मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

शिंदे और गृह मंत्रालय

                                               भारत जैसे रोज़ ही सुरक्षा की नई चुनौतियों से जूझते देश में आज यह स्थिति हो गयी है कि देश के गृह मंत्री के पद पर एक ऐसे व्यक्ति बैठे हुए हैं जो राजनैतिक तौर पर अनुभवी तो बहुत हैं पर उनकी आज तक राजनैतिक और सरकारी काम काज करने की प्रक्रिया को पूरी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है. आज जब देश में इस तरह का माहौल है कि हर तरफ़ से लोग नागरिकों की सुरक्षा के लिए चिंतित नज़र आ रहे हैं तो उस परिस्थिति में शिंदे जैसे व्यक्ति के इस महत्वपूर्ण पद पर होने से गृह मंत्रालय में ही तेज़ी नहीं दिखाई देती है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी वरिष्ठ राजनेता द्वारा अपनी ज़िम्मेदारियों का उस स्तर पर अनुपालन नहीं किया गया है जितने महत्वपूर्ण पद पर वे बैठे होते हैं फिर भी सरकार चलाने वाले दलों की मंशा के कारण ही देश को इस तरह के मंत्रियों को ढोना ही पड़ता है. आज जब देश के गृह मंत्रालय में तेज़ी दिखाई देनी चाहिए तो वहां के काम काज में भ्रम की स्थिति दिखाई देती है जिससे भी कई बार वे कड़े क़दम नहीं उठाये जा सकते हैं जिनकी अविलम्ब आवश्यकता होती है.
                                    यह भी सही है कि पूरी तरह से किसी गृह मंत्री को ही इस तरह की घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि इस पूरे मंत्रालय में आज़ादी के बाद से आज तक जिस तरह से काम किया जाता है वह सभी को पता है. आज भी हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों की क्या हालत है यह किसी से भी नहीं छिपी है क्योंकि ये एजेंसियां देश हित में काम करने के स्थान पर सत्ताधारी दल के अनुरूप काम करती हैं जिससे भी सुरक्षा सम्बन्धी बहुत सारी बातें केवल राजनैतिक कारणों से अधूरी ही रह जाती हैं. विभाग के मुखिया को जिस तरह से आगे आकर काम करना चाहिए वह आज गृह मंत्रालय में पूरी तरह से नदारत है और यदि शिंदे के पास यह विभाग रखना सरकार की मजबूरी है तो उन्हें काम करने वाले और ऊर्जावान तीन राज्यमंत्रियों का सहयोग दिया जाना चाहिए और उनके कामों में स्पष्ट बंटवारा भी होना चाहिए जिससे पूरे विभाग में यह संदेश जा सके कि अब केवल समय काटने से काम नहीं चलने वाला है. देश को सुरक्षा के रोज़ ही नए कानूनों की आवश्यकता नहीं है पर आज के कुछ कमज़ोर कानूनों को सुधारने की भी ज़रुरत तो है ही इसमें केंद्र और राज्यों को समन्वय बनाकर आगे बढ़ना चाहिए.
                                   देश में बदलते सुरक्षा परिदृश्य में यदि एक पूर्ण रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद बनाई जाए तो उसके माध्यम से काफी कुछ किया जा सकता है पर आज के परिदृश्य को देखते हुए हर महत्वपूर्ण परिषद की अध्यक्षता पीएम से करवाए की परंपरा से भी पीछा छुड़ाने की ज़रुरत है क्योंकि अपनी सरकारी काम काज की व्यस्तता के चलते कोई भी पीएम इस तरह की किसी भी परिषद को पूरा समय नहीं दे पाते हैं जिससे भी इनके काम पर बुरा असर पड़ता है. आतंक के मसले पर देश में मौजूद कुछ लोगों को आतंकियों के मानवाधिकारों का रोना भी अब बंद करना चाहिए क्योंकि जो आम निर्दोष लोगों का खून बहा सकता है वह किसी भी तरह से मानव कहलाए जाने के क़ाबिल नहीं है इसलिए इस मसले पर राजनीति बंद कर ख़ुफ़िया एजेंसियों को पूरी छूट दी जानी चाहिए साथ ही भारत में पाक समर्थित कुछ इस्लामी चरमपंथियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में सरकार द्वारा विशेष प्रयास कर युवाओं और उनके परिजनों को आतंक के इस संभावित ख़तरे से बचाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए क्योंकि जब तक इस तरह के सामाजिक सुधार और आतंकियों के जीवन से मुस्लिम युवाओं को प्रभावित होने से नहीं रोका जाएगा तब तक रोज़ ही नए बच्चों को इस तरह से आतंकी कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहेगा.      
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