मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 10 मार्च 2013

भाजपा, जनता और आडवानी

                                     वरिष्ठ भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी ने अपने एक साक्षात्कार में जिस तरह से इस बात को स्वीकार किया है कि जनता का भाजपा से मोहभंग हुआ है उस बात के वास्तविक अर्थ तलाशे जाने की ज़रुरत है क्योंकि उनके जैसे देश के वरिष्ठतम नेता द्वारा इस तरह की चिंता ज़ाहिर किए जाने का अर्थ यही है कि वास्तव में उन्हें कुछ ऐसा अवश्य ही महसूस हो रहा है जो नेताओं द्वारा जनता की नब्ज़ तक पहुँचने में पार्टी की असफलता को ही दर्शाता है. इस बात का महत्त्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि उन्होंने अपने ही दल की आलोचना की है जिसे आत्म स्वीकारोक्ति भी कहा जा सकता है क्योंकि किसी भी नेता द्वारा किसी दूसरे दल की आलोचना करना एक सामान्य प्रक्रिया है पर जब आलोचना के स्वर अन्दर से ही सुनाई देने लगें तो वास्तव में वह चिंतनीय होता ही है. देश में राजनीति जिस स्तर तक पहुंची हुई है उस स्थिति में कोई भी यह आसानी से जान और समझ सकता है कि केवल छोटे लाभ को उठाने के लिए अक्सर ही हमारे नेता ऐसे क़दम उठा लिया करते हैं जिनसे लम्बे समय में देश का नुकसान ही होता है फिर भी जनता यह सब केवल देखती ही रहती है क्योकि उसके पास विकल्पों की कमी होती है.
                        यह सही है कि आडवानी ने इसे भाजपा के संदर्भ में ही कहा है पर आज यह बात पूरी तरह से केंद्र में संप्रग की अगुवाई कर रही कांग्रेस समेत अन्य राजनैतिक दलों पर भी उतनी ही प्रभावी है क्योंकि जनता का मोहभंग केवल एक दल विशेष से नहीं बल्कि देश के मौजूदा राजनैतिक तंत्र से ही हुआ है और कहीं पर भी कोई भी दल यह नहीं कह सकता है कि उसके द्वारा चलाई जा रही राज्य सरकार पूरी तरह से निरापद है भले ही वह कई बार सत्ता में लौट चुकी हो ? यह संकट किसी दल विशेष का नहीं बल्कि आज भारतीय राजनैतिक व्यवस्था का ही है क्योंकि आज की राजनीति ने पूरे देश में एक अलग तरह की संस्कृति उत्पन्न कर दी है और उसके बाद भी जनता को लोकतंत्र में यदि भरोसा जमा हुआ है तो वह भारतीय जनमानस की लोकतंत्र में आस्था को ही दर्शाता है जिसके कारण ही आज भी लोग वोट देने के लिए पंक्तियों में लग कर उत्साह से अपने मताधिकार का प्रयोग करने के बारे में विचार करने लगे हैं जबकि उनके मन में किसी भी राजनैतिक दल के लिए कोई सहानुभूति या समर्थन जैसी बात नहीं होती है ?
                    बड़े राष्ट्रीय दलों के साथ ही यह संकट क्षेत्रीय दलों पर भी उतना ही है क्योंकि कई राज्यों में मज़बूत विकल्प के अभाव में ही जनता उन्हीं दलों को चुनने के लिए बाध्य हो जाती है जिन्हें उसने पिछले चुनाव में धूल चटाई होती है ? आज जिस तरह से विभिन्न मुद्दों पर केवल अपने दल की राजनीति को देखते हुए ही क़दम उठाये जाते हैं उनसे देश और इन दलों का कभी भी भला नहीं हो सकता है क्योंकि किसी दल विशेष के एक वर्ग समूह या क्षेत्र के प्रति न्याय से अधिक संसाधनों के लुटाने से दूसरे पक्षों को यह लगने लगता है कि कहीं न कहीं से उनका अहित हो रहा है और वे आने वाले समय में अन्य दलों को इसी उम्मीद में समर्थन करते रहते हैं शायद कभी उनके लिए भी अच्छे दिन वापस लौट आएं ? आज यह संकट समझकर सभी दलों को इस बात पर विचार करना ही चाहिए कि अपने और देश के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए उन्हें सुधार करना ही चाहिए जिससे केवल तुच्छ राजनीति से आगे बढ़कर देश के बारे में सोचा जा सके और जनता का आज की तरह राजनेताओं और देश के राजनैतिक तंत्र से जो मोहभंग हो चुका है उसे भी फिर से विश्वास में बदला जा सके पर क्या आज के नेता इस बात के लिए खुद को कभी तैयार कर पाने में सफल ही सकेंगें यह तो समय ही बता पायेगा ?        
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. जनता का मोहभंग का सीधा अर्थ है कि जबतक नेताओं के कथनी और करनी में समानता नहीं होगी मोह नहीं होगा। सारे राजनीति दल इस मामले में समानधर्मी है। यहां तक की बामपंथी भी।

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  2. सत्य लिख रहे हो भाई.... कोई भी दल हो सबने अपनी अस्मिता खो दी है.... जनता मैं अपना विश्वास खोदिया है...

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