मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

घोटाले, कानून और जांच

                                 अतिविशिष्ट लोगों की सुरक्षा की दृष्टि से तैनात किए जाने वाले इटली के हेलीकाप्टर खरीद सौदे में जिस तरह से दलाली की बात सामने आई है उसके बाद से यह देखने वाले विषय होगा कि देश के कानून और जाँच व्यवस्था से इस मसले को किस तरह से निपटा जायेगा. हाल के कई वर्षों में किए गए किसी भी समझौते से यह मसला इसलिए भी अलग है क्योंकि इसकी खरीद के समझौते में पारदर्शिता की यह शर्त भी शामिल थी कि यदि इसमें किसी भी तरह की दलाली या कमीशन की बात सामने आई तो पूरा सौदा ही रद्द कर दिया जायेगा और पहली बार इस तरह की खरीद में सरकार भले ही दबाव में ही सही पर समझौते को रद्द करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लग गयी है. यह भारत के लिए रक्षा सौदों या अन्य तरह की रक्षा उपकरण बनाने और बेचने वाली कम्पनियों के लिए एक सीख का काम करेगी और हो सकता है कि आने वाले समय में इस तरह की खरीद में पूरी न सही तो कुछ हद तक पारदर्शिता अपनाई जाए. देश को अपने संसाधनों के खर्च के बारे में जानने का पूरा हक़ है और इसीलिए जब भी देश इस तरह के मामलों को सख्ती से निपटने के रास्ते पर चलना शुरू कर देगा तो उससे आने वाले परिदृश्य पर पूरा असर दिखाई देने लगेगा.
                               समय बीतने के साथ जिस तरह से इस समझौते में शामिल रहे लोग अब ऐसे संवैधनिक पदों पर पहुँच चुके हैं जिनसे सीधी पूछताछ कर पाना किसी भी सरकारी जांच एजेंसी के बूते से बाहर है ऐसी स्थिति में देश के कानूनों की दुहाई देकर मामले को रोक नहीं जाना चाहिए बल्कि इन संवैधानिक पदों पर बैठे हुए लोगों द्वारा खुद ही आगे आकर पूरी पारदर्शिता के साथ जांच में सहयोग करना चाहिए साथ ही विपक्ष को भी इन संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों का नहीं बल्कि उन पदों का भी कुछ हद तक सम्मान करना चाहिए. देश में किसी भी जांच को रोज़ ही नए आरोप लगाकर उसमें सनसनी फ़ैलाने के किसी भी प्रयास से भी बचना ही चाहिए क्योंकि जब तक इटली सरकार पूरा सहयोग नहीं करेगी तब तक कुछ भी सही रास्ते पर नहीं चल पायेगा. इटली की सरकार और वहां की कम्पनियों पर अनर्गल आरोप भी नहीं लगाए जाने चाहिए क्योंकि यदि इटली सरकार को कुछ भी न करना होता तो वह सरकारी कम्पनी होने के कारण इस सौदे को फ़िलहाल दबा सकती थी पर भारत के भ्रष्टाचारी तंत्र से किसी भी अन्य देश की तुलना करना सही नहीं होगा इससे हमारे देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर नकरात्मक असर पड़ता है.
                             इस मामले को भी बोफोर्स की तरह लटकाए जाने के स्थान पर शीघ्रता से निपटाने के बारे में सोचा जाना चाहिए जिससे जिनका भी दोष साबित हो उन्हें दण्डित किया जा सके और कानून की धमक सभी को सुनाई भी दे सके. बोफोर्स में आज तक देश ने सिवाय बदनामी के और क्या पाया है जबकि सौदा होने के बाद तोपों की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं पाई गई साथ ही आज तक दुनिया की किसी भी अदालत में यह साबित नहीं हो सका है कि उसमे किसी को दलाली दी गयी थी ? यह धंधा इतनी गोपनीयता के साथ चलाया जाता है कि उसमें शामिल लोगों के बारे में खुद कम्पनियों को भी ठीक तरह से पता नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में तो देश में अब गुणवत्ता के आधार पर चयन के बाद भी कम्पनियों को इस बात की छूट दी जाए कि अपने उत्पाद के प्रचार प्रसार के लिए पूरे सौदे का कितना हिस्सा किसी मद में खर्च कर सकती हैं जिससे इस अनावश्यक रूप से होने वाले विवादों से बचा जा सके क्योंकि सभी जानते हैं कि इन कम्पनियों द्वारा पूरे विश्व में इस तरह से अपने एजेंटों के माध्यम से उत्पादों को बेचने की दिशा में काम किया जाता जाता है. साथ ही देश की बढ़ती रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब देश के औद्योगिक समूहों को रक्षा उत्पाद बनाने के लिए प्रत्साहन भी दिया जाना चाहिए.
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