बीजापुर-जगदीशपुर गैस लाइन के साथ गैस आधरित बिजली सयंत्र लगाये जाने को प्राथमिकता दी जाने चाहिए जिससे देश में उपलब्ध गैस का भी सही उपयोग हो सके और उससे बिजली संकट कम करने में भी कुछ मदद मिल सके. पर हर बात में एक दूसरे की टांग खींचने वाले हमारे नेता गण क्या जनता की इस समस्या पर ध्यान देंगें या हमेशा ही आसमान में टकटकी लगाकर पानी बरसने तक बिजली बचाने के ऐसे ही टोटके आजमाते रहेंगें ?           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें