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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

रेलवे परिचालन और यथार्थ

                          इस महीने आने वाले अगले रेल बजट से रेलवे को खुद भी बहुत सारी उम्मीदें हैं क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में शायद यह पहली बार होगा जब रेल मंत्रालय में गठबंधन समूह के सबसे बड़े दल का ही कोई नेता मंत्री पद संभाल कर बैठा है. लोकप्रिय और सस्ती राजनीति ने जिस तरह से पूरे देश में ही रेलवे के पूरे परिचालन समेत अन्य सभी क्षेत्रों पर दबाव बना दिया है उससे आने वाले समय में छुटकारा पाने की आवश्यकता है क्योंकि जब रेलवे के पास पाने मज़बूत सञ्चालन के लिए ही धन उपलब्ध नहीं होगा तो उससे बेहतर सेवाओं की उम्मीद किस तरह से की जा सकती है ? केवल राजनैतिक कारणों और गठबंधन की राजनीति में सौदेबाजी कर रेल मंत्रालय हासिल करने वाले क्षेत्रीय दलों के पास रेलवे की पूरे राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के बारे में सोचने का समय ही नहीं होता है जिस कारण से भी समग्र रूप से रेलवे का विकास नहीं हो पाता है. यह तो स्पष्ट ही है कि देश ने बहुत समय बाद मुश्किल से राजनैतिक सौदेबाज़ी से रेलवे को बंधक बनाकर रखने वाले नेताओं से फिलहाल पीछा छुड़ा ही लिया है पर इससे सारी समस्याएं ख़त्म नहीं हो जाती हैं बल्कि अब रेल मंत्री पर इस बात की भी पूरी ज़िम्मेदारी आ जाती है कि अब वे इसे कुशलता के साथ चलाने की अपनी मंशा को दृढ़ इच्छा शक्ति के रूप में सामने आने दें.
                कहा जाता है कि रेल और क्रिकेट ही इसी दो चीज़ें हैं जो देश को पूरी तरह से जोड़ने का काम करती हैं क्रिकेट में पैसे के खेल ने लोगों को उससे दूर करना शुरु कर दिया ही और रेलवे के पास आज पैसों की बहुत कमी है. जिस तरह से अभी तक अनुभवहीन लोगों की पूरी जमात ने रेलवे के परिचालन सम्बन्धी खर्चों और आमदनी के बारे में विचार किए बिना ही इसे चलाने का काम किया उस स्थिति में आज रेलवे के पास संसाधनों का टोटा हो चुका है और यदि इस बार भी यात्री किराये में आवश्यक सुधार नहीं किये जा सके तो आने वाले वर्ष में रेल बजट पेश करने वाले मंत्री को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. चुनावी सीमा में होने के बाद भी जिस तरह से मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने आर्थिक सुधारों की गति को तेज़ करने का काम शुरू किया है वह देश के लिए लम्बे समय में लाभकारी साबित होगा पर इस बार चुनावी वर्ष हो सकने के कारण भी संभवतः रेल मंत्री को उतनी छूट न मिल सके जितनी कि उन्हें आवश्यकता है पर कुछ आधारभूत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जो भी सुधार आवश्यक हैं उनको अविलम्ब शुरू कर दिया जाना चाहिए जिससे अगली बार से रेल बजट पेश करने वाले मंत्री के लिए सुधारात्मक रफ़्तार बनाई जा सके.
                   रेलवे को भी अब सस्ते विकल्प के रूप में आम जनता द्वारा देखा जाना बंद करना चाहिए क्योंकि सस्ती सेवा देने के चक्कर में रेलवे पर जो भार पड़ रहा है वह कहीं न कहीं से आने वाले समय में यात्रियों की सुरक्षा के लिए ही घातक साबित होने वाला है. देश के जिस स्थानों पर रेल नेटवर्क नहीं है वे लोग भी अपना काम किसी न किसी तरह से चलाते ही रहते हैं और उस परिस्थिति में जब रेलवे के परिचालन क्षेत्रों में इससे लोगों के सस्ती परिवहन सेवा मिल रही है तो उसमें भी सस्ते किराये का क्या मतलब बनता है ? राजनैतिक कारणों से जिस तरह से रेलवे पूरी तरह से पंगु हो चुकी है तो उसे विकास के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता है यदि लम्बे समय तक देश को रेलवे एक मज़बूत परिवहन के रूप में चाहिए तो अब जनता को रेलवे की परिचालन लागत के बाद उसके पास विकास के लिए धन उपलब्ध कराने की किसी भी सरकारी कोशिश का नेताओं के कहने पर विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि जब तक दूसरे दर्ज़े की राजनीति का शिकार रेलवे को बनाया जाता रहेगा तब तक वह पहले दर्ज़े की सेवाएं देने में किस तरह से सक्षम हो सकेगा ?  
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