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रविवार, 15 जुलाई 2012

मनरेगा और पीएम

          महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना ( मनरेगा ) के संकलन और समीक्षा पर बोलते हुए पीएम मनमोहन सिंह ने जिस तरह से इस योजना की ख़ामियों के बारे में अपनी राय खुले शब्दों में दी और योजना आयोग को इससे जुडी सभी समस्याओं पर विचार कर इन्हें दूर करने की कोशिश करने के निर्देश दिए उससे यही लगता है कि सरकार अपनी इस महत्वपूर्ण योजना के बारे में बहुत गंभीरता से सोचती है. यह सही है कि मनरेगा विश्व की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना है जिसमें वास्तव में ज़रुरत मंदों तक धन पहुँचाने में सरकार को इतनी आसानी हुई है. मनरेगा के सामजिक प्रभाव को नकार नहीं जा सकता है फिर भी आज इसमें जिस स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है उसे कम करने से ज़मीनी हक़ीक़त में वास्तव में बहुत बड़ा बदलाव किया जा सकता है. इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देश को जिस ढांचे की आवश्यकता थी वह हमारे पास था ही नहीं और जिन प्रयासों से इस व्यवस्था को आगे ईमानदारी से बढ़ाया जा सकता था वह भी पूरी तरह से अपनाया नहीं जा सका जिससे इसमें बहुत सारी कमियां दिखाई देने लगी हैं.
        सबसे पहले इस पूरे मसले को सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से देखने की ज़रुरत है क्योंकि जब तक किसी भी योजना को संचालित करने में उसके मानवीय पहलू को नज़रंदाज़ किया जाता रहेगा तब तक वह अपने असली स्वरुप को किसी भी तरह से नहीं पा सकती है ? इस योजना के लिए मूलभूत आवश्यकता लाभार्थियों के सही चयन और उनके बैंकों में खाते खुलवाने की सुविधा सबसे पहले होनी चाहिए क्योंकि जब तक इसका लाभ सीधे लाभार्थी के खाते में नहीं पहुंचेगा तब तक किसी भी तरह से बिचौलियों का वर्चस्व ख़त्म नहीं किया जा सकेगा और इन बिचौलियों के रहते यह योजना केवल कुछ अंश के रूप में ही लाभार्थियों तक पहुँच पाती है. इस मामले में योजना आयोग को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि जब यह धन उसके माध्यम से सरकार मुहैया करा रही है और सरकारी क्षेत्र के बैंकों पर काम का बहुत दबाव है जिससे वे अपनी रोज़मर्रा की बैंकिंग भी नहीं कर पा रहे हैं तो उस स्थिति में सरकार या योजना आयोग किस तरह से इस धन को लाभार्थियों तक पहुंचा सकता है ? सरकार अगर चाहे तो असेवित क्षेत्रों में योजना आयोग और रिज़र्व बैंक की सहायता से निजी /क्षेत्रीय/ सहकारी या ग्रामीण बैंकों की सहायता मोबाइल एटीएम की व्यवस्था कर सकती है जो समय समय पर विभिन्न स्थानों पर जाकर जॉब कार्ड धारकों को धन उपलब्ध कराने का काम कर सकें या हर ग्राम सभा में एक सोलर चालित एटीएम लगाने की व्यवस्था की जा सकती है. जितने बड़े स्तर पर धन का दुरूपयोग हो रहा है उसे एक बार इस तरह के बुनियादी ढांचे पर खर्च करके काफी हद तक बचाया जा सकता है.
         योजना में कोई कमी नहीं है पर जिस तरह से योजना और देश का आकार है उसे देखते हुए भ्रष्टाचारियों के लिए इसमें धन की हेरा फेरी करना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि कभी कोई सरकार तो कभी कोई अधिकारी ही इसमें से धन निकलने के नए नए जुगाड़ तलाश लेते हैं जिससे सही लाभार्थियों तक इसका लाभ नहीं पहुँच पाता है. अब ख़ुद पीएम और केंद्र सरकार अगर इस बारे में कोई ठोस प्रयास करने के बारे में सोच रहे है तो इससे आने वाले समय में स्थितियों में बड़ा परिवर्तन भी आ सकता है. जिस तरह से ख़ुद पीएम ने पूरे मसले की समीक्षा की है उससे यही लगता है कि अब उन्होंने ख़ुद ही सरकार के कामकाज को जनता के सामने रखने का मन बना लिया है. राजनैतिक परिस्थितयां चाहे कुछ भी हों पर एक बात पर सभी दलों को एक हो जाना चाहिए कि आम जनता और विकास से जुड़े मुद्दों पर पहले से गहन विचार विमर्श कर लिया जाये और उसमें किसी भी तरह की राजनीति को न लाया जाए क्योंकि आम लोगों को भरोसे के साथ अपना हक़ चाहिए और उसमें भी हम कहीं न कहीं से अपने क्षुद्र स्वार्थों को लेकर लड़ाई लड़ने लगते है जिसका असर पूरे देश पर पड़ता है और विकास की इस दौड़ में हम कहीं न कहीं बहुत पीछे भी रह जाते हैं.         
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