मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

कोर्ट में अमरनाथ यात्रा

      सुप्रीम कोर्ट के जजों ने वार्षिक अमरनाथ यात्रा में इस वर्ष १३ जुलाई तक ७४ श्रद्धालुओं के विभिन्न कारणों से मरने के मामले को स्वतः संज्ञान में लेते हुए केंद्र और जम्मू कश्मीर सरकार को नोटिस देकर एक हफ्ते में उनसे जवाब माँगा है. यह सही है कि इस वर्ष जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मरे है वह संख्या बहुत अधिक है पर इस मसले पर अभी तक केंद्र या राज्य सरकार ने भी अपनी तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया था. संभवतः ऐसा मौसम के कारण ही हो रहा हो पर जिस तरह से इन मौतों पर सरकारी चुप्पी छाई हुई थी अब कोर्ट ने उसे तोड़ने का और ज़िम्मेदार लोगों से जवाब तलब करके जनता के मन की बात ही रख ली है. यह वार्षिक यात्रा कुछ वर्षों पूर्व तक केवल कुछ हज़ार यात्रियों तक ही सिमटी रहती थी पर जिस तरह से यातायात के संसाधनों से आसानी हुई और आतंकियों के इस यात्रा पर हुए कुछ हमलों के बाद देश में इस यात्रा के बारे में और लोगों को पता चला तो उसके बाद से हर वर्ष पूरे देश से श्रद्धालुओं की संख्या में निरंतर वृद्धि ही होती जा रही है. पूरी यात्रा को पहले जिस स्तर पर चलाया जाता था आज भी वही तरीक़ा इसके लिए अपनाया जा रहा है जबकि संसाधनों के हिसाब से अब इसमें भी भारी वृद्धि की आवश्यकता है.
          जम्मू और कश्मीर के लिए यह यात्रा आर्थिक और सामजिक संतुलन बनाये रखने का काम करती है क्योंकि घाटी और राज्य के अन्य स्थानों के लोग वर्ष भर इस यात्रा का इंतज़ार करते हैं जिससे उनको वर्ष भर के लिए कुछ आमदनी हो जाती है और उनकी आर्थिक दशा सुधरती है फिर भी आज तक इस यात्रा के मार्ग और मार्ग में दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में कोई गुणात्मक सुधार सरकारी स्तर पर नहीं दिखाई देता है जिससे इस यात्रा में ढेरों कमियां सामने आने लगती हैं. इस यात्रा पर आने वाले यात्री श्रीनगर और अन्य मनोरम स्थलों को देखने का मोह छोड़ नहीं पाते हैं जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है. पूरे हालात देखकर यह नहीं लगता है कि यह स्थिति उसी राज्य में है जहाँ के माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड ने यात्रियों को सुविधाएँ देने में कोई कमी नहीं छोड़ी हुई है. कुछ तो ऐसा अवश्य है कि जिससे सरकार को इस यात्रा के बारे में अधिक करने की ज़रुरत ही महसूस नहीं होती है जबकि घाटी में विपरीत मौसम के कारण पूरे वर्ष भर काम की कमी रहती है फिर भी इस यात्रा से जो भी आर्थिक स्थिति सुधारी जा सकती है उस पर भी सरकार का ध्यान नहीं रहता है.
          अब इस बारे में सरकार का क्या रूख रहता है यह तो पता चलेगा ही पर सरकारों के पास केवल बहाने बाज़ी के स्थान पर कुछ भी करने के लिए नहीं होता है. जो लोग इस यात्रा पर जाते हैं उन्हें किसी भी समय विपरीत मौसम को भी झेलना पड़ता है जिससे बचने के लिए रास्ते में कोई व्यवस्था नहीं होती है. बालटाल और पहलगाम के रास्ते में जितनी व्यवस्था श्रद्धालुओं के विभिन्न संगठनों द्वारा की जाती है उसके मुकाबले सरकारी व्यवस्था कहीं भी नहीं टिकती है. अच्छा हो कि इस मसले पर राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों को इस यात्रा और राज्य के उन निवासियों के प्रति समझे जिससे इस यात्रा को सुगम बनाया जा सके और श्रद्धालुओं के इस तरह सुविधाओं की कमी के कारण मरने की संख्या को भी कम किया जा सके. राज्य सरकार को इसे अपने दोहरे कर्तव्य को निभाना चाहिए क्योंकि इन यात्रियों से पूरे राज्य और खासकर कश्मीर घाटी की देश भर के धार्मिक पर्यटकों से जो आमदनी होती है वह वहां की बेरोज़गारी की समस्या को काफ़ी हद तक कम करने का काम कर सकती है. अब यह सरकार पर है कि उसे कौन सा मार्ग पसंद आता है.        
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