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मंगलवार, 6 नवंबर 2012

बिना पन्ने के राशन कार्ड ?

             उत्तर प्रदेश में सरकारी तंत्र किस तरह से काम करता है इसकी बानगी तो समय समय पर मिलती ही रहती है पर इस बार राशन कार्डों से जुड़े मामले ने वास्तव में पिछली बसपा सरकार और वर्तमान सपा सरकार की मंशा पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं. केवल राजनीति के नाम पर कुछ भी बोलने और धरातल पर कुछ करने में कितना बड़ा अंतर होता है यह प्रदेश के राजनैतिक तंत्र और प्रशासनिक तंत्र की कारगुजारियों से पता चल जाता है. पिछली बार प्रदेश में मुलायम सरकार के समय २००५ में ही नए राशन कार्ड बनाये गए थे जिनकी अनुमानित आयु ५ वर्ष मानी जाती है पर पिछली बसपा सरकार अन्य कामों में इतना व्यस्त थी कि उसने गरीबों से जुड़े इन राशन कार्डों की उपयोगिता २ साल बढ़ा दी पर यह नहीं सोचा कि जिन कार्डों में केवल ५ वर्षों तक के राशन को भरने के लिए ही पन्ने लगाये गए हैं उनको अगले दो वर्षों तक कैसे चलाया जायेगा ? ७ महीने बीत जाने पर अखिलेश सरकार को भी यह पता नहीं है कि जिन जगहों पर कार्डों में पन्ने ही नहीं बचे हैं वहां पर सामग्री का वितरण कैसे करवाया जायेगा ?
       यहाँ पर गौर करने लायक बात यह है कि ये दोनों ही पार्टियाँ गरीबों के मसीहा होने का दावा करने से नहीं चूकती है बसपा जहाँ पिछड़ों के लिए जूझने की बातें करती हैं वहीं सपा मुसलमानों की हितैषी होने का स्वांग किया करती हैं जबकि आज भी प्रदेश में यही दोनों वर्ग सबसे वंचित हैं ? फिर इन दलों की समझ में यह बात कैसे नहीं आ पाई कि बिना नए राशन कार्डों के सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कैसे चलाया जायेगा ? बसपा ने स्मार्ट कार्ड परियोजना को कभी भी पूरे मन से लागू करने के बारे में नहीं सोचा जिससे जो काम २००९ में ही होना चाहिए था वह आज भी शुरू नहीं हो सका है और सपा तो कालाबाजारी करने वालों को समर्थन देने के लिए बदनाम होती ही रहती है फिर प्रदेश में किस तरह से आम गरीबों को राशन मिल सकेगा यह अभी किसी को नहीं पता है ? गरीबों और दलितों के लिए सरकारी तंत्र और डंडे के दम पर महारैली करना एक बात होती है और उनके लिए वास्तव में कुछ ठोस करना बिलकुल दूसरी बात ?  
             अब जो समय बीत चुका है उसे तो वापस नहीं लाया जा सकता है पर इस समस्या से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश तो जारी किये ही जा सकते हैं. पूरे देश में जनता के हक़ों से इस तरह का मज़ाक कहीं और दिखाई नहीं देता है पर आम लोगों से जुड़े हुए मुद्दे उठाने वाले लोग भी इन मुद्दों पर चुप होकर क्यों बैठ जाते हैं ? प्रदेश में विपक्ष दल के नाम पर बसपा ही है क्योंकि कांग्रेस और भाजपा यहाँ पर तीसरे और चौथे स्थान के लिए लड़ते हैं पर उन्हें भी आम लोगों से जुड़ी हुई यह समस्या कहीं से भी दिखाई नहीं देती है ? कहने के लिए सभी दल देश का कल्याण करने में लगे हुए हैं पर वास्तव में ये सभी कालाबाजारी करने वालों के हितैषी हैं और नहीं चाहते हैं कि किसी भी तरह से यूपी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार हो सके क्योंकि तब इनके लिए चोर बाज़ारी में लगे हुए भ्रष्ट लोगों से चंदा कैसे मिलेगा और बिना चंदे के इतने खर्चीले चुनाव ये लोग लड़कर संसद और विधानसभा तक पहुँच कर देश की ऐसी तैसी कैसे कर पायेंगें ?  
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