मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

महिला अधिकार और पंचायत

                           मध्य प्रदेश के एक गाँव से जिस तरह से एक लड़की की सुन्दरता ही उसके लिए अभिशाप बन गई उससे यही लगता है कि समाज आज भी अपनी पुरुष प्रधान ग्रंथि से बाहर नहीं आना चाहता है और जो भी इसमें उसके सामने आता है वे उसके ख़िलाफ़ कुछ भी करने का दुस्साहस दिखने से भी नहीं चूकता है ? इस घटना में जिस तरह से लड़की के चाचा ने ही सिर्फ उसकी सुन्दरता पर ही लट्टू होकर पहले उसका अपहरण कर उसके साथ अनैतिक कार्य किया और उसके बाद समाज में लड़की द्वारा शिकायत किये जाने पर पंचायत ने जिस तरह से इस पूरी घटना के लिए लड़की की सुन्दरता को दोषी मानते हुए उसके बाल मुंडवाकर बाज़ार में घुमाया और उसको मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया उससे आज की सामजिक मनोदशा को अच्छी तरह से समझा जा सकता है ? कल से ही पूरे देश में दुष्कर्म रोधी नए और कड़े कानून लागू किये गए हैं और उसके बाद भी जिस तरह से यह घटना हुई है उसके लिए किसी भी कानून से कोई मदद नहीं मिल सकती है क्योंकि कानून केवल तभी हरक़त में आता है जब उस पर दबाव बनता है ?
                        ज़ाहिर है कि आज भी इस तरह से घटने वाले सामाजिक अपराधों से निपटने के लिए जिस स्तर पर सामाजिक चेतना की आवश्यकता होती है आज वह संवेदना हमारे समाज से गायब होती जा रही है. गाँव की पंचायत ने भी जिस तरह से इस मामले में लड़की को ही दोषी ठहराया उससे भी यही पता चलता है कि आज भी चाहे कुछ भी हो जाए समाज में प्रभावशाली लोगों का कानून पर दबदबा बना ही हुआ है जिससे जो काम पंचायतों के ज़रिये सुलझाया जाना चाहिए वह इस तरह से और भी अधिक उलझा दिया जाता है. यह घटना तो किसी तरह से बाहर आ गई पर बहुत सारी ऐसी घटनाओं को स्थानीय समाज में प्रभाव रखने वालों के द्वारा दबा ही दिया जाता होगा और वे दुनिया के सामने आने से पहले ही ख़त्म हो जाती हैं ? इस घटना में पुलिस ने जिस तरह से सूचना मिलने पर आगे बढ़कर कार्यवाही की है उसके अतिरिक्त उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता है क्योंकि जिन स्थानों पर आज भी पंचों को ही सब कुछ माना जाता है वहां पर पुलिस का सामजिक मामलों में बहुत ही कम दखल हो पाता है.
                       देश भर में जिस तरह से नीच मानसिकता के लोग महिलाओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता का प्रदर्शन करना तो दूर उनके लिए सामान्य शिष्टाचार की बातें भी नहीं करना चाहते हैं उससे यही लगता है कि समाज में आज भी दो तरह की सोच पनप रही है जिसके पास यह समझने की शक्ति अभी भी नहीं आ पाई है कि पुरातन काल से महिलाओं के प्रति पनपी उनकी इस तरह की सोच को कैसे दूर किया जाए ? इस तरह का अपराध पूरी तरह से सामजिक अपराध है और इसके लिए पूरे समाज को ही सोचना होगा क्योंकि सरकारें केवल कानून में कड़े प्रावधान ही जोड़ सकती हैं पर उन प्रावधानों के माध्यम से उन क्षेत्रों में कोई भय उत्पन्न नहीं किया जा सकता है जहाँ पर आज भी महिलाओं को केवल एक वस्तु ही समझा जाता है. यदि ५६ साल का कोई अधेड़ किसी कम उम्र की लड़की का अपहरण करके दुष्कर्म करने के बाद पंचायत से उसी लड़की पर सुन्दर होने का इलज़ाम लगाये तो उस समाज की धारा को समझा ही जा सकता है ? आज जिस तरह से समाज में ही मंथन की आवश्यकता है हम उसे नहीं कर पा रहे हैं और केवल अन्य कानूनी उपायों में उलझ कर ही अपने कर्तव्य को पूरा मानकर कहीं किसी और महिला को ख़तरे में डालने का काम करने में लगे हुए हैं.  
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