मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 16 जुलाई 2012

पाक अधिकारी और स्वैच्छिक सेवा

         पाक के डिप्टी अटार्नी जनरल खुर्शीद खान के भारतीय धार्मिक स्थलों में स्वैच्छिक सेवा के मुद्दे को जितना बड़ा बना दिया गया है उससे यही लगता है कि भारत पाक के रिश्तों में बहुत कुछ ऐसा भी है जो या तो हम जानकार देखना नहीं चाहते या फिर वह हमें दिखाई ही नहीं देता है. धार्मिक स्थलों में आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा को सबसे बड़ा पुण्य का काम माना जाता है और यह माना जाता है कि जो इस स्थानों पर आता है अगर उसकी सेवा कर दी जाये तो सीधे उस परम शक्ति का आशीर्वाद ख़ुद ही मिल जाता है जो पूरी दुनिया को चलाने में लगी हुई है. हर धर्म में इस तरह की सेवा का अपना स्थान है पर सिख धर्म में इसे सबसे बड़ा और पुण्य कर्म माना गया है इसीलिए कितने भी बड़े पद पर पहुंचे हुए सिख इसे एक पवित्र कारज मान कर करने के लिए हमेशा ही लालायित रहते हैं. शायद यही कारण है कि सिखों में जितनी सेवा भावना पायी जाती है आज उतनी कहीं और नहीं मिलती क्योंकि पद और प्रतिष्ठा को इस काम से न जोड़कर देखने के कारण ही आज सिख समाज सबसे अधिक अनुशासित और सेवा कार करने वाला बना हुआ है. 
         पाक के इस बड़े सरकारी अधिकारी ने इस तरह की सेवा दो वर्ष पहले शुरू की थी और जब वे पाक में यह करते थे तब उन पर कोई आपात्ति नहीं उठाई गयी पर जब यही काम उन्होंने भारत में किया तो पाक के कुछ झूठी शान वाले लोगों को यह लगा कि उन्होंने पाकिस्तान को नीचा दिखाया है ? खुर्शीद आलम स्पष्ट रूप से यह कह चुके हैं कि वे इस काम को अपने रूहानी सुकून के लिए करते हैं और पेशावर में अपहृत कर मारे गए सिख की हत्या के बाद से वे ऐसा पाकिस्तान में भी करते रहे हैं. उन्होंने अपने पर इस तरह के आरोप लगाने वालों से बहुत ही सामयिक सवाल उठाया कि पाक की छवि किसी धार्मिक स्थल पर सेवा करने वाले किसी पाकिस्तानी से ख़राब होती है या फिर अजमल कसाब जैसे दरिंदों से ? इस तरह की बातें करने के बाद पाकिस्तान में उनके लिए जीना बहुत ही मुश्किल होने वाला है क्योंकि पाक के लोग भारत के सामने इस तरह की किसी भी घटना में किसी पाकिस्तानी को शामिल होते नहीं देख सकते हैं भले ही वह कितना अच्छा काम ही क्यों न हो और वहां पर असहिष्णुता का जो आलम है उसके बाद तो किसी के लिए भी जीना बहुत ही मुश्किल होने वाला है.
         खुर्शीद आलम भारतीय पंजाब में एक २०० सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ जो भारत पाक के बीच विश्वास बहाली के काम को करने के लिए आया हुआ था. उसी क्रम में खुर्शीद आलम ने कई धर्मिक स्थानों पर इस तरह के प्रायश्चित के रास्ते को अपनाया था. इस पूरे मामले में आज भी खुर्शीद आलम जिस मज़बूती से अपनी बात को रख रहे हैं वह पाक जैसे देश में उनके लिए बहुत घातक हो सकती है. आज सरकार और कोर्ट उन्हें सुरक्षा दे सकती है पर आने वाले समय में उनके लिए कठिन दौर शुरू हो सकता है और पाक में जिस तरह से सरकार सेना और पूरे देश में कट्टरपंथियों का दबदबा है उसे देखते हुए उनके लिए अच्छे की कामना ही की जा सकती है. इंसानी हक़ों की बात इस्लामी नज़रिए से करने वाले तालिबान और पाक के कट्टरपंथियों को क्या खुर्शीद आलम का यह व्यवहार हज़म होगा ? अगर उनके इस तरह के बर्ताव की सरकार को आशंका थी उसे एक कोड ऑफ़ कंडक्ट के साथ उन्हें भारत भेजना चाहिए था उन्होंने तो यह काम केवल विश्वास बहाली के लिए किया जो पाक के सरकारी तंत्र के बूते में नहीं रह गया है.    
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी: