मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

एपीएल-बीपीएल और खाद्य सब्सिडी

                        महत्वपूर्ण नीतिगत मामलों में सुधार की तरफ एक और क़दम बढाते हुए केंद्र सरकार जिस तरह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रबंधन में संशोधन करने जा रही है उससे कुछ हद तक खाद्य सब्सिडी के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है फिर भी ये सुधार उस स्तर तक पहुँच पाने में सफल नहीं हो सकेंगें जिनकी अभी देश को ज़रुरत है. नयी नीति में जिस तरह से सरकार का यह मानना है कि गरीबों और इस सुविधा के लाभार्थियों के चयन के स्थान पर अब व उन लोगों को चिन्हित करने का काम करेगी जिन्हें यह सुविधा नहीं दी जानी चाहिए जिससे इस तरह के विशेष सुविधा वाले कार्डों को बनवाने की होड़ अपने आप ही ख़त्म हो जाएगी. सरकार ने जिस तरह से प्रस्ताव में यह भी रखा है कि ग्रामीण क्षेत्र की ७५% और शहरी क्षेत्र की ५०% आबादी को मिलाकर कुल ६७% आबादी को यह सस्ता अनाज दिया जायेगा उससे भी पूरी व्यवस्था में कुछ सुधार होने की आशा की जा सकती है. किसी भी सुधार को पूरी सफलता के साथ लागू करने के लिए जहाँ उसका कानूनी रूप में मज़बूत होना आवश्यक होता है वहीँ यह भी ज़रूरी होता है कि उसे पूरी ईमानदारी के साथ लागू भी किया जाए.
                देश को आज अधिकतर क्षेत्रों में पुरानी और अप्रभावी हो चुकी नीतियों को बदलने की सख्त ज़रुरत है पर अभी तक जिस तरह से अनमने ढंग से ही कुछ सुधार किये जाते हैं उससे देश का किसी भी स्तर पर भला नहीं हो सकता है. आज देश की बढ़ती आबादी और तेज़ी से बढ़ते मध्य वर्ग के लोगों की संख्या में तालमेल बिठाकर बहुत कुछ किया जा सकता है पर इस तरह के किसी भी नीतिगत मुद्दे पर जितनी संवेदनशीलता और दृढ संकल्प की आवश्यकता होती है वह आज के नेताओं में दिखाई नहीं देती है जिस कारण से भी किसी भी योजना का पूरा लाभ उन लोगों तक नहीं पहुँच पाता है जिनके लिए वे बनाई जाती हैं. इस तरह के बड़े मुद्दों पर किसी भी तरह के मतभेद होने पर उनको दूर करने के प्रयास होने चाहिए जबकि आज केवल विरोध करने के लिए ही कुछ लोग विरोध करना शुरू कर देते हैं. इस प्रस्ताव को तमिलनाडु ने पूरी तरह से नकार दिया है और यूपी, बिहार और छत्तीसगढ़ को इसके कुछ प्रावधानों पर ही आपत्ति है जिससे इस पूरे मसले में एक बार फिर से राजनीति किए जाने के आसार दिखाई देने लगे हैं.
                    कोई भी बदलाव होने पर पुरानी व्यवस्था से काम करने वालों को कुछ दिक्कत अवश्य ही होती है उस स्थिति में अब सरकार को सभी राज्यों के साथ मिलकर विवाद के उन मुद्दों पर विचार करना चाहिए जिससे इस सुधार को समय रहते लागू किया जा सके. सभी जानते हैं कि आज की सार्वजानिक वितरण प्रणाली में बहुत सारी ख़ामियां मौजूद हैं और इन ख़ामियों का लाभ उठाकर पूरी प्रणाली में भ्रष्टाचार बहुत बड़े स्तर पर फैला हुआ है अब यही सही समय है कि उन क्षेत्रों को चिन्हित किया जाए जिन पर ध्यान देकर इन कमियों को दूर किया जा सकता है. सरकार और राजनैतिक दलों को यह भी पूरी तरह से सुनिश्चित करना चाहिए कि पूरी योजना को किसी एक राज्य या क्षेत्र के अनुसार ही न बना दिया जाए बल्कि उसमें ऐसे प्रावधानों को भी शामिल किया जाए जिनसे आने वाले समय में लाभार्थियों को सही तरह से सहायता भी पहुंचाई जा सके. देश में पुरानी नीतियों से अभी तक बहुत काम चलाया जा चुका है और अब ज़रुरत है कि पूरी तरह से काम करने वाले नए नियमों पर ध्यान देकर नीतियों को आज के समय के अनुरूप बनाया जाए.
      
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