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रविवार, 5 अगस्त 2012

मुलायम की कठोर चिंता

               यूपी सरकार को सत्ता संभाले ४ महीने होने को आ रहे हैं पर जिस तरह की आशा मुलायम ने अपने बेटे और सरकार के मुखिया अखिलेश से की थी लगता है अब उन्हें लगने लगा है कि सरकार उस स्थिति को नहीं बना पा रही है. शनिवार को जिस तरह से उन्होंने चेतावनी भरे लहज़े में कहा कि अगर यही रफ्तार रही तो २०१४ के आम चुनावों में पार्टी कोई करिश्मा कर पाने की स्थिति में नहीं रह पायेगी ? अभी तक पार्टी को यह लग रहा था कि वह अपनी २०१२ वाली कामयाबी को लोकसभा चुनावों में आसानी से दोहरा सकती है पर जब ज़मीनी हक़ीकत इससे बहुत अलग हो तो अच्छे अच्छों को सोचना ही पड़ जाता है ? २००७ की सफलता को इसी तरह से मायावती ने भी भुनाने की कोशिश की थी जिसमें उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिल पाई थी और जब दिल्ली में सरकार की बात होती है तो वही वोटर अब कांग्रेस या भाजपा को वोट दे देता है जो सपा/ बसपा को विधान सभा में भेजता है. मुलायम अखिलेश के लिए जो मार्ग बनाना चाहते थे वह अब बन चुका है पर २०१४ का जो बड़ा सपना उनकी आँखों में है उसे पूरा कर पाना इस सरकार के बूते की बात अभी नहीं लगता है.
         अगर सरकार के मुखिया के स्तर पर अखिलेश की बात की जाये तो मुलायम ने उनके साथ अन्याय ही किया है क्योंकि उन्होंने खुद को तो इस राजनीति से अलग कर लिया पर अपने पुराने घाघ साथियों से निपटने के लिए अखिलेश को छोड़ दिया है जबकि होना यह चाहिए था कि इस बार अखिलेश पर भरोसा करके उन्हें अपने सहयोगियों को चुनने की पूरी आज़ादी दी जाती और एक साल बाद उनके काम काज की समीक्षा की जाती फिर उसमें उनके प्रदर्शन को देखते हुए ही उनके बारे में कोई राय बनायीं जाती ? अखिलेश के पास लम्बी राजनैतिक विरासत तो है पर उनको अभी खुद का अनुभव भी पाना है और जब तक मुलायम, शिवपाल, आज़म जैसे खम्बे उनके भवन में लगे ही रहेंगें तब तक वे बहुत कुछ अपने हिसाब से कर भी नहीं पायेंगें ? अब इस समय मुलायम और सपा को यह तय करना ही होगा कि वे अखिलेश को क्या भूमिका देना चाहते हैं ? वे उन्हें एक ज़िम्मेदार नेता बनाना चाहते हैं या केवल अपने के अनुयायी की तरह ही उनके व्यक्तित्व का विकास करना चाहते हैं. दोनों ही भूमिकाओं में अखिलेश अपने को ढाल सकते हैं पर उन्हें इस लायक समझा तो जाये ?
        देश में जिस तरह से सत्ता की जोंकें विकसित हो गयी हैं वे किसी को भी नहीं बख्शती हैं और ज़रुरत पड़ने पर जिसके भरोसे होती हैं उसका भी खून चूसना शुरू कर देती हैं. अखिलेश को भी ऐसी ही जोंकों से पार पाने की ज़रुरत है पर जब तक उनके हर बड़े फ़ैसले पर पिताजी, चाचा और अन्य लोगों की बेवजह की निगहबानी रहेगी तब तक उनके क़दम उस मज़बूती से आगे नहीं बढ़ पायेंगें जिसकी यूपी को बड़े बदलाव के लिए ज़रुरत है ? अब भी समय है कि मुलायम को २०१४ के लिए अपनी टीम को साथ में लेना चाहिए और अखिलेश और युवा मंत्रियों के हाथों में यूपी को सौंप देना चाहिए पर इतने बड़े फ़ैसले के लिए खुद मुलायम भी तैयार नहीं हैं क्योंकि वे सरकार भी अपनी और आलोचक भी खुद वाली वही भूमिका निभाना चाहते हैं जो सोनिया गाँधी पिछले ८ वर्षों से दिल्ली में निभा रही है पर वे यह भूल जाते हैं कि केंद्र में सरकार चलाने के लिए जिस खूबी की आवश्यकता होनी चाहिए वह अभी उतना त्याग करने की स्थिति में नहीं है और यूपी में सपा के भरोसे केवल वे देश की सरकार को निर्देश नहीं दे सकते हैं. फिर भी देश में अगर यह चलन बढ़ता है कि पार्टी अध्यक्ष केवल अपनी पार्टी के लिए काम करना शुरू करें और सरकारें अन्य लोग चलायें तो यह देश के लिए अच्छा ही साबित होगा फिलहाल मुलायम अखिलेश को पूरा अधिकार दिए बिना अनसे इतनी बड़ी उम्मीदें कैसे कर सकते हैं ?    
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