मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

दिल्ली पुलिस और सरकार

           किसी भी बड़े फैसले को लेते समय जब केवल राजनैतिक लोगों की बातों को ही माना जाता है तब इसी तरह की प्रशासनिक समस्याएं सामने आती हैं. आज दिल्ली में दिल्ली प्रशासन और दिल्ली पुलिस के बीच में जो सामंजस्य की बहुत कमी के साथ ही अविश्वास दिखाई दे रहा है उसके लिए क्या इस तरह की व्यवस्था को बनाने वाले ही ज़िम्मेदार नहीं हैं ? आज जब पूरा देश दिल्ली की घटना पर आक्रोश से भरा हुआ दिखाई दे रहा है तब दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस के बीच सामंजस्य की बहुत कमी देखी जा रही है क्या कारण है कि जब दिल्ली के सभी राजनैतिक और प्रशासनिक ज़िम्मेदारों को एक साथ आकर काम करने की ज़रुरत है तो वे एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करने में लगे हुए हैं ? दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण शहर की व्यवस्था आख़िर किस तरह से की जानी चाहिए यह आज भी चुनौती का विषय बना हुआ है क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी जब इतने गंभीर मतभेद और आरोप लगाये जा रहे हों तो दोनों के बीच कितना तालमेल है यह आसानी से समझा जा सकता है ? अच्छा ही हुआ कि दिल्ली के लोगों को पता चल गया कि कई बार वे इसलिए भी परेशान हो सकते हैं कि उनके लिए प्रशासनिक व्यवस्था में लगे लोगों को कुछ पता ही नहीं है कि कब क्या किया जाना चाहिए ?
          पीड़ित लड़की का बयान लेने गयी एसडीएम उषा चतुर्वेदी ने जिस तरह से दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया कि उसने लड़की के बयान लेने में हस्तक्षेप किया और उनके अनुसार बयान नहीं लेने दिए गए उससे एकदम से मामले में नया मोड़ आ गया जबकि दिल्ली पुलिस ने सफाई दी कि लड़की की माँ के विरोध के कारण ही उन्होंने बयान के समय हस्तक्षेप किया था ? इस मामले की सच्चाई तो लड़की की माँ ही बता सकती हैं कि कौन सही और कौन ग़लत है पर इससे अविश्वास का माहौल तो दिखाई ही देता है जबकि इस समय बेहतर तालमेल की ज़रुरत सबसे ज्यादा है. पुलिस जिस तरह से हर काम में अपनी मनवाने के चक्कर में रहती है तो संभवतः उसकी तरफ़ से ऐसा कुछ किया भी गया हो पर पूरे मामले में सबसे गंभीर बात यह है कि एसडीएम द्वारा भेजी गयी गोपनीय चिट्ठी आख़िर मीडिया तक कैसे पहुंची कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली पुलिस पर दबाव बनाने के लिए ही ऐसा किया गया हो ? अगर चतुर्वेदी को उनके अनुसार बयान नहीं लेने दिया गया था तो वे बाहर आते ही दिल्ली पुलिस की कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगा सकती थीं फिर उन्होंने दो दिनों तक किस बात का इंतज़ार किया ? कहीं इस मामले को ढाल बनाकर दिल्ली सरकार दिल्ली पुलिस की कमान अपने हाथों में लेने का खेल तो नहीं खेल रही है जबकि दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के बजाय केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आधीन ही बेहतर तालमेल से काम कर सकती है यह अभी तक सिद्ध हो चुका है.
         यह अच्छा ही हुआ कि इतना विवाद होने के बाद पीड़ित लड़की का एक बार फिर से मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने बयान लिया है क्योंकि कानूनी तौर पर उनके बयान का अधिक महत्त्व होता है. जब ऐसा ही था तो सरकार को पहले ही उनके माध्यम से बयान दर्ज करवाने चाहिए थे फिर इस तरह के विवाद के बाद यह कदम उठाकर संवाद हीनता का परिचय देना क्या आवश्यक था ? दिल्ली पुलिस ने चतुर्वेदी पर यह आरोप भी लगाया कि पूर्वी दिल्ली दंगों के समय भी उस इनके साथ परेशानी का सामना करना पड़ा था तो क्या दिल्ली सरकार के पास यही एकमात्र अधिकारी हैं जो दिल्ली पुलिस से जुड़े मामलों में भेजी जाती हैं ? यदि एक बार विवाद हुआ भी था तो प्रशासनिक हलकों में उसको भूल जाना चहिये पर उसका असर अगर अभी भी दिखाई देता है तो यह चिंता का विषय है. दिल्ली सरकार भी पुरानी घटना को देखते हुए किसी अन्य अधिकारी को इसके लिए नियुक्त कर सकती थी पर बेहद संवेदन शील मामले में इस तरह की बातों ने जनता के सामने प्रशासनिक नाकारापन की एक और मिसाल पेश कर दी है. पुलिस का काम करने का अपने ही तरीक़ा पूरे भारत में है और उसको बदलने की ज़रुरत है क्योंकि अब देश में लोगों को कुचलने की ज़रुरत नहीं है बल्कि उनके साथ सामंजस्य बैठाकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है. इसमें देश की किसी भी राज्य या दिल्ली पुलिस को भी एक तरह से सोच बदलने की तरफ़ सोचना ही होगा तभी उसका मानवीय चेहरा सामने आ पायेगा.     
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां:

  1. आशुतोष जी, मुझे नहीँ लगता कि वयान दर्ज कराने के मामले मेँ ऊषा चतुर्वेदी और दिल्ली पुलिस के बीच समन्यवय न होने को इतना तूल दिया जाना चाहिए।
    ये बात भी समझ से परे है कि अगर दिल्ली पुलिस की प्रश्नावली के अनुसार वयान दर्ज किए जाते तो परेशानी क्या थी? ऊषा चतुर्वेदी को ये सब कहने की क्या जरुरत थी? अन्ततः केस तो दिल्ली पुलिस को ही मजबूत बनाना है।

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  2. अगर हो सके तो अपना EMail मुझे बताने की क्रपा करेँ। आपसे बात करने मेँ अच्छा लगेगा।
    amitbharteey@gmail.com

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  3. शानदार लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!!

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