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गुरुवार, 21 जून 2012

राजग, राजधर्म और चुनाव

                  राष्ट्रपति चुनाव में संप्रग के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को घेरने के लिए बनायीं जा रही रणनीति ने राजग को ऐसी जगह पहुंचा दिया है जहाँ इसके घटक दलों के नेता इस चुनाव को भूलकर २०१४ के आम चुनावों के बारे में निरर्थक बयानबाज़ी करने में लग गए हैं. किसी भी गठबंधन के लिए अपनी भविष्य की तैयारियां करना अच्छी बात है पर जिस तरह से भाजपा में नरेन्द्र मोदी को अगली बार पीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाने की क़वायद बहुत सारे अंतर्विरोधों के बाद शुरू हुई है उससे यह अंतर्विरोध केवल भाजपा का न होकर पूरे राजग में फ़ैल गया है. भाजपा में जिस तरह से २०१४ के चुनावों के बाद अपने उम्मीदवार को पीएम पद पर देखने की ललक बढ़ रह है उस अनुपात में उसकी तैयारियां कहीं से भी दिखाई नहीं दे रही हैं और इस तरह की गतिविधियों से जनता में राजग की संभावनाओं पर भी असर पड़ता दिख रहा है. ज़मीनी स्तर पर तैयारियों पर ध्यान देने के स्थान पर राजग जिस तरह से केवल दिल्ली में बैठकर बातें कर रहा है उससे उसे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है और आने वाले समय में इसका और ख़राब स्वरुप दिखाई देने वाला है.
           जिस तरह से विभिन्न मुद्दों के चलते संप्रग की लोकप्रियता में तेज़ी से गिरावट आ रही है और उसके बाद स्वाभाविक गठबंधन के रूप में राजग ही सामने है तो उसकी तैयारियां जिस स्तर पर होनी चाहिए वे कहीं से भी नहीं दिखाई दे रही हैं. ऐसी स्थिति में उसकी संभावनाएं कमज़ोर होती जा रही हैं और संभावनाएं इस बात की भी है उन चुनावों में संप्रग के जाने की स्थिति में तीसरा मोर्चा एक बार फिर से कांग्रेस के सहयोग से सत्ता में आ सकता है. देश में जिस तरह से राजग अपने को संप्रग का विकल्प दिखाना चाहता है वैसा हो नहीं पा रहा है जिसके कारण भी कहीं न कहीं से ऐसी स्थिति बन रही है. जिस तरह से नरेन्द्र मोदी के नाम पर राजग में खेमेबाज़ी हो रही है उसे देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि मोदी की स्वीकार्यता भाजपा के साथ राजग में भी नहीं है और ऐसी स्थिति में उनके समर्थन में कितने सहयोगी खड़े रह पायेंगें कहना मुश्किल है.
        जिस तरह से नितीश कुमार ने मोदी पर साफ़ तौर पर आरोप लगाया है कि उनके कारण ही राजग २००४ का चुनाव हार गया और भाजपा में एक वर्ग उन्हें भाजपा और देश का भविष्य बताने में लगा हुआ है उस स्थिति में राजग की चुनावी संभावनाओं पर ग्रहण तो लग ही गया है क्योंकि आम भारतीय जन मानस में मोदी के नेतृत्व में गुजरात के लाख विकास करने बाद भी उनकी छवि एक ऐसे शासक की है जो अपने काम को निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है ? इस बार गुजरात के विधान सभा चुनावों में एक बार फिर से मोदी के भाजपा के अन्दर से ही विरोध करने वाले लोग फिर से सक्रिय हैं और आडवानी की संभावनाओं पर मोदी के कारण ही विराम लगने के कारण आडवानी खेमा भी मोदी का किस हद तक साथ दे पायेगा यह भविष्य ही बताएगा पर जिस तरह से इतने विरोधों को खुद भाजपा और राजग ने जन्म दे दिया है अब उनसे निपटना उसके लिए मुश्किल होता जा रहा है. मोदी के साथ खड़े होने पर नितीश जैसे सहयोगियों को आज भी आपत्ति है और अगर भाजपा मोदी के नाम को आगे करती है तो उसके बाद राजग किस स्वरुप में बचेगा यह भी अभी तय नहीं है तो इससे संप्रग को कहीं न कहीं से लाभ मिल सकता है जो कि राजग के कुछ वर्तमान सहयोगियों के साथ से उसे एक बार फिर से सत्ता के निकट पहुंचा सकता है.      
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