मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 14 जुलाई 2012

कन्या भ्रूण हत्या और बीबीपुर

          हरियाणा के जींद जिले की ५००० से अधिक आबादी वाला ग्राम बीबीपुर हो सकता है कि हरियाणा के माथे से कन्या भ्रूण हत्या में आगे रहने की शर्मनाक स्थिति को पलटने का काम कर दिखाए. दो वर्ष पूर्व इस गाँव की जागरूक महिलाओं ने आगे बढ़कर परम्परावादी जाट समुदाय के बीच कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अपने स्तर पर काम करना शुरू किया था और आज वह काम समाज में इतना बड़ा रूप ले चुका है कि हरियाणा, दिल्ली, यूपी, राजस्थान की ३६० खापों को इस मसले पर विचार करने के लिए बीबीपुर में आमंत्रित किया गया है. आयोजकों का कहना है कि अगर हर खाप से १० लोग भी इस मुहिम में शामिल हुए तो हजारों मेहमानों के आने की सम्भावना है जिनके रहने और अन्य सुविधाओं के लिए ग्राम स्तर पर ही प्रबंध किये गए हैं. जिस स्तर पर निमंत्रण भेजे गए हैं और खापें और पचायतें अपने समाज के लिए कुछ भी अच्छा करने के लिए जुटती रही हैं उसे देखकर यही लगता है कि हो सकता है कि बीबीपुर का नाम इतिहास में इसलिए ही दर्ज़ हो जाये कि उसने इस भ्रूण हत्या के कलंक को धोने के लिए इतने बड़े स्तर पर प्रयास किये थे.
       ८० के दशक में जिस तरह से आई अल्ट्रा साउंड मशीनों का दुरूपयोग कन्या भ्रूण की गर्भ में ही पहचान और उनकी हत्या करने का जो सिलसिला चला आज तक वह पूरी तरह से जारी है जिसका खामियाज़ा आज पूरा समाज भुगत रहा है क्योंकि विवाह योग्य लड़कों के लिए लड़कियों की भारी कमी हो गयी है जिससे यहाँ के निवासियों को बिहार, बंगाल और केरल तक के विकल्पों पर विचार करना पड़ रहा है. स्त्री-पुरुष अनुपात में जिस तरह से तेज़ी से गिरावट आई आज वह समाज के लिए एक समस्या बनकर खड़ी हो गयी है. इस स्थिति से निपटने के लिए पूरे समाज के स्तर पर ठोस प्रयास की आवश्यकता है और इस बार बीबीपुर ने जिस तरह से खापों के चौधरियों को इस समस्या के निपटारे के लिए बुला लिया है उससे यही लगता है कि समाज के बेहतरी के लिए इस बार कुछ ऐसा सामने निकल कर आएगा जो वास्तव में पूरे समाज की दिशा बदल देगा.
      लड़की को बोझ मानने वाले भारतीय समाज के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके अपनी समस्या का समाधान करने का जो रास्ता अपनाया गया था आज वह किस तरह से पूरे समाज पर भारी पड़ रहा है यह सभी देख रहे हैं. जब यह समस्या सामजिक रूप से ख़तरनाक रूप लेने लगी तो सभी ने मिल बैठकर इससे निपटने के इस रास्ते को खोजा है. अच्छा ही हो अगर महापंचायत इस भ्रूण लिंग परीक्षण को ही खारिज़ कर दे जिससे इस तकनीक का उपयोग केवल बीमारियों का पता लगाने के लिए ही किया जाने लगे और इन पंचायतों से जुड़े हुए लोग किसी भी स्थिति में अपने यहाँ कन्या भ्रूण हत्या को पूरी तरह से रोकने का काम करने लगें. इस पूरे काम का असर भी आने में पूरे दो दशक तो लग ही जाने वाले हैं पर जिस तरह से आधुनिक सुविधाओं के दुरूपयोग से हमने प्राकृतिक संतुलन से छेड़छाड़ की है आज उसका खामियाज़ा वो बच्चे झेल रहे हैं हैं जिसमें उनका कोई दोष नहीं है केवल उनके अभिभावकों के कारण ही आज उनके लिए लडकियों की कमी हो रही है. देश आज बीबीपुर से आने वाले संदेश का इंतज़ार करेगा पर क्या इस तरह के चुपचाप होने वाले परिवर्तनों पर देश के मीडिया की नज़रें उतनी हैं जितनी बोरवेल में गिरे बच्चे पर होती हैं ? हमारी अपनी लापरवाही से अँधेरी सुरंगों में मरने वाले एक दो बच्चों पर तो इतना ध्यान पर रोज़ ही सुनियोजित तरह से कन्याओं को मारने की इस पूरी साज़िश पर ख़ामोशी क्या यह नहीं दिखाती कि हमारा मीडिया भी कहीं न कहीं से पुरुष की प्रधानता को अपने आधुनिक होने के ढिंढोरे पीटने के साथ ढोता रहता है ?             
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. ऐसी विरल घटनाओं को मिसाल के तौर पर समाज में सबके सामने लाने के लिए मिशन चलाया जाना चाहिए।

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