मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 4 मई 2014

चुनाव और सुरक्षा

                                                        यूपी के सुल्तानपुर में एक चुनावी बहस के दौरान जिस तरह से एक युवक ने खुद को आग लगायी और वह वहां पर उपस्थित बसपा नेता कमरुज़्ज़मा से लिपट गया और लखनऊ में इलाज के दौरान पहले उस युवक दुर्गेश सिंह और फिर बसपा नेता की दर्दनाक मौत हो गयी वह बहुत ही अप्रत्याशित घटना है. चुनाव के समय आम तौर पर जनता से दूर रहने वाले सभी नेता अपने को जनता का सच्चा हमदर्द साबित करने की कोशिश किया करते हैं जिससे उनकी सुरक्षा में लगी हुई एजेंसियों को बड़ी समस्या हो जाती है पर इस तरह से जब कोई भी जन सामान्य उठकर बिना कुछ कहे ऐसा कदम उठा ले तो उसकी पूरी जांच भी करनी आवश्यक है. बड़े नेताओं के मामले में तो सुरक्षा एजेंसियां पूरी चौकसी बरतती हैं पर हर जिले में होने वाले इस तरह के छोटे छोटे कार्यक्रमों के बारे में संभवतः उन्हें पूरी जानकारी भी नहीं होती है ऐसे में क्षेत्र में सक्रिय नेताओं की सुरक्षा को किसी तरह से निरापद बने जाये यह नयी तरह की चिंता है.
                                                            एक समय था जब देश और राज्यों के बड़े नेता आसानी से लोगों से मिल लिया करते थे पर जैसे जैसे देश के सामने सुरक्षा सम्बन्धी नए नए संकट खड़े होते गए उस परिस्थिति में नेताओं का लोगों से मिलना उतना आसान नहीं रह गया है जिसके बारे में अक्सर जनता शिकायत भी करती मिल जाती है. जब तक सारी परिस्थिति सही ढंग से नियंत्रण में न हो तब तक नेताओं को इस तरह से सबके सामने कैसे छोड़ा जा सकता है. इस मामले में तो पूरी जांच की आवश्यकता है क्योंकि वहां उपस्थित जन समुदाय में बहुत सारे नेता उपस्थित थे पर बसपा नेता को कहीं किसी साज़िश या व्यक्तिगत रंजिश के कारण ही तो नहीं शिकार बनाया गया है इस बात की भी जांच आवश्यक है. इसे किसी भी तरह से सामान्य तरह की दुर्घटना तो नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जिस तरह से खुद को आग लगाने के बाद युवक सीधे कमरुज़्ज़मा से लिपट गया उससे यही लगता है कि उसकी मंशा बिलकुल भी ठीक नहीं थी.
                                                    आज जिस तरह से रोज़ ही बढ़ते हुए टीवी न्यूज़ चॅनेल्स के बीच यह होड़ सी मची रहती है कि वे कुछ नया करके दिखाएँ तो उसकी क्रम में जनता के साथ नेताओं का संवाद बढ़ता ही जा रहा है और जब तक इस तरह के कार्यक्रमों के लिए पूरी अनुमति और सुरक्षा की व्यवस्था न हो तब तक इनकी अनुमति भी नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह अपने आप में बड़ी गंभीर चिंता है. चुनावी मौसम में जहाँ सुरक्षा बल पहले से ही अन्य तैयारियों में व्यस्त रहा करते हैं तो उस परिस्थिति में इस तरह के कार्यक्रमों के लिए पूरी सुरक्षा मिल पाना भी आसान नहीं होता है. सुरक्षा बलों की समस्याएं अपनी जगह हैं पर साथ ही इस बात पर विचार किये जाने की आवश्यकता है कि स्थानीय नेताओं को चुनावी मौसम में इस तरह के हमलों से बचा कर रखने की व्यवस्था भी होनी ही चाहिए क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक भी उपस्थित होते हैं और किसी भी हादसे में जान माल का नुकसान भी बड़े पैमाने पर हो सकता है.    
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