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शनिवार, 18 मई 2013

सीबीआई की स्थिति और भ्रष्टाचार

                       जिस समय पूरे  देश में सीबीआई को सरकारी दखलंदाज़ी से मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को प्रस्तावित बदलाव के प्रारूप के लिए लगभग एक तरह की समय सीमा में बाँध ही दिया है उस समय इसके मुख्यालय के सामने कोयला घोटाले की जांच में सम्मिलित एक एसपी स्तर के अधिकारी को जिस तरह से रंगे हांथों घूस लेते पकड़ा गया है वह देश में आज भ्रष्टाचार की स्थिति को ही दर्शाता है. जब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दे रखे थे कि इस जांच से जुड़े हुए किसी भी अधिकारी का किसी भी दशा में स्थानान्तरण न किया जाए तो इस अधिकारी द्वारा मुख्यालय के सामने ही घूस लेने के दुस्साहस को आख़िर किस तरह से देखा जाए ? यह हाल तो तब है जब पूरे मामले की कड़ी निगरानी कोर्ट द्वारा की जा रही है जिस कारण से कोयला घोटाले की जांच से जुड़े सभी अधिकारियों की एजेंसी द्वारा आन्तरिक निगरानी भी रखी जा रही थी उस स्थिति के कारण ही इस अधिकारी को एक इंस्पेक्टर के साथ हिरासत में लिया गया है. इससे यह भी पता चलता है कि ये अधिकारी किसी से भी डरते नहीं हैं और अपने हितों के लिए कहीं भी कुछ भी करने से परहेज़ भी नहीं करने वाले हैं ?
                       देश में भ्रष्टाचार की वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सरकार ने सीबीआई को स्वतंत्र कर भी दिया तो आने वाले समय में इसके भ्रष्ट अधिकारियों पर किस तरह से निगरानी रखी जा सकेगी यह भी सोचने का विषय है क्योंकि स्वतंत्र हो जाने पर ऐसा भी हो सकता है कि यह एजेंसी पिंजरे में बाद तोते के स्थान पर खुले आकाश में उड़ते हुए गिद्ध में बदल जाए जो अपने शिकार की हर जगह तलाश करना शुरू कर दे ? इन एजेंसियों पर सरकारी दबाव कम से कम हो और इनका राजनैतिक हितों को संरक्षित करने में कोई नेता या सरकार किसी भी तरह से दुरूपयोग न कर सकें इसके लिए इस पर संसद या किसी अन्य संस्था या लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ इस पर निगरानी रखने के एक तंत्र का विकसित होना भी देश के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि केवल अधिकारों में बढ़ोत्तरी से इसके अनियंत्रित होने का एक और रास्ता भी खुल सकता है ?  इस पर नियंत्रण के लिए पीएम, गृह मंत्री, कानून मंत्री, लोकसभाध्यक्ष, राज्यसभाध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष को भी कुछ अधिकार प्राप्त समिति में रखने के बारे में अवश्य ही विचार किया जाना चाहिए.
                        देश के प्रशासन को चलाने के लिए जिस तरह से रोज़ ही अधिकारियों का तबादला किया जाता रहता है उस स्थिति में अच्छी तरह से शासन को चलाने के लिए जितनी कुशलता के साथ अधिकारी काम कर सकते हैं वे भी नहीं कर पाते हैं क्योंकि जब भी कुछ ऐसा होता है तो सरकारें पलक झपकते ही अधिकारियों को दूसरे विभागों में भेज दिया करती हैं जिससे भी काम करने के तरीके प्रभावित हुआ करते हैं. सामान्य प्रशासन से हटकर अन्य विभागों में काम करने वाले अधिकारियों का एक समूह या सेवा अलग ही होनी चाहिए जिससे वे अपनी पूरी सर्विस के दौरान किसी एक क्षेत्र में तो पारंगत हो ही जाएँ ? आज किसी बड़े अधिकारी को चुटकी में ही ऐसे विभाग में भेज दिया जाता है जिसके बारे में उसे कोई ज्ञान नहीं होता है और सरकार सोचती है कि ये बदले हुए अधिकारी जैसे सब कुछ कर सकने में समर्थ हैं ? अधिकारियों के संवर्गों को एक बार फिर से ठीक करने की आवश्यकता है और इसके लिए सामान रूप से एक ही क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों को भी एक ही संवर्ग में रखकर उनसे बेहतर परिणाम हासिल किये जा सकते हैं. देश को अधिकार प्राप्त संस्थाओं के मुकाबले आज ईमानदारी से काम करने वाले नेताओं और अधिकारियों की अधिक आवश्यकता है पर हम केवल शाखाओं पर ध्यान केन्द्रित करने में लगे हुए हैं जिससे भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं. 
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