मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 4 जून 2014

गोपीनाथ मुंडे की मौत- सड़क यातायात पर प्रश्न चिन्ह

                                                  एक बार फिर से सड़क दुर्घटना में केंद्रीय मंत्री और महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे की असामयिक मौत ने पूरे देश को हिलाकर रखा दिया है क्योंकि हाल के कई वर्षों में जिस तेज़ी के साथ सड़क सुरक्षा पर ध्यान दिया जाने लगा है उसके बाद भी देश में इस तरह की घटनाओं को रोकने में सफलता नहीं मिल पा रही है. आज भी किसी बड़ी हस्ती के दुर्घटना का शिकार होने पर ही सरकार और लोगों का ध्यान इस तरफ जाता है जबकि देश में हर रोज़ यातायात के नियमों की अवहेलना करने के कारण कितने ही लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं इसकी कोई गणना सही तरह से नहीं की जा सकती है. दिल्ली जैसे जगह पर जब सुबह का यातायात इतना कम होता है तो इस तरह की दुर्घटना में एक बात साबित हो जाती है कि दोनों या कोई एक चालक अपनी गति से बहुत तेज़ चल रहा था या संभवतः दोनों ही लापरवाही से गाड़ी चला रहे थे जिससे ऐसी दुर्घटना हो गयी.
                                                   दुर्घटनाओं की लम्बी फेहरिस्त में जिस तरह से एक बड़ा नाम और जुड़ गया उसके बाद भी हम सड़क पर चलते समय अपने वाहन की गति के साथ नियमों के उल्लंघन करने की प्रवृत्ति को दूर नहीं कर पा रहे हैं. वैसे तो दुर्घटना कभी भी और कहीं भी हो सकती है पर जिस तरह से हम नागरिक अपनी सुरक्षा पर गति को प्राथमिकता देने लगे हैं और आज के समय में भारतीय गाड़ियों की रफ़्तार रोज़ ही बढ़ती जा रही है तो इस तरह सोचना और भी आवश्यक हो जाता है. गति के साथ गाड़ी के नियंत्रण पर भी यदि ध्यान दिया जाये तो संभवतः दुर्घटनाओं की संख्या और तीव्रता दोनों को ही काम किया जा सकता है पर आज भी हमारे लिए नयी गाड़ियों की रफ़्तार अधिक महत्वपूर्ण है भले ही उसका कितना ही बुरा असर समाज और पीड़ितों पर पड़ता रहे. किसी भी बड़े नेता के इस तरह से मौत के मुंह में जाने पर हर बार षड़यंत्र की बातें सामने आती है तो इस बार भी यही सब सुनने को मिल रहा है पर बिना सोचे समझे और सही जांच किये कोई इस तरह के आरोप कैसे लगा सकता है जब सरकार खुद ही जांच के पक्ष में अपनी सहमति दे चुकी है.
                                                  अब भारतीय सड़क यातायात के बारे में एक बार फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक जनता अपनी तरफ से नियमों और गतिसीमा का अनुपालन नहीं करेगी तब तक किसी भी परिस्थिति में कोई भी कानून नागरिकों को सुरक्षित करने का काम नहीं कर पायेगा. ऐसा भी नहीं है कि हर व्यक्ति कानून को तोड़ता है पर जब दुर्घटना होती है तो किसी एक पक्ष की ही गलती होती है पर दोनों को ही उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इस मामले में अनावश्यक राजनीति करने के स्थान पर सरकारी स्तर पर जो भी कदम उठाये जा सकते हैं उनको उठाने के साथ ही जनता को भी जागरूक किये जाने की और भी अधिक आवश्यकता है क्योंकि जब तक सभी पक्ष अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए आगे नहीं आयेंगें तब तक किसी भी तरह से हमारी सड़कें सुरक्षित नहीं हो पाएंगीं. अब हमें गति पर सुरक्षा को प्राथमिकता देना सीखना ही होगा तभी जाकर सड़कों पर चलने वाले लोग और भी निश्चिन्त होकर अपने गंतव्य तक पहुँचने की तरफ जा पायेंगें. इस मामले में आज भी सरकार के स्थान पर आम जनता की अधिक भागीदारी और जागरूकता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.

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