मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 29 जून 2012

कितना सस्ता पेट्रोल ?

               कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में घटने के बाद जिस तरह से तेल विपणन कम्पनियों ने पेट्रोल की कीमतों में कटौती की है उसके बाद भी कुछ लोगों को यही लग रहा है कि यह कटौती उतनी नहीं है जितनी कीमतें कम हुई हैं क्योंकि उनको हर बात को राजनैतिक चश्में से ही देखने की आदत पड़ी हुई है. तेल की ये कीमतें अभी और भी नीचे आ सकती है अगर सरकार के रूपये को मज़बूत करने के प्रयास कारगर साबित हुए. देश में तेल की जितनी ख़पत होती है उसके मुकाबले उसका उत्पादन नहीं हो पाता है जिस कारण से घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ही देश को बाहर से कच्चा तेल खरीदना पड़ता है. वैश्विक गतिविधियों और सरकार के सहयोगियों द्वारा हर मसले पर अपने विरोधी स्वरों के कारण भी अपेक्षित आर्थिक सुधार नहीं हो पा रहे हैं जिसके असर से रूपये का अवमूल्यन भी होता जा रहा है और वह अपने न्यूनतम स्तर तक गिर चुका है. देश में ऐसी क्या व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को बिना किसी तरह के राजनैतिक हस्तक्षेप के ही पेट्रोलियम पदार्थ सही मूल्यों पर उपलब्ध हो सकें और इनको लेकर होने वाली किसी भी तरह की राजनीति को देश में किसी भी तरह का कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए. जिस तरह से सरकार सब्सिडी देकर इन मूल्यों को एक कृत्रिम स्तर पर बनाये रखने के लिए प्रयास करती रहती है उससे अच्छा तो यही होगा कि ईमानदारी से वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के अनुसार  तेल की कीमतों की साप्ताहिक समीक्षा की जाये और उसके अनुसार ही इनके दाम तय किये जाएँ.
 
          सरकार को अमेरिका की तरह कुछ ऐसी व्यवस्था भी करने के बारे में सोचना चाहिए जहाँ पर रोज़ ही इन मूल्यों को बाज़ार के अनुसार तय किया जाता है हालांकि भारत में इस नीति को लागू करने में बहुत कठिनाई भी हो सकती है क्योंकि जिस तरह से देश के दूर दराज़ के क्षेत्रों में पेट्रोल/ डीज़ल बेचा जाता है वहां तक जनता को ये लाभ सही समय से मिल भी पायेंगें इसमें संदेह है ? तेल कम्पनियों के डीलर इस तरह के फैसलों को करने में जनता तक कुछ देरी में ये लाभ पहुँचाने का काम भी कर सकते हैं. अभी तक तेल मूल्यों की समीक्षा भी जिस तरह से राजनैतिक कारणों से ही की जाती है कम से कम संप्रग सरकार को इससे अलग होना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में कम से कम पेट्रोल के दाम नियंत्रित करने का कोई प्रयास नहीं करना चाहिए साथ ही कुछ ऐसी व्यवस्था भी की जानी चाहिए बिना किसी राजनैतिक प्रभाव को देखे इन मूल्यों को बाज़ार के हवाले कर दिया जाये जिससे लोगों को सही मूल्य पर ये पदार्थ उपलब्ध हो सकें. आने वाले समय में डीज़ल और केरोसिन पर भी सब्सिडी की मात्रा निर्धारित करके ही आगे बढ़ने की कोशिश हों चाहिए क्योंकि सब्सिडी कितनी दी जाये इसका कोई हिसाब नहीं है. जिस तरह से देश के अमीर वर्ग ने भी अब डीज़ल वाहनों के लिए सोचना शुरू कर दिया है तो उस स्थिति में पेट्रोल खरीदने वाले ही सस्ते डीज़ल के लिए इतने अधिक दाम क्यों चुकाएं ?
         आम लोगों के लिए पेट्रोल के दामों को पता करने के लिए एक ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए जिसके तहत वह एक निर्धारित फोन नम्बर पर एक संदेश अपने पिनकोड के साथ भेजकर उस दिन उसके स्थान पर पेट्रोल की सही कीमत के बारे में पता कर सकें. इससे पेट्रोल को भी अमेरिका की तरह रोज़ के मूल्य के हिसाब से जनता को उपलब्ध कराये जाने में आसानी होगी क्योंकि आज के युग में भारत में जिस तरह से मोबाईल का चलन बढ़ा है उसमें सभी के पास इसकी सुविधा हो गयी है कम से कम यह तो माना ही जा सकता है कि जिन लोगों के पास वाहन हैं वे इस तरह की व्यवस्था का लाभ उठाकर पेट्रोल के सही दामों को जान सकेंगें. अब देश को तेल की राजनीति के खेल से बाहर निकलना ही होगा क्योंकि इस तरह से कुछ भी करने से काम नहीं चलने वाला है और देश के लिए अब आर्थिक चुनातियों का सामना करने की हिम्मत आनी भी ज़रूरी है. जब दुनिया हमारी तरफ आशा से देखना शुरू कर चुकी है तब भी हम केवल और केवल हर छोटी छोटी बात पर केवल कुछ वोट बटोर लेने की नीति पर ही चलने में लगे हुए हैं. सभी जानते हैं कि आज किसी और दल की भी सरकार होती तो भी उसके पास इस स्थिति से निपटने के लिए कोई विकल्प नहीं होता इसलिए अब नेताओं को देश हित में सही सोच को विकसित करना ही होगा क्योंकि उसके बिना अब देश विकास और नेतृत्व के राजमार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता है और यह जितनी जल्दी सोच लिया जाये उतना ही अच्छा है.    

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