मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 28 जून 2012

पाक और आतंक

          २६/११ के मुख्य आरोपी के भारत के हत्थे चढ़ने के बाद से ही जिस तरह से नए नए खुलासे हो रहे हैं उससे भारत की हर उस बात को शक्ति ही मिल रही है जिनको पाक हमेशा ही नकारता रहा है ? भारत को अबू जुन्दाल से जिस तरह से नयी नयी बातें पता चल रही हैं उनसे यही एक बार फिर से पक्का होता है की पाक कभी भी भारत के लिए सामान्य तरीके से नहीं सोच सकता है और इस स्थिति में भारत के पास कितने विकल्प शेष रह जाते हैं जिन पर वह विचार कर सके ? अभी तक भारत के हर सबूत को पाक हमेशा से ही यह कहकर हल्का करने की कोशिश करता रहता है कि उनमें कुछ भी ख़ास नहीं है पर अब जिस तरह से भारत के इस शक़ को मजबूती मिल रही है कि पाक के सत्ता तंत्र ने २६/११ की साजिश में पूरी भागीदारी की और पूरी तरह से आतंकियों की मदद की. अभी तक पाक के पास यही बात होती थी कि वह आतंक के पूरी तरह से ख़िलाफ़ है और किसी भी स्थिति में वह किसी भी आतंकी संगठन को अपनी ज़मीन से भारत के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं करने देगा जबकि दोस्ती के हाथ बढ़ाकर पाक ने हमेशा खंज़र को छिपाकर वार करने की नीति पर ही चलता रहा है.
          अब सवाल यह उठता है कि भारत को इन परिस्थितयों में क्या करना चाहिए क्योंकि जिस भी परिस्थिति में सऊदी अरब ने इस कुख्यात और भगोड़े आतंकी को भारत भेजा और ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इस पर पूरी नज़र रखी उससे यही पता चलता है कि सऊदी अरब भी २६/११ के इस आतंकी को अपने यहाँ पनाह देने में कोई बुराई नहीं लगी जबकि उसके खिलाफ इंटरपोल ने पहले से ही चेतावनी जारी कर रखी थी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि २६/११ में मारे गए अमेरिकियों के कारण ही अमेरिका ने सऊदी अरब पर इतना दबाव बना दिया हो की उसके पास इस आतंकी को भारत डिपोर्ट करने के अलावा कोई अन्य चारा ही नहीं बचा हो ? सऊदी अरब से भारत के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हैं और उसने उन रिश्तों को इस तरह से निभाया है कि संबंधों पर ही संदेह उत्पन्न होने लगे. अब भारत सरकार के पास कुछ ही विकल्प शेष हैं जिनमें पाक से इस मसले पर पूरा सहयोग न करने की दिशा में उससे हर तरह के संबंधों पर रोक लगा दी जानी चाहिए क्योंकि किसी भी देश से अच्छे सम्बन्ध बनाने का ठेका क्या भारत ने ही ले रखा है ?
    २६/११ में जिस तरह से पाक ने इन आतंकियों को हर तरह की सुविधा दी और उन्हें अपनी नौसेना का सहयोग भी उपलब्ध कराया उसके बाद अब उसके ख़िलाफ़ किसी और सबूत की आवश्यकता नहीं रह जाती है. यह खुलासा भारत में बैठे उन मानवाधिकार वादियों के लिए भी बड़ा झटका है क्योंकि अभी तक उन्हें यही लग रहा था कि पाक का इस पूरे प्रकरण में कोई हाथ नहीं था. साथ ही भारत को कश्मीर की स्थिति पर एक बार फिर से विचार करने की ज़रुरत है क्योंकि जिस तरह से पाक का सत्ता तंत्र भारत के ख़िलाफ़ हर समय कुछ न कुछ करने की फ़िराक़ में लगा हुआ है उस स्थिति में वहां सेना और अर्ध सैनिक बलों की संख्या और तैनाती स्थल में किसी भी तरह के परिवर्तन की गुंजाईश अब शेष नहीं रह जाती है. जब तक पाक अपनी इस तरह की हर की गतिविधि को जारी रखे हुए है तो भारत किस तरह से उससे बात कर सकता है अतः पाक से किसी भी स्तर पर कोई भी सम्बन्ध तब तक न बनाने की घोषणा भारत सरकार को करनी चाहिए जब तक पाक पूरा सहयोग न करे और अपने यहाँ के बैठे दोषियों को सजा दिलवाने में भारत की मदद न करे और साथ ही उस घोषणा का कड़ाई से पालन भी करना चाहिए. आख़िर भारत कब तक पाक के साथ इस एक तरफ़ा सम्बन्ध को ढोता रहेगा और उसके आतंकी हमलों में अपने निर्दोष नागरिकों को मरते हुई देखेगा जिनका किसी से कोई मतलब नहीं है ?    
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