मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

यूपीए अब यूपी के भरोसे

                       जिस तरह से रोज़ ही यूपीए सरकार का समर्थन करने वाले दल और नेता उसके द्वारा की जा रही आर्थिक सुधार की घोषणाओं में फंसे हुए हैं उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल ही है कि इस तरह की गतिविधियों से सरकार को कोई ख़तरा होने वाला है. आज की स्थिति में जिस तरह से एक बार फिर से दिल्ली की सत्ता की चाभी फिर से यूपी के दलों के हाथों में आ गयी है उससे यूपीए को आसानी ही हुई है क्योंकि प्रदेश में एक दूसरे की धुर विरोधी सपा और बसपा किसी भी परिस्थिति में अभी चुनाव नहीं चाहती हैं क्योंकि बसपा को अभी अपनी शैली में अपने संगठन के स्तर पर काम करने के लिए और समय चाहिए जबकि जन आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे सीएम अखिलेश की वर्तमान परिस्थितयों में मुलायम कोई अग्नि परीक्षा नहीं चाहते हैं क्योंकि उनकी राजनीति पारी की अभी तो शुरुवात ही हुई है ? ऐसे में मनमोहन सरकार के पास काम चलाने भर का बहुमत इन दोनों दलों की मजबूरियों क चलते बना ही रहेगा जिससे फिलहाल उसके लिए अभी कोई संकट नहीं दिखाई दे रहा है. जिन मुद्दों पर इन दोनों दलों की राय अलग अलग है वहां पर केंद्र सरकार अपने लिए इनका बारी बारी से मुद्दों पर आधारित समर्थन जुटाने का जुगाड़ कर चुकी है जिससे ये दोनों दल केंद्र सरकार को विभिन्न मुद्दों पर कोसते तो रहेंगें पर इस तरह की परिस्थिति में समर्थन वापसी के बारे में नहीं सोचेंगें.
           केंद्र सरकार ने इधर जल्दी में ही जो आर्थिक सुधार करने की दिशा में कदम बढ़ाये हैं उसके बाद से देश को आर्थिक चक्का जाम से मुक्ति मिलने की संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं. जिस तरह से सेंसेक्स में सुधार दर्ज किया जा रहा है और बाज़ार में निवेशकों का भरोसा लौटना शुरू हो रहा है उसका लाभ उठाया जाना चाहिए. इन आर्थिक सुधारों पर चलने की घोषणा से ही रूपये में तेज़ी से मजबूती आई है जिससे हमारे डॉलर आधारित आयात पर असर पड़ना शुरू हो चुका है रूपये की मजबूती से जहाँ एक तरफ़ पेट्रोलियम कम्पनियों पर दबाव कम होगा वहीं अन्य जगहों पर भी इसका असर दिखाई देगा. ऐसे में यूपीए के रणनीतिकारों ने जिस तरह से मुद्दों पर आधारित समर्थन का जुगाड़ कर लिया है वह अब उसके लिए ठीक ही है क्योंकि हर मुद्दे पर सरकार की टांग खींचने वाले दल यदि सरकार से अलग ही रहे तो अच्छा ही है. एक काम चलाऊ सरकार देश के लिए सही निर्णय कभी भी नहीं ले सकती है और जब तक दीर्घकालिक हितों पर ध्यान देकर नीतियां नहीं बनायीं जायेंगीं तब तक देश को उनका सही लाभ भी नहीं मिल पायेगा. सपा आज भाजपा के आने से डर रही है क्योंकि वह मुसलमानों को लगातार यह संदेश देना चाहती है कि उसने केंद्र सरकार को समर्थन सिर्फ इसलिए ही दिया था कि कहीं भाजपा सत्ता में न आ जाये और उनको लगता है कि इससे उनके वोट बैंक पर असर नहीं पड़ेगा.
          बसपा जिस तरह से पूर्व तैयारियों के साथ सभी तरह के चुनाव लड़ा करती है वह उसी क्रम में चल रही है और इस समय उसके द्वारा २०१४ के आम चुनावों के लिए प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप दिया जा रहा है और साथ ही उसे भी यही लगता है कि अगर अभी चुनाव हो जाते हैं तो इस बात की भी संभावनाएं हैं कि भाजपा क्षेत्रीय दलों पर कुछ बढ़त बनाने में सफल हो जाये जिससे उसकी ही संभावनाओं पर असर पड़ने वाला है और अभी सपा सरकार की उतनी कमियां भी सामने नहीं आ पाई हैं जिनसे त्रस्त होकर आम जनता उसका दामन छोड़कर २००७ की तरह बसपा की तरफ़ झुक जाये. यूपी के इन दोनों दलों की मजबूरियों के चलते फिलहाल मनमोहन सरकार के लिए कोई ख़तरा तो नहीं आने वाला है और जिस तरह से इन दोनों दलों से यूपीए के रणनीतिकारों ने सम्बन्ध बना लिए हिं उनके चलते भी एक मुद्दे पर एक के बिदकने से दूसरा समर्थन के लिए अपने आप ही राज़ी हो जायेगा और वोटिंग की दशा में सरकार को बचाने के लिए सदन से अनुपस्थिति भी रहने के विकल्प पर जा सकता है ? इस सभी राजनैतिक परिस्थितियों के बीच इस तरह के मुद्दों आधारित जुगाडू समर्थन का भरोसा मिल जाने पर ही मनमोहन सिंह ने उन आर्थिक सुधारों को तेज़ी से लागू करना शुरू कर दिया है जो काफी समय से लंबित चल रहे थे. फिलहाल सत्ता की चाभी एक बार बहुत समय बाद यूपी के पास आई है पर मजबूरी में कोई भी इस चाभी से कोई बड़ा खज़ाना पा सकने की स्थिति में भी नहीं है.      
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