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सोमवार, 20 मई 2013

संपत्ति पंजीकरण की नयी पहल

                                       दिल्ली सरकार ने संपत्ति पंजीकरण के सम्बन्ध में एक नयी पहल की है यदि उसे अमली जमा पहनाया जा सका तो आने वाले दिनों में यह देश में पहली ऐसी व्यवस्था होगी जिसमें संभवतः दलालों का कोई स्थान नहीं होगा और फर्जी संपत्ति पंजीकरण को भी कुछ हद तक रोकने में मदद मिलने लगेगी. अभी तक संपत्ति पंजीकरण के लिए पूरे देश में सामान्य व्यवस्था यही है कि खरीदने और बेचने वाले को सम्बंधित क्षेत्र के पंजीकरण कार्यालय में जाकर सरकार को कर देकर संपत्ति अपने पक्ष में करनी होती है जिससे लोगों का इन सरकारी कार्यालयों तक आने जाने में बहुत समय नष्ट होता रहता है और कई बार उनसे अनावश्यक रूप से दलालों की सेवाएं भी लेनी ही पड़ती हैं क्योंकि उनके बिना किसी भी परिस्थिति में यह काम संभव ही नहीं हो पाता है ? अब जब पूरे देश में लम्बे समय से चली आ रही रही इस व्यवस्था में इतनी ख़ामियां मौजूद हैं तो फिर इनको सुधारने के लिए उठाये गए किसी भी क़दम से नयी आशा तो जगती ही है.
                          दिल्ली सरकार की प्रस्तावित व्यवस्था में अब दिल्ली में स्थित किसी भी १३ पंजीकरण कार्यालयों में एक में जाकर पूरी दिल्ली में कहीं की भी संपत्ति का पंजीकरण कराया जा सकता है और साथ ही उसके पुरानी स्थितियों के बारे में भी जाना जा सकता है. प्रस्ताव के तौर पर यह बहुत ही अच्छा लगता है पर यदि इसमें भी पंजीकरण विभाग और दलालों ने मिलकर कोई अन्य रास्ता निकाल लिया तो पूरी व्यवस्था को सुधारने की यह क़वायद भी बेकार ही चली जाने वाली है. वैसे प्रस्ताव के रूप में यही लगता है कि आने वाले समय में इससे उन लोगों को बहुत आसानी हो सकती है जो वास्तविक मालिक से सही ढंग से संपत्ति खरीदना चाहते हैं पर अन्य तरह से धोखे से संपत्तियों को बेचने से रोकने के मामले में यह बदलाव क्या कर पायेगा यह अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है. देश में आज जो कानून हैं और उनके जो भी प्रावधान हैं उनके अनुसार कोई भी किसी भी संपत्ति को केवल स्टाम्प शुल्क अदा कर बेच सकता है जो बहुत सारे विवादों की जड़ है.
                           सरकारी कानून में इस तरह की कमी के कारण ही आज भी देश की अदालतों में संपत्तियों को ग़लत तरह से बेचे जाएं से रोकने और बेचे जाने के बाद स्वामित्व को सिद्ध करने के लिए असंख्य मुक़दमें चल रहे हैं क्योंकि देश में कोइ भी लाल किले से लगाकर ताजमहल तक की रजिस्ट्री कर सकता है क्योंकि किसी से भी उनका संपत्ति पर मालिकाना हक़ साबित करने को नहीं कहा जाता है और न ही ग़लत तरह से रजिस्ट्री करने वाले के ख़िलाफ़ कोई आर्थिक दंड लगाया जाता है जिससे भू माफियाओं के पास कानून की इस कमी का दुरूपयोग करने का भरपूर अवसर रहा करता है ? केंद्र सरकार को इस नियम में बड़े बदलाव के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि गलत तरह से बेचीं गई संपत्ति पर दबंग लोग आसानी से कब्ज़ा जमा लेते हैं और उसके बाद उसके असली मालिक के लिए स्थितियां बहुत ख़राब हो जाती है और वह पुलिस और अदालतों के चक्कर में उलझा रहता है. आज के समय सरकार को केवल अपने राजस्व से ही मतलब है जो किसी भी परिस्थिति में आम जनता के हित में नहीं है क्योंकि केवल इस तरह के कानून से ही जनता को अदालतों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर कर दिया जाता है. आम लोगों से जुड़े इस मसले पर आज तक किसी भी सरकार ने नहीं सोचा है पर कम से कम दिल्ली सरकार ने सुधार की तरफ क़दम तो बढ़ाया ही है.  
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