मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 25 मार्च 2014

आधार कार्ड और पहचान

                                               अपने प्रारंभिक दौर में जिस तरह से आधार कार्ड को लेकर उत्साह बना था उसके बाद यह लगने लगा था कि सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों की तरह अब पूरे देश के नागरिकों के लिए एक ऐसी पहचान उपलब्ध हो जायेगी जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं भी किसी नागरिक के बारे में जानकारी जुटाई जा सकेगी. भारत जैसे विशाल देश में इस तरह का कोई भी कदम अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती ही है क्योंकि इस पूरी कवायद को जिस तरह से सरकारी मशीनरी के माध्यम से ही लागू करने की कोशिशें चल रही हैं उस परिस्थिति में इसमें तरह तरह की बाधाएं सामने आती ही जा रही हैं. बहुत स्थानों पर अभी भी आधार या एन पी आर का काम पूरा तो क्या शुरू भी नहीं हो पाया है तो उस स्थिति में आखिर किसी भी योजना को इस पहचान के आधार पर पूरे भारत में कैसे शुरू किया जा सकता है. अभी भी सरकार की तरफ से ऐसा कोई आदेश नहीं है जिसमें यह कहा गया हो कि बिना आधार के कोई भी योजना किसी नागरिक को नहीं उपलब्ध नहीं होगी.
                                              आधार जैसे मामले को पूरे देश को एक अभियान के तौर पर लेना चाहिए था पर इसमें भी जिस तरह से राजनीति की गयी उसके बाद यह तो तय ही हो गया था कि यह योजना भी किसी अच्छे अंत तक नहीं पहुँच सकती है क्योंकि सरकारी योजनाओं में छोटे से बड़े स्तर तक जनता के साथ सीधा सम्बन्ध हो जाने से सरकार के लिए किसी भी तरह की सब्सिडी देना और उसका नियंत्रण रखना और भी आसान होने वाला था. देश के सामने जिस तरह की सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं सदैव ही रहा करती हैं उस परिस्थिति में कुछ बांग्लादेशियों के कार्ड भी बनने की ख़बरें भी आती रहीं जिससे भी यह पता चलता है कि निचले स्तर पर इस योजना में जुड़े हुए लोगों के लिए यह केवल एक सरकारी कार्ड भर ही है और वे इसके माध्यम से देश को सुरक्षित रखने की हर कोशिश को नाकाम करने में लगे हुए हैं. अब जब यह योजना इतने बड़े कानूनी झमेले में उलझाई जा चुकी है तो इसकी सफलता हर स्तर पर संदिग्ध ही लग रही है और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों से इसकी राह और भी कठिन होने वाली है.
                                             सरकारी स्तर पर जिस तरह से अधिकारियों और विभिन्न विभागों के कर्मचारियों ने बिना कुछ सोचे समझे ही हर योजना में इस कार्ड की मांग करनी शुरू कर दी उसके बाद ही कोर्ट का यह निर्णय सामने आया है कि इसकी अनिवार्यता के सम्बन्ध में यदि कोई आदेश दिए गये हों तो उन्हें रद्द किया जाये. देश में इस तरह की किसी भी योजना के लिए काम करने के लिए जिस संकल्प शक्ति और समय बद्धता की आवश्यकता होती है हमारी व्यवस्था उसमें पूरी तरह से चूक जाया करती है जिससे भी कई बार राज्यों या केंद्र की बहुत ही अच्छी परियोजनाएं अव्यवस्था के चलते दम तोड़ देती हैं. यूपी जैसे राज्य में जहाँ पर पाकिस्तान की नज़रें हमेशा से ही लगी रहती हैं वहाँ पर एनपीआर का काम अब कुछ तेज़ी पकड़ पा रहा है जबकि इसे २०१२ में ही पूरा हो जाना चाहिए था. किसी भी केंद्र में बैठी हुई सरकार और राज्यों की सरकारों के सरोकार सदैव ही अलग लगा हुआ करते हैं और जब से भारत में क्षेत्रीय दल मज़बूत हुए हैं तब से राष्ट्रीय सुरक्षा और नीति पर खींचतान कुछ अधिक ही बढ़ी हुई है. अब देश को इस सबसे अलगे बढ़कर केवल देश को सुरक्षित बनाने और सरकारी योजनाओं को सही तरह से लागू कर पाने के लिए आधार जैसी परियोजना की आवश्यकता तो है पर राजनीति के चलते यह कब पूरी होती है यह तो समय ही बता पायेगा ?         
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