मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 24 जून 2012

तत्काल टिकट में हैकिंग का खेल

          जिस तरह से तत्काल टिकट बनवाने में लगने वाले समय से आम लोग परेशान रहते हैं और रेलवे तमाम कोशिशें करने के बाद भी इस समस्या को अभी तक सुलझा नहीं पाई है उससे यह तो पता चलता है कि कहीं न कहीं पर इस पूरे तंत्र में बहुत बड़ी खामी है. रेलवे को तत्काल टिकट के मामले में एक फ़र्ज़ी तरह से टिकट बनाने के गिरोह के बारे में पता चला और उसकी शिकायत पर एसटीएफ़ ने जिस तरह से रेलवे की साईट हैक करके अधिक दाम वसूल कर टिकट बनाने के गिरोह के सदस्यों को धर दबोचा है उससे यह बात पक्की होती है कि कहीं न कहीं पर इस पूरे तंत्र में रेलवे के कुछ लोगों की मदद से बहुत बड़ा खेल चल रहा है. हिरासत में लिए गए लोगों ने इस पूरी प्रक्रिया में किये जाने वाले खेल का खुलासा जब किया तो सभी को बहुत अचरज हुआ क्योंकि एक तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता से बनाये गए सॉफ्टवेयर के माध्यम से रेलवे की साईट को हैक करके पूरा खेल कुछ मिनटों में ही पूरा कर लेते थे और बुकिंग विंडो पर खड़े हुए लोगों को टिकट मिल ही नहीं पाते हैं.
       जिस तरह से रेलवे की साईट को हैक करने के साथ ही इस खेल को खेलने में कुछ लोग पूरे देश में लगे हुए हैं उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं पर इसमें रेलवे के भी कुछ लोग शामिल हैं और जब तक इस मामले की तह तक नहीं पहुंचा जायेगा तब तक इस तरह के खेल चलते ही रहेंगें. अब यहाँ पर सवाल यह उठता है कि आख़िर रेलवे किस तरह से अपनी साईट की सुरक्षा करे कि आने वाले समय में कोई भी इस तरह से उसे हैक करके जालसाजी न कर सके. ऐसा भी नहीं है कि अभी तक रेलवे द्वारा इस सन्दर्भ में कुछ नहीं किया जा रहा हो पर जिस स्तर पर रेलवे की सुरक्षा है हैकर उससे भी कहीं आगे तक सोच कर चलने में लगे हैं. इससे बचने के लिए अब रेलवे को कुछ ऐसे प्रयास करने ही होंगें जिससे आगे से इस तरह से काम करने वालों को रोका जा सके. साथ ही रेलवे को अपने ख़ुफ़िया तंत्र को और अधिक मज़बूत करना होगा जिससे इस तरह की कोई भी गतिविधि जल्दी ही पकड़ी जा सके.
             जिस तरह से अभी तक देश में इस तरह के अपराधों से निपटने के लिए कोई कानून के साथ निगरानी तंत्र की कमी है ये हैकर इस तरह की परिस्थिति में ऐसा ही कुछ करके अपने काम को करते रहते हैं और मज़े की बात यह है कि आम लोगों को यह कभी पता भी नहीं चल पाता है कि जो टिकट उन्होंने खरीदा है वह असल में कुछ लोगों की काली करतूतों का नतीजा है ? आम जनता के पास इस बात को जांचें और परखने का कोई तरीका भी नहीं है जिससे वह जान सके कि जो टिकट वह किसी एजेंट से खरीद रहे हैं वह सहइ तरीके से बनाये गए हैं या फिर उनको बनाने में भी किसी तरह की हेराफेरी की गयी है ? ऐसे में जनता न चाहते हुए भी इस तरह की ग़लत गतिविधियों में अनजाने में ही भागीदार बन जाती है. इस स्थिति से बचने के लिए अब कुछ ऐसे प्रयास अवश्य ही करने होंगें जिनके माध्यम से इस तरह की गैर कानूनी गतिविधियों पर रोक लगायी जा सके और आने वाले समय में फिर से कोई इस तरह से पूरे तंत्र में घुसकर लोगों को मंहगे टिकट बेचने का धंधा शुरू कर दे ? अब रेलवे को अपनी साइबर सुरक्षा पर पूरा और अधिक ध्यान देना चाहिए जिससे आम लोगों को उन सुविधाओं का लाभ मिल सके जो उनके लिए निर्धारित की गयी हैं.  
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3 टिप्‍पणियां:

  1. इसीलिए पिछले कई दिनों से मैं अपने पीसी से तत्काल टिकट बनाने का प्रयास करता था परंतु टिकट बन नहीं पाता था और आधे घंटे में ही पूरी सीटें भर जाती थीं. रेलवे की रिजर्वेशन साइट को सुरक्षा की वेरीसाइन सर्टिफिकेट लेकर काम करना चाहिए तभी हैकिंग से बचाया जा सकता है अन्यथा नहीं. और,वैसे यह तो रेलवे कर्मचारियों और हैकरों की मिली भगत का मामला ज्यादा लगता है.

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