मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 3 सितंबर 2012

टीटीई, यात्री और रेल

           धीरे धीरे और देर से ही सही पर रेलवे बोर्ड ने अब क़दमों पर ध्यान देना शुरू कर ही दिया है जो सीधे उसके यात्रियों से जुड़े हुए होते हैं इस कड़ी में ताज़ा उदाहरण टीटीई पर की जाने वाली कार्यवाही के सम्बन्ध में सामने आया है. अभी तक यह देखा जाता है कि ट्रेनों में वास्तव में जितने भी टीटीई ड्यूटी पर होते हैं उतनी संख्या में वहां पर दिखाई नहीं देते हैं और साथ ही यात्रियों को भी यह पता नहीं चल पाता है कि कितने लोग ड्यूटी कर रहे हैं जिससे कई बार यात्रियों को भी अपनी उन समस्याओं के लिए भटकना पड़ता है जो उन्हें टीटीई के माध्यम से आसानी से मिल सकती हैं. जिस तरह से ट्रेनों में चलने वाले स्टाफ़ का रवैया रहता है उससे तो यही लगता है कि जैसे रेल यात्री कोई बंधक हों और उनके कोई अधिकार नहीं हों पर वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि रेलवे की तरफ़ से जितने निर्देश दिए जाते हैं उनका उल्लंघन केवल जुगाड़ और भ्रष्टाचार के दम पर ही किया जाता है. अब ड्यूटी पर जाने वाले टीटीई को एक दिन पहले ही अपना नाम देना होगा और यह नाम रिज़र्वेशन चार्ट पर भी छपा होगा जिससे यात्रियों को यह पता चल सके कि उनके डिब्बे में कौन ड्यूटी पर है. किसी भी तरह की समस्या होने पर अब यात्री टीटीई की शिकायत उनके नाम से भी कर सकेंगें जिससे उन पर काम करने का दबाव तो बन ही जायेगा.
          जिन मुख्य मार्गों पर यात्रियों की संख्या पूरे वर्ष ही अधिक रहती है टीटीई अपना खेल वहीं पर पर खुलकर खेल पाते हैं क्योंकि अभी तक यात्रियों के लिए यह जान पाने का कोई साधन नहीं है कि ट्रेन की चार्टिंग होने के बाद किस तरह से टिकट पाया जा सकता है. इस भ्रष्टाचार के खेल में रेलवे खुद भी शामिल है इसलिए यात्रियों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है. अगर सर्वेक्षण किया जाए तो शायद ९५ % यात्रियों को यह पता ही नहीं होगा कि हर बड़े स्टेशन पर करेंट टिकट भी लिया जा सकता है जो कि चार्ट बनने के बाद ट्रेन जाने के बीच के ४ घंटों में ख़ाली रह गयी सीटों के आधार पर दिया जाता है. अभी तक जिस तरह से लम्बी वेटिंग लिस्ट होती है उसमें किसी भी प्रकार का संशोधन कब किया जाता है यह कोई नहीं जनता है क्योंकि कई बार इस लम्बी वेटिंग के बाद भी ट्रेन में बड़ी संख्या में सीटें ख़ाली ही रहती है और इन्हीं सीटों पर भ्रष्टाचार का खेल खेला जाता है. इस पूरे मामले में किस मार्ग पर कितनी सीटें किस कोटे में हैं यह कोई नहीं जानता है जिससे किसी भी स्थिति में यात्रियों को सीटों की सही स्थिति नहीं पता चल पाती है. इस तरह के खेल को बंद करने के लिए रेलवे को अब बड़े स्टेशनों पर करेंट बुकिंग की सीटों को दर्शाने की व्यवस्था भी करनी चाहिए जिससे पूरे मामले में भ्रष्टाचार का खेल बंद हो सके.
         रेलवे में जिस तरह से कार्यशैली होनी चाहिए अभी तक वह विकसित ही नहीं हो पायी है जिस कारण से भी कई बार यह महत्वपूर्ण संस्थान अपनी पूरी क्षमता से काम ही नहीं कर पाता है. अगर पूरी दक्षता के साथ रेलवे को चलाने के प्रयास किये जाएँ तो राजस्व और सुविधा दोनों ही मोर्चों पर रेलवे को बड़ी कामयाबी मिल सकती है. टीटीई केवल उन्हीं मार्गों पर मन से ड्यूटी करते देखे जा सकते हैं जहाँ पर उनको ऊपरी कमाई का लालच होता है और इसके लिए वे कुछ हिस्सा ऊपर तक पहुंचा कर अपने काम को अंजाम देते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि सभी लोग भ्रष्ट हैं कई बार यात्रा के दौरान ऐसे कर्मचारी भी दिखाई देते हैं जो इस तरह के काम का अलग से एक भी रुपया नहीं लेते हैं और मन से अपना काम करते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि उनके लिए कोई समस्या होती है पर वे अपने काम को पूरी निष्ठा के साथ करने में विश्वास करने वाले लोग होते हैं. खाली पड़ी सीट को देने में अधिकारिक शुल्क लेने के बाद भी आम तौर पर टीटीई सीट देने के लिए अलग से पैसे भी मांगते हैं जो उनकी ऊपर की आमदनी होती है. रेलवे को अपनी शिकायत व्यवस्था को और सुधारना होगा जिसके लिए एक शिकायत संदेश सेवा शुरू की जा सकती है जिस पर कुछ की वर्ड के साथ यात्री अपनी शिकायत  भी दर्ज कर पायें. कई बार समय की कमी और अपने गंतव्य तक पहुँचने की ख़ुशी भी मार्ग में हुई कठिनाइयों के प्रति आम लोगों को उदासीन बना देती है जिससे भी भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ शिकायत ही नहीं दर्ज़ हो पाती हैं.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें