मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

बराड़ पर हमला

                लन्दन में अपने परिवार के पास गए हुए सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल के एस बराड़ पर जिस तरह से चाकुओं से हमला किया गया उसके बाद भारत की उस नीति पर एक बार फिर से सवालिया निशान लगने लगे हैं जिनके तहत पूर्व सैन्य अधिकारियों और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में शामिल रहने वाले लोगों की सुरक्षा नीति में गंभीर कमियों के कारण ख़तरा बना रहता है. बराड़ देश के उन सच्चे सपूतों में से हैं जिन्होंने देश के राजनीतिज्ञों की नीतियों के कारण इस तरह की परिस्थितियों का सामना किया है जिसमें आपरेशन ब्लू स्टार के समय सेनाध्यक्ष रहे जनरल वैद्य उतने भाग्यशाली नहीं रहे थे और उनके १९८६ में ही पुणे में हत्या कर दी गयी थी. बराड़ की किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो नहीं थी उन्होंने ने तो उस समय के सरकारी आदेशों के तहत ही सेना के उस टुकड़ी का नेतृत्व किया था जिसने हरमंदिर साहब के पवित्र प्रांगण से दुर्दांत आतंकियों को खदेड़ने का काम किया था. इस बात पर बहुत बहस हो चुकी है कि खालिस्तान के नाम पर आतंक को बढ़ावा कैसे मिला और किस तरह से देश ने बहुत बुरा समय देखने के बाद इससे मुक्ति पाई पर अब इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि उन पूर्व सेनाधिकारियों और जवानों की रक्षा कैसे की जाये जिन्होंने देश के लिए ही यह सब किया था ?
            भारत में बराड़ को पूरी सुरक्षा मिलती है क्योंकि उन्हें आज भी उसी तरह की सुरक्षा दी गयी है जिससे यहाँ पर कोई खालिस्तान समर्थक आतंकी उन पर हमला न कर सके पर जब वे विदेश अपने किसी काम से जाते हैं तो उनके कार्यक्रम के बारे में किसी को भी सूचना आख़िर कैसे मिल जाती है और जब लन्दन में आज भी खालिस्तान समर्थक लोगों की कमी नहीं है तो उन्हें वहां पर उनके प्रवास के दौरान पूरी सुरक्षा मुहैया कराने के बारे में कैसे नहीं सोचा गया ? आज जब ऐसी स्थिति फिर बन गयी है तो उन लोगों के लिए के बार फिर से वही संकट सामने आ चुका है जिस कारण से वे खुलेआम घूम फिर नहीं सकते हैं, जिस तरह से यह पूरा मामला सुर्ख़ियों में आ गया उसके बाद एक बार फिर से खालिस्तान समर्थक कोई व्यक्ति बराड़ पर अब भारत में भी हमला करने की कोशिश कर सकता है ? अच्छा ही हुआ है कि महाराष्ट्र सरकार ने बराड़ को पूरी सुरक्षा दिए जाने और उनकी सुरक्षा की समीक्षा करने पर सहमति जताई है ऐसा करके हम केवल सेना के उन अधिकारियों और जवानों के प्रति अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन ही कर रहे हैं जो वे हमसे इस देश के नागरिक के तौर पर चाहते हैं.
        इस तरह के महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा के लिए एक सुदृढ़ नीति होनी चाहिए जिससे समय पड़ने पर या ऐसे किसी भी आपरेशन में भाग लेने वाले सैनिकों को पूरी सुरक्षा हमेशा दिलवाई जा सके. अच्छा हो कि इस तरह के लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सेना के कन्धों पर ही रहे जिससे नागरिक सरकार की बदलती नीतियों के कारण इनकी सुरक्षा कभी भी ख़तरे में न आने पाए ? सेना के छावनी क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से ठीक होते हैं क्योंकि वहां पर आम लोगों के लिए आना जाना उतना आसान नहीं होता है इसलिए देश के विभिन्न छावनी क्षेत्रों में इस तरह के लोगों के रहने की व्यवस्था होनी चाहिए और उसे किसी भी परिस्थिति में किसी भी तरह से बदला न जा सकता हो. व्यक्ति विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप उसे उसके घर से नज़दीक के छावनी क्षेत्र में आजीवन रहने की सुविधा सेना की तरफ से ही मिलनी चाहिए जिससे सेना में महत्वपूर्ण आपरेशनों में काम भाग लेने वाले सैनिकों और अधिकारियों के मनोबल पर बुरा असर न पड़ने पाए ? देश के नेता जिस तरह से अपने छुद्र स्वार्थ के लिए कुछ भी करने से नहीं चूकते हैं हमारे इन वीर जवानों को उनके इन स्वार्थों से पूरी तरह से सुरक्षित किये जाने की आवश्यकता है. देश को नीतियां ही नहीं धरातल पर उनका ठोस क्रियान्वयन भी चाहिए और अगर नेता इस काम में विफल रहते हैं तो सेना को अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें