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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

रक्षा खरीद नीति में संशोधन

                                डीआरडीओ के एक समारोह में बोलते हुए जिस तरह से रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में रक्षा सौदों में किसी भी तरह की दलाली को पूरी तरह से रोकने के लिए नयी नीति जल्दी ही बनाई जाएगी उससे देश के रक्षा खरीद परिदृश्य में बहुत कुछ बदल सकता है. अभी तक जिस तरह से हमारी अधिकांश आवश्यकता विदेशों में बने रक्षा उपकरणों से ही पूरी होती है उस परिस्थिति में हम अपनी रक्षा उपकरण उत्पादकता पर ध्यान दिए बिना इस तरह की दलाली से कैसे पीछा छुड़ा सकते हैं. आज के समय में जिस तरह से पूरे रक्षा उपकरण व्यवसाय में कमीशन का खेल चल रहा है उस स्थिति को देखते हुए एकदम से इस पर रोक लगा पाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है क्योंकि विदेशों में कोई भी जांच करने के लिए वहां से कितनी सहायता मिलती है यह बोफोर्स से लगाकर अभी तक के सभी मामलों में देखा ही जा चुका है और जब तक हमें उन अपराधियों तक पहुँचने की ईमानदार कोशिश करना ही नहीं आएगा तब तक हम किसी भी तरह से अपने को इस खेल से बचा नहीं पायेंगें. कई बार देश कि परिस्थितियां और राजनैतिक कारण भी इस तरह के क़दमों को उठाने से सरकारों को रोकते रहते हैं.
              इस क्षेत्र में सबसे आवश्यक रक्षा सौदा पारदर्शिता नियम होना चाहिए जो किसी भी तरह के छोटे या बड़े रक्षा सौदों में ज़रूर होना चाहिए जिसके अंतर्गत इस तरह के किसी भी आरोप सामने आने या सबूत के मिलने पर सौदे को या तो भारी अर्थ दंड लगाकर रोक जाये या फिर उसे पूरी तरह से ख़त्म ही कर दिया जाये और उस तरह के रक्षा उपकरण बनाने वाली कम्पनी से भविष्य में कोई उत्पाद भी न खरीदें जाएँ. देश की रक्षा ज़रूरतें जिस तरह से पाक और चीन के कारण रोज़ ही नई ऊंचाइयों को छूती जा रही हैं उस स्थिति में अब हमें कोई खास और प्रभावी क़दम उठाने ही होंगें. एंटोनी का अब तक का बहुत ही साफ़ सुथरा रेकॉर्ड रहा है और वे ही इस तरह के मामलों में संजीदगी से प्रयास करके कुछ बड़े बदलाव करा पाने में सक्षम हैं. यदि रक्षा मंत्री या मंत्रालय की तरफ़ से कुछ प्रभावी उपायों के साथ नए खरीद नियमों की घोषणा की जाती है तो पूरी संसद को इस बारे में विचार कर जल्दी ही नियमों में बदलाव करने के बारे में क़दम उठाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय रक्षा उत्पादकों ने अपने हितों को संरक्षित करने के एकजुटता बना रखी है अब उसे भी तोड़ने का समय आ गया है.
                          रक्षा मंत्री का देश के निजी उद्योगों को रक्षा उत्पादन में आगे आने का आह्वाहन भी देश की ज़रूरतों के साथ आर्थिक प्रगति में सहायक बन सकता है क्योंकि यदि देश में ही रक्षा उत्पादों को बनाने का काम अनुसंधान के स्तर से आगे बढ़कर कुछ करने की स्थिति तक पहुँच जाता है तो उससे जहाँ एक तरफ़ विदेशी मुद्रा की बचत होगी वहीं दूसरी तरफ़ इन उत्पादों की बिक्री के साथ विदेशी मुद्रा का अर्जन भी हो सकेगा. अब सरकार को नई नीति बनाने के बारे में अविलम्ब ही सोचना चाहिए जिससे आने वाले समय में तेज़ी से प्रगति करते हुए भारत को अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए विदेशों की तरफ़ न ताकना पड़े और देश के निजी औद्योगिक घराने भी इस तरह की तकनीक के साथ आगे बढ़ने के बारे में सोचना शुरू कर सकें. आज देश में जो भी निजी क्षेत्र का सहयोग रहता है वह केवल संयुक्त उपक्रमों के तहत वाहन बनाने तक ही सीमित है पर अब इस तरह की जोड़गाँठ से आगे बढ़कर सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो आने वाले समय में देश के रक्षा उत्पाद उद्योग को बहुत बड़े स्तर पर काम करने की छूट के साथ देश की ज़रूरतों को भी पूरा करने में सहयोग करने लायक बना सके. अब सारी पहल केवल रक्षा मंत्रालय और सरकार की सोच पर ही टिकी हुई है कि उनकी सोच आख़िर इस मुद्दे पर कहाँ तक जा सकती है. 
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