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शुक्रवार, 22 जून 2012

चिकित्सा नीति और स्वास्थ्य

         जब से आमिर खान ने अपने कार्यक्रम सत्यमेव जयते में चिकित्सा पेशे से जुड़ी बातों में चर्चा की है तभी से देश में इस बारे में लोग बातें करने लगे हैं. जिस तरह से आमिर ने चिकित्सा जगत में व्याप्त कदाचार की पोल खोली ऐसा नहीं है कि जनता और सरकार उससे वाकिफ़ नहीं है फिर भी आमिर की बातों को ऐसे लिए जाने लगा जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ी बात कह दी हो ? आज भी देश की आवश्यकता के अनुसार एक स्वास्थ्य नीति की बहुत आवश्यकता है जिसके लागू होने के बाद इस क्षेत्र की बहुत सारी समस्याओं से निजात पाई जा सकती है पर जिस तरह से केवल सनसनी फ़ैलाने के लिए ही कार्यक्रम में कुछ खास पहलू पर ही रौशनी डाली गयी उससे यही लगता है कि देश में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े हुए सभी लोग केवल कदाचार में ही जुड़े हुए हैं ? क्या आमिर की टीम ने विभिन्न जांचों में कमीशन की बात करते समय यह जान्ने की कोशिश की कि देश में कितने डॉ ऐसे भी हैं जो इस तरह की जांचों में कोई भी कमीशन नहीं लेते हैं जब हर क्षेत्र में हर तरह के लोग हैं तो किसी एक क्षेत्र की केवल एक बात पर ही रौशनी डालने का क्या मतलब निकलता है ?
         आमिर ने निसंदेह इस बात को उठाकर चर्चा में तो ला ही दिया है पर क्या उनकी टीम इतनी सशक्त है कि वो देश की सरकार और उद्योग जगत को यह सलाह दे सकें कि देश में दवा उद्योग किस तरह से चलाया जाना चाहिए ? सस्ती दवाओं के साथ विदेशी पूँजी निवेश की सीमा बढ़ाये जाने की वकालत से देश के दवा उद्योग में नाराज़गी है क्योंकि आज कोई भी यह कह सकता है कि आमिर अपने प्रभाव का इस्तेमाल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए कर रहे है तो उनके पास इस बात का क्या जवाब होगा ? किसी कार्यक्रम में किसी बात की आलोचना करना बहुत अच्छा है पर जब नीतियां बानाने का समय आता है तो सभी को गहन मंथन करने की ज़रुरत होती है और क्या सरकार इस तरह से किसी एक नीति को इतनी आसानी से बना सकती है ? सरकार के लिए देश के मतलब केवल महानगर ही नहीं होते हैं और उसे दूर दराज़ के क्षेत्रो तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाने के बारे में निरंतर प्रयास करने ही पड़ते हैं फिर भी यह सब इतना आसान नहीं होता जितना किसी कार्यक्रम में बैठकर कह देना होता है.
      देश के ग्रामीण अंचलों में स्वस्थ्य सेवाएं किस तरह से चरमरायी हुई हैं या फिर अधिकांश जगहों तक आज भी ये सेवाएं नहीं पहुँच पायी हैं तो इसके लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है ? सरकार अभी तक अपने संसाधनों से तहसील मुख्यालयों तक भी अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं नहीं दे पाई है ऐसे में उसके सीमित संसाधनों से जनता को कब राहत मिल पायेगी यह बात भी कोई नहीं जानता है. देश को टीवी पर दिखाई देने वाले इन कार्यक्रमों से अधिक एक व्यापक स्वास्थ्य नीति की ज़रुरत है और उसके बिना किसी भी स्तर पर कोई भी सरकार अपने दम पर कुछ नहीं कर सकती है. देश के नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में सभी को जागरूक होने की ज़रुरत है पर साथ ही इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब भी कोई किसी भी क्षेत्र की बातें करें तो वे एक पक्षीय नहीं होनी चाहिए क्योंकि उससे सम्बंधित क्षेत्र के लोगों के बारे में समाज में गलत धारणा ही बनती है. 
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