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मंगलवार, 21 मई 2013

यूपी दलित स्मारक घोटाला

                               यूपी में निर्माण के समय से ही विवादों में घिरे दलित महापुरुषों के स्मारक लोकायुक्त जांच के बाद १४.८८ अरब रुपयों के घोटाले और वित्तीय अनियमितता युक्त पाए गए हैं. इस मामले में लोकायुक्त ने माया के करीबी और बसपा के ताक़तवर मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी, बाबू कुशवाहा समेत १५ अभियंताओं और ढेर सारी आपूर्ति कर्ता फर्मों के विरुद्ध केस दर्ज़ कर उनसे धन वसूली करने की सिफ़ारिशें की हैं और साथ ही अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी विभागीय कार्यवाही की भी संस्तुति की है. पूरे मामले में बसपा अध्यक्ष का नाम इसलिए सामने नहीं आया है क्योंकि सीएम पद पर रह चुके किसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ जांच करने का अधिकार लोकायुक्त के पास है ही नहीं तो उस स्थिति में माया के ख़िलाफ़ वह किसी भी तरह की जाँच कर पाने की स्थिति में थे ही नहीं. वैसे भी जब यह निर्माण चल रहा था तब भी कुछ लोग दबे स्वर में इसमें बड़े भ्रष्टाचार की बात किया करते थे पर यूपी में माया सरकार होते हुए किसी भी ऐसे मामले में वित्तीय अनियमितता को माया बाकायदा प्रेस वार्ता में दलित विरोधी और मनुवादियों के काम बताने में नहीं चूकती थीं.
                               इस मामले में सबसे अहम् बात यह है कि लोकायुक्त ने नेताओं और अधिकारियों से इस धन की वसूली करने की बात भी कही है तो उस स्थिति में आपूर्ति करने वाली फर्मों के सामने भी बड़ी समस्या खड़ी होने वाली है क्योंकि अब वे भविष्य में इन नामों से प्रदेश में व्यापार नहीं कर पाएंगीं और उनसे भी धन की वसूली करने की शुरुवात होने से आने वाले समय में नेताओं और अधिकारियों के साथ मिलकर इस तरह के घोटाले करने से पहले ये फर्में हज़ार बार सोचना भी चाहेंगीं ?  परिस्थितियां चाहे जो भी हों पर जब इतनी बड़ी अनियमितता सामने आई है और सरकार भी अभी तक कार्यवाही करने के मूड में दिखाई दे रही है तो इसमें आरोपित लोगों के लिए आने वाले समय में बड़ी मुश्किलें आने वाली हैं क्योंकि अब इनको बचाने के लिए माया दलित विरोधी अपना पुराना कार्ड भी नहीं चल सकती हैं और जिस तरह से ये जांचें की जा रही हैं उस स्थिति में हो सकता है कि आने वाले समय में प्रदेश सरकार किसी ऐसी संस्था से पूरी जांच भी करवाना चाहे जिसमें मायावती को भी घेरे में लिया जा सके.
                              प्रदेश या देश में दलित महापुरुषों के नाम पर कोई स्मारक या पार्क बने इससे किसी को भी परेशानी नहीं है क्योंकि हर सरकार अपने आदर्शों के लिए इस तरह के प्रयास किया करती है पर जिस तरह से यूपी में इन स्मारकों के निर्माण में खुले आम लूट मचाई गई तो उसके बाद कोई दलितों के नाम पर भ्रष्टाचार का समर्थन कैसे कर सकता है ? इस मामले में बहुत गंभीरता है और सारी जांच तथ्यों पर आधारित है तभी इसके सामने आने के बाद भी माया ने चुप्पी लगा रखी है पर वे जब भी बोलेंगीं तो उनका वही दलित स्वाभिमान से हर मुद्दे को जोड्ने का वक्तव्य ही सामने आएगा और वे इसके लिए दलित की बेटी की तरक्की मनुवादियों से देखी नहीं जाती ऐसी बातें ही करती नज़र आयेंगीं. अच्छा होता कि उन्होंने इन स्मारकों की देखरेख खुद की होती और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के सामने आने के बाद दोषियों को खुद ही सजा दिलवातीं क्योंकि जो लोग उनके सपनो में भी भ्रष्टाचार कर सकते हैं वे आख़िर किस तरह से उनके लिए निस्वार्थ भाव से सामने आ सकते हैं ? भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें जितनी गहरी कर ली हैं उसमें माया जैसी सख्त प्रशासक भी कुछ नहीं कर सकीं या फिर उन्होंने से भी अपने हिस्से को लेकर चुप रहना ही बेहतर समझा और दलित स्वाभिमान के इन प्रतीकों को भ्रष्टाचार का अड्डा बनने के लिए खुला छोड़ दिया.        
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