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सोमवार, 5 नवंबर 2012

लश्कर की बदली नीति

            पाक स्थित चरमपंथी गुट लश्कर-ए-तैयबा ने अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए जम्मू कश्मीर के धार्मिक स्थलों के साथ अब मोबाइल टावरों को ध्वस्त करने की योजना बनाई है. अभी हाल में पकड़े गए लश्कर के कुछ आतंकियों ने इस बात के बारे में पुलिस को बताया कि १५ जुलाई को घाटी में धार्मिक स्थलों को जलाये जाने के पीछे भी लश्कर का ही दिमाग़ था. अभी तक जितनी बड़ी संख्या में घुसपैठ होती रहती थी सुरक्षा बलों की सख्ती के कारण उसमें बहुत कमी आ गयी है जिससे आतंकियों के लिए घाटी के आम युवकों को बहलाकर पाक ले जाना और उन्हें जिहाद के लिए तैयार करना थोड़ा कठिन अवश्य हो गया है. राज्य में शांति बहाली के उपायों के बाद जिस तरह से विकास की बातें शुरू हुई हैं आतंकियों और पाक के लिए वह भी चिंता का विषय बनी हुई हैं क्योंकि एक बार विकास के दौर में पहुँचने के बाद जब घाटी के लोगों को अपनी आर्थिक ताक़त का एहसास होगा तो उन्हें बहलाना और भी मुश्किल हो जायेगा.
          इस्लाम के नाम पर जिस तरह से पाक समर्थित आतंकी गुट इस्लाम का मज़ाक उड़ाने में लगे हुए हैं वैसा कोई दूसरा उदाहरण कहीं भी नहीं मिल सकता है क्योंकि केवल विरोध करने के लिए ही किसी मस्जिद या सूफी की दरगाह को आग़ लगा देने से इस्लाम का किस तरह से भला हो सकता है यह सभी जानते हैं ? आतंकी मुसलमानों में व्याप्त अशिक्षा का लाभ उठाकर विभिन्न स्थानों पर इस्लाम पर ख़तरे की बात करके उन्हें बरगलाने का प्रयास करते रहते हैं जिससे आज भी कई बार ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता है. पाक में एक मस्जिद में इमाम ने जिस तरह से पवित्र क़ुरान के कुछ पन्ने फाड़कर एक १३ साल की बच्ची के बस्ते में रखे वह आख़िर इस्लाम के किस स्वरुप को दिखाता है ? भाईचारे को बढ़ावा देने वाले इस धर्म को आज उन चंद लोगों ने अपने कब्ज़े में कर रखा है जिन्हें इसकी वास्तविकता और सच्चाई से कुछ भी लेना देना नहीं है.
         कश्मीर घाटी में आज आतंकी हताश हैं और वे वहां पर आर्थिक प्रगति नहीं चाहते हैं क्योंकि संपन्न और शिक्षित लोगों से आतंकियों के मंसूबे कभी भी पूरे नहीं हो सकते हैं यह बात उन्हें भी पता है. एक तरफ जहाँ पूरे देश में लगातार चलने वाली संचार क्रांति का लाभ कश्मीर के दूर दराज़ के लोगों को भी मिलने से जहाँ सुरक्षा बलों के लिए आतंकियों को दबोचना और आसान हो गया है वहीं दूसरी तरफ़ आम लोगों का भी जुड़ाव अपने लोगों से अच्छे से हो गया है. संचार के बेहतर प्रबंधन से विकास की गति ने घाटी के दुर्गम क्षेत्रों में भी विकास को बढ़ावा दिया है जिससे लोगों कि मुश्किलें काफ़ी हद तक कम हुई हैं. ऐसे में आतंकियों के इन मंसूबों को रोकने की दिशा में क़दम उठाने की ज़रुरत है क्योंकि जब आम कश्मीरी को यह पता चल जायेगा कि आतंकी अब किस तरह से आम मुसलमान के ही दुश्मन बने हुए हैं तो ज़मीनी हक़ीक़त में कुछ बदलाव अवश्य ही आएगा. फ़िलहाल विकास की इस दौड़ को घाटी के हर कोने तक पहुँचाने की ज़रुरत है और कश्मीर के धार्मिक स्थलों की सुरक्षा भी प्राथमिकता से करने की आवश्यकता है. 
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