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सोमवार, 5 मई 2014

बाल विवाह और कानून

                                                                हाल ही में बाल विवाह पर अंकुश लगाये जाने की कोशिशों के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ने निमंत्रण पत्र पर वर-वधु की आयु छपवाने को आवश्यक बनाने के लिए एक आदेश जारी किया है जिसके बाद इस आदिवासी बहुल राज्य में नए तरह की बहस छिड़ गयी है. आज़ादी के बहुत पहले से ही राजा राम मोहन राय ने जिस तरह से हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों में से एक बाल विवाह को रोकने के सम्बन्ध में प्रयास शुरू करते हुए समाज को जागरूक करने का काम शुरू किया था उसके बाद आज भी सरकारी प्रयासों के बाद भी देश से इस कुरीति को समाप्त करने में सफलता मिलती नहीं दिख रही है और ऐसा भी नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में कोई प्रयास नहीं करती हैं पर संभवतः उनके ये प्रयास जिस स्तर पर होने चाहिए उनमें ही कहीं बड़ी कमी है. देश में हर मसले को जिस तरह से राजनीति से जोड़कर देखने में लोग माहिर हैं उसमें कोई भी अच्छा प्रयास आज तक सफल नहीं हो पाया है इसलिए इसे समाज सुधार के साथ सामाजिक बुराई के रूप में भी देखने की आवश्यकता है.
                                                       इस तरह एक प्रयास को जहाँ आम लोग एक बिना बात का झंझट मान रहे हैं वहीं कार्ड छापने वाले लोगों का कहना है कि इससे उनके लिए मुसीबतें और भी बढ़ने वाली हैं क्योंकि कार्ड छापने वाले पर ही पुलिस और प्रशासन अपना दबाव बनाने का काम करने वाले हैं. इस स्थान पर यह विचार किया जाना चाहिए कि आखिर किस तरह के सामाजिक आर्थिक या अन्य तरह के प्रोत्साहन देकर बाल विवाह को रोका जा सकता है और विशेषकर आदिवासी महिलाओं को कम उम्र में शादी होने के कारण उन कष्टों को याद करने के लिए कहा जाना चाहिए जिनसे वे खुद ही गुज़री हैं और उनसे यह सवाल भी पूछे जाने चाहिए कि क्या वे अपनी बच्चियों को भी वही सारे कष्ट देना चाहती हैं ? समाज में कमी बताकर सुधार नहीं किया जा सकता है पर जिन लोगों ने उन कमियों के कारण विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है यदि उनको इस तरह के कार्यक्रमों में शामिल कर लिया जाये तो सुधार की गुंजाईश बढ़ जाती है.
                                                     सरकारों को भी दंडात्मक कार्यवाही करने के स्थान पर प्रोत्साहन की तरफ भी बढ़ना चाहिए क्योंकि कानून कड़े कर देने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और आम लोगों की समस्याएं बढ़ जाया करती हैं. आदिवासी या अन्य समूहों के साथ समाज के सभी वर्गों की लड़कियों के विवाह को १८ वर्ष तक रोकने पर उनके परिवार को विशेष सुविधाएँ दी जानी चाहिए और उन लड़कियों की शादी के लिए सरकार को एक अलग से फंड भी बनाना चाहिए जिसके माध्यम से उनकी शादी के समय एक मुश्त धनराशि उनके परिवारों को दी जा सके. इससे जहाँ धन की कमी के कारण होने वाले बेमेल और बाल विवाहों को रोका जा सकेगा वहीं समाज में इससे प्रभावित होने वाले लोगों के जीवन स्तर में आने वाले सुधार को एक पैमाने के रूप में इस्तेमाल भी किया जा सकेगा. राज्य सरकारें इन लड़कियों के लिए १८ वर्ष की उम्र तक हर तरह के खर्चों की व्यवस्था भी कर सकती हैं जिनमें नि:शुल्क शिक्षा और प्रोत्साहन राशि भी हो सकती है. अब सरकारों को मानवीय चेहरे के साथ समाज सुधार की तरफ बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि कठोर नियमों से भी इसे रोका नहीं जा सकता है.   
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