पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से देश की सुरक्षा एजेंसियों ने चुनाव के माहौल का लाभ उठाकर देश में बड़े नेताओं की सभाओं में आतंक फ़ैलाने की फ़िराक़ में लगे देश विरोधी तत्वों के पूरे समूह का पर्दाफाश किया है और उस सम्बन्ध में मिली जानकारी के दम पर ही यासीन भटकल की गिरफ्तारी के बाद आईएम की ज़िम्मेदारी संभाल रहा तहसीन अख्तर गिरफ्त में आया है वह निश्चित तौर से एक बड़ी सफलता है. देश के दुश्मनों की मंशा सदैव ही मुस्लिम युवकों को किसी तरह से अपने धार्मिक या सामाजिक प्रभाव का इस्तेमाल कर आतंक के समूह में लेकर उनसे आतंक की घटनाएं करवाए जाने के कई प्रयास अब सामने आ चुके हैं तो उस परिस्थिति में सुरक्षा एजेंसियों के सामने और भी बड़ी चुनौती हो जाती है क्योंकि जब पढ़े लिखे युवक भी इस तरह से आतंक के पैरोकार बनने लगें तो मुस्लिम समाज के साथ देश के सभी लोगों को इस बारे में नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है. नए लड़कों से आतंकी घटनाएं करवाने या उनके इस्तेमाल से पुराने आतंकी जहाँ सुरक्षित रहते हैं वहीं इन युवाओं के खिलाफ पहले से कोई मामले भी नहीं होते हैं ऐसे में देश या देश के बाहर से किये जा रहे ऐसे किसी भी प्रयास में जिससे नयी सुरक्षा चिंताएं सामने आती हैं इस पर देश को एक साथ सोचने की आवश्यकता है.
अच्छा हो कि इस तरह के किसी भी मामले से निपटने के लिए एक व्यापक नीति बनाई जाये और संदेह के आधार पर किसी को भी हिरासत में बिना मुक़दमा चलाये ही जेल में रखने की प्रक्रिया पर भी रोक लगायी जाये. मीडिया को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी भी कोई सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है और यदि कोई बड़ा आतंकी हिरासत में लिया गया है तो उसकी रिपोर्टिंग करने में वे सुरक्षा बलों के साथ तालमेल बिठाकर ही चलें न कि अपने स्तर से किसी भी मामले का मीडिया ट्रायल शुरू कर दें क्योंकि इस तरह की घटनाओं से समाज में सक्रिय उन तत्वों को ही मदद मिलती है जो देश में विद्वेष फैलाना चाहते हैं. निसंदेह इस तरह के मामलों में कार्यवाही करते समय पुलिस पर बहुत दबाव होता है क्योंकि यदि वे कुछ अधिक सख्ती कर दें तो उन पर भी आज मुक़दमें चल सकते हैं और यदि वे थोडा से भी ढीले हो जाएँ तो आतंक के पैरोकार भाग भी सकते हैं. ऐसी स्थिति में पुलिस के पास कितने विकल्प शेष बचते हैं और इस पर भी दलीय और वोटों की राजनीति और भी समस्या पैदा करती रहती है.
इन छापों पर जिस तरह से पहले कपिल सिब्बल और फिर विजय मल्होत्रा के बयान आये हैं वे उनकी अपनी पार्टी लाइन या वोट बैंक के अनुसार ही हैं पर क्या कुछ भी बोलने से पहले देश के सभी नेताओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके किसी एक बयान से सुरक्षा बलों के मनोबल पर क्या असर पड़ता है ? आज हमें यह देखने की अधिक आवश्यकता है कि देश में किसी भी स्थान पर होने वाली आतंकी घटना अंत में यूपी के आजमगढ़ की तरफ क्यों घूम जाती है क्योंकि अवश्य ही वहाँ पर कुछ ऐसा चल रहा है जिस पर हमारे नेता जान बूझकर आँखें मूंदे हुए हैं. किसी भी क्षेत्र में सभी आतंकी या सभी अच्छे लोग नहीं हो सकते ठीक उसी तरह से आजमगढ़ का मामला भी है क्योंकि जब तक स्थानीय युवकों को इस बारे में जागरूक नहीं किया जायेगा तब तक वे सीधे यहीं पर या खाड़ी देशों में काम करने के दौरान इस तरह के आतंकी दुष्चक्र में उलझते ही रहेंगें. जोधपुर में हिरासत में लिए गए बरकत का जिस तरह से स्थानीय लोगों ने समर्थन किया उससे भी यही पता चलता है कि पाक अपने मंसूबों को धीरे धीरे पूरा करने में लगा हुआ है और हमारे नेता केवल मुसलमानों के समर्थन या विरोध में खड़े होकर ही अपने कर्तव्य को पूरा समझ रहे हैं.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अच्छा हो कि इस तरह के किसी भी मामले से निपटने के लिए एक व्यापक नीति बनाई जाये और संदेह के आधार पर किसी को भी हिरासत में बिना मुक़दमा चलाये ही जेल में रखने की प्रक्रिया पर भी रोक लगायी जाये. मीडिया को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी भी कोई सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है और यदि कोई बड़ा आतंकी हिरासत में लिया गया है तो उसकी रिपोर्टिंग करने में वे सुरक्षा बलों के साथ तालमेल बिठाकर ही चलें न कि अपने स्तर से किसी भी मामले का मीडिया ट्रायल शुरू कर दें क्योंकि इस तरह की घटनाओं से समाज में सक्रिय उन तत्वों को ही मदद मिलती है जो देश में विद्वेष फैलाना चाहते हैं. निसंदेह इस तरह के मामलों में कार्यवाही करते समय पुलिस पर बहुत दबाव होता है क्योंकि यदि वे कुछ अधिक सख्ती कर दें तो उन पर भी आज मुक़दमें चल सकते हैं और यदि वे थोडा से भी ढीले हो जाएँ तो आतंक के पैरोकार भाग भी सकते हैं. ऐसी स्थिति में पुलिस के पास कितने विकल्प शेष बचते हैं और इस पर भी दलीय और वोटों की राजनीति और भी समस्या पैदा करती रहती है.
इन छापों पर जिस तरह से पहले कपिल सिब्बल और फिर विजय मल्होत्रा के बयान आये हैं वे उनकी अपनी पार्टी लाइन या वोट बैंक के अनुसार ही हैं पर क्या कुछ भी बोलने से पहले देश के सभी नेताओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि उनके किसी एक बयान से सुरक्षा बलों के मनोबल पर क्या असर पड़ता है ? आज हमें यह देखने की अधिक आवश्यकता है कि देश में किसी भी स्थान पर होने वाली आतंकी घटना अंत में यूपी के आजमगढ़ की तरफ क्यों घूम जाती है क्योंकि अवश्य ही वहाँ पर कुछ ऐसा चल रहा है जिस पर हमारे नेता जान बूझकर आँखें मूंदे हुए हैं. किसी भी क्षेत्र में सभी आतंकी या सभी अच्छे लोग नहीं हो सकते ठीक उसी तरह से आजमगढ़ का मामला भी है क्योंकि जब तक स्थानीय युवकों को इस बारे में जागरूक नहीं किया जायेगा तब तक वे सीधे यहीं पर या खाड़ी देशों में काम करने के दौरान इस तरह के आतंकी दुष्चक्र में उलझते ही रहेंगें. जोधपुर में हिरासत में लिए गए बरकत का जिस तरह से स्थानीय लोगों ने समर्थन किया उससे भी यही पता चलता है कि पाक अपने मंसूबों को धीरे धीरे पूरा करने में लगा हुआ है और हमारे नेता केवल मुसलमानों के समर्थन या विरोध में खड़े होकर ही अपने कर्तव्य को पूरा समझ रहे हैं.
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आतंकियों का समर्थन करने वाले स्थानीय लोग कौन हुये और उनके खिलाफ क्या होना चाहिये.
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