मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

फेयरनेस क्रीम में कितना फेयर ?

                एशियाई लोगों में अपने को गोरा दिखाने की चाह कितनी भारी पड़ सकती है इस बात का खुलासा विश्व स्वस्थ्य संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत और विश्व के अन्य देशों में किस तरह से उन प्रतिबंधित रसायनों का दुरूपयोग किया जा रहा है जो मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर डालते हैं. अभी तक जिस तरह से आम लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि गोरेपन की क्रीम लगाने से वे अधिक आकर्षक लगने लगेंगें अब उनके चेत जाने का समय आ गया है क्योंकि जिस तरह से इन उत्पादों में पारे के विभिन्न रूपों को प्रयोग किया जा रहा है व लम्बे समय में किडनी को ख़राब करने का काम भी करने में लगे हुए हैं और सबसे शर्मनाक बात यह भी है कि नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हुए इन कंपनियों द्वारा कहीं पर भी इस बात का उल्लेख भी नहीं किया जा रहा है कि वे यहाँ पर पारे का उपयोग कर रही हैं. चूंकि पारे को इस तरह से इस्तेमाल में लिए जाने पर रोक है क्योंकि उससे विभिन्न रोग हो सकते हैं तो वहां पर इसका उपयोग चोरी छिपे किया जा रहा है.
          देश में महिलाओं में गोरा दिखने की चाहत प्राचीन काल से ही रही है पर अब जिस तरह से पुरुषों के लिए भी इस तरह के उत्पाद आने लगे हैं उससे तो पूरी मानव जाति पर ही संकट आ सकता है क्योंकि जब इन प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग लम्बे समय तक किया जाता है तो ये पानी और त्वचा की नमी के माध्यम से शरीर में चले जाते हैं और किडनी के लिए बहुत ही हानिकारक साबित होते हैं. सबसे पहले तो हम भारतीयों को
अपने मन से त्वचा के रंग को लेकर फालतू की धारणाएं नहीं बनानी चाहिए क्योंकि यह सब केवल एक तरह की हीन मानसिकता है है जो हमें उन लोगों का आसानी से शिकार बना देती है जो हमारी इस कमज़ोरी का आर्थिक लाभ उठाना जानते हैं. सामाजिक ढांचे में रंग को इतना महत्त्व दिया जाना के तरह से सामाजिक बुराई ही है जिससे जितनी जल्दी पीछा छुड़ा लिया जाये वही ठीक है क्योंकि उसके साथ हम अपनी उस ग्रंथि को भी नहीं छोड़ पायेंगें जो हमारे मन में छिपी हुई है.
       देश में लोगों के स्वास्थ्य के साथ इस तरह का खिलवाड़ न होने पाए इसके लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों को अपना काम ठीक से करना सीखना ही होगा क्योंकि आज जो समस्या छोटी दिखाई देती है कल को वह पूरे देश में इस तरह के उत्पादों को उपयोग में लाने वालों के लिए मृत्यु का कारण भी बन सकती है ? स्वास्थ्य से जुड़े हर उद्योग के बारे में एक अलग से नीति होनी चाहिए जिससे आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करने वालों पर लगाम कसी जा सके और साथ ही नागरिकों के स्वास्थ्य को बचाया जा सके. इस तरह के उत्पादों के बारे में समय समय पर जांच करने की व्यवस्था होनी चाहिए और इन जांचों को किसी स्वतंत्र जाँच प्रयोगशालों में भी करवाना चाहिए क्योंकि सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण कई बार इन जांचों के सच को सार्वजनिक नहीं होने दिया जाता है. इस मसले पर अब कड़ाई से कदम उठाने की आवश्यकता है और अब केवल कानून बनाकर ही सब कुछ ठीक हो जाने की मानसिकता से भी हमें बाहर निकल आने की अभी ज़रुरत है.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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