मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

और वह हार कर भी जीत गयी....

                             दिल्ली में शर्मनाक घटना में दरिंदगी का शिकार बनी उस लड़की ने आख़िर मौत से हार मान ली पर जिस तरह से उसने अपनी इस जिंदगी की लड़ाई में पूरे देश को हिलाकर रखा दिया उसके बाद यही कहा जा सकता है कि उसने भले ही अपनी जिंदगी हार दी हो पर अपनी जिंदगी के बदले उसने देश की सोयी हुई आत्मा को झकझोर कर जगा दिया है. पूरे देश में हर दिन पता नहीं कितनी जगहों पर इस तरह से महिलाओं के ख़िलाफ़ विकृत मानसिकता वाले लोग ऐसी घिनौनी हरकतें करते रहते है और सामजिक ताने-बाने के कारण पीड़ित लड़की या उसका परिवार इसमें चुप रहना ही बेहतर समझते हैं जिससे इन बीमार मानसिकता वालों के हौसले और बढ़ जाया करते हैं. अब यह सही समय है कि सरकार इस मामले को केवल दिल्ली के स्तर की समस्या न समझते हुए इसे पूरे देश की समस्या समझे और जिस तरह के प्रयासों को शुरू किया गया है उन पर सख्ती से अमल भी किया जाये. मौत से इतने दिनों तक संघर्ष करने वाली बहादुर लड़की के इस बलिदान को बेकार साबित नहीं होने देना चाहिए क्योंकि जब हम सभी मिलकर कुछ सही और कठोर उपाय कर पायेंगें तभी इस समस्या पर लगाम लगायी जा सकेगी.
             इस विषम परिस्थिति में अब पूरे समाज की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि उस लड़की के बलिदान से कुछ सीख लें और अपने घरों में कम से कम ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करें जिससे हमारे घरों के बच्चे तो महिलाओं और लड़कियों को सम्मान की दृष्टि से देखने की आदत बना सकें. यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम समस्या की सही पहचान करने के बाद उसके समाधान पर गंभीर चिंतन करें हमारे पुरुष प्रधान समाज ने हमेशा से ही अपनी कमज़ोरियों को अपना हथियार बनाकर महिलाओं के ख़िलाफ़ उसका दुरूपयोग किया है ठीक इसी तरह से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले इस तरह के अपराधों के लिए आज भी लोग उनके पहनावे को ग़लत बताते हैं जबकि हमारे नैतिक मूल्यों में इतनी गिरावट आ चुकी है कि हम अपने घरों में बच्चों को महिलाओं का सम्मान करने के लिए सिखा ही नहीं पाते हैं ? यहाँ पर भी हमारी परवरिश का दंश हमारी पुरुष प्रधान मानसिकता के कारण महिलाओं और लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है जिसके लिए कोई कुछ नहीं कहता है ? यदि किसी का चारित्रिक गठन इतना कमज़ोर है कि वह पहनावे के कारण भटक जाता है तो अवश्य ही उसे फिर से सब कुछ बदलकर सिखाने की ज़रुरत है क्योंकि हम वह शिक्षा और र्नैतिक मूल्य दे ही नहीं पा रहे हैं जिसकी सभ्य समाज में बहुत आवश्यकता होती है.
               इस विषम परिस्थिति में अब हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि पीड़िता के परिवार के साथ संवेदना रखते हुए हम अपनी भावनाओं पर अब संयम बनाये रखे क्योंकि अब किसी भी तरह की अराजकता किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई साधन नहीं बन सकती है. किसी भी परिस्थिति में हमें अपने संयम को नहीं खोना चाहिए क्योंकि जब भी अनावश्यक संघर्ष के रास्ते खुलते हैं तो उसमें निर्दोषों की ही बलि चढ़ती है. किसी भी शांति पूर्ण प्रदर्शन में जिस तरह से अराजक तत्व घुसकर प्रदर्शन को हिंसक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं वह मूल उद्देश्य को कहीं से भटका देती है और हमारा ध्यान भी भटक जाता है. यह आशा की जाती है कि अब उन वहशियों के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा भी चलेगा और देश के कानून में समय रहते विचार विमर्श के बाद उचित संशोधन किया जायेगा जिससे आने वाले समय में कोई भी व्यक्ति इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति करने से पहले हज़ार बार सोचे. देश में प्रदर्शन का सभी को अधिकार है इसलिए प्रदर्शनकारियों को भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर अधिक ध्यान देना चाहिए साथ ही पुलिस प्रशासन भी अपने को संयमित रखने का प्रयास करना चाहिए और इस तरह के किसी भी प्रदर्शन या धरने पर ध्यान रखकर केवल अराजक तत्वों को चिन्हित करने का काम करे. हमें कानून में बदलाव चाहिए और वह भी बिना किसी हिंसा के, अच्छा हो कि सभी राजनैतिक दल इस तरह के प्रदर्शनों से दूर ही रहें क्योंकि वे वोटों के लालच में भोली भाली जनता को उकसाने का काम कर सकते हैं.       
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