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गुरुवार, 5 जून 2014

यूपी - सुशासन और छोटे राज्य

                                           यूपी में बढे हुए अपराधों के चलते भाजपा और केंद्र सरकार एक बार फिर से २०११ में मायावती सरकार द्वारा भेजे गए राज्य विभाजन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तैयार हो सकते हैं जिससे आने वाले समय एमन यूपी में एक नयी तरह की राजनीति सामने आ सकती है. आज जिस तरह से यूपी को हर बात में मीडिया द्वारा बहुत ही अजी तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है वह केवल राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक मार्ग हो सकता है पर उसके माध्यम से जनता को किसी भी तरह से राहत नहीं दी जा सकती है. राज्य के विभाजन के स्थान यदि देश के बेहतर विकास के लिए छोटे राज्यों का कोई पैमाना बने जाए उससे अच्छा यही होगा कि देश में सभी राज्यों के विकास और संसाधनों की स्थिति को देखते हुए दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की जाए जो पूरे देश में राजनैतिक और प्रशासनिक पहलुओं पर विचार करते हुए आगे बढ़ने के बारे में सोचना शुरू कर सके. वैसे लोकसभा चुनावों में प्रदेश में भाजपा के प्रदर्शन को देखते हुए अगली बार यूपी की सत्ता तक पहुँचने की आशा भी भाजपा को दिखने लगी है तो संभवतः वह इस दिशा में अभी कोई कदम न उठाना चाहे.
                                           छोटे राज्यों से जहाँ विकास की गति को बढ़ाने में सहायता मिलने वाली है वहीं संसाधनों के मुद्दे पर नए बनने वाले कई राज्य काफी पिछड़ जाने वाले भी हैं क्योंकि यूपी या देश के अन्य हिस्सों में अभी तक जिस तरह से विकास को किया गया है उससे पूरे राज्य या देश की स्थिति में कोई आमूल चूल परिवर्तन नहीं आ पाया है तो उस स्थिति में अब केंद्र सरकार के सामने सबसे बड़ी अड़चन इसी बात को लेकर आने वाली है कि राजनैतिक लाभ के लिए विभाजन का समर्थन किया जाये या फिर बेहतर प्रशासन को आधार मानकर इस दिशा में आगे बढ़ा जाये ? यूपी से जिस तरह से भाजपा को इस बार केंद्र में स्पष्ट बहुमत लायक निर्णायक बढ़त मिली है उसके बाद भाजपा तो काम से काम इस विचार को तेज़ी से आगे बढ़ाना नहीं चाहेगी क्योंकि इससे उसकी एक जैसे प्रदर्शन पर असर पड़ने की संभावनाएं भी बन सकती हैं. हाँ यदि २०१७ के यूपी विधान सभा चुनावों में उसे आशातीत सफलता नहीं मिली तो वह यूपी के बंटवारे पर गंभीरता से सोचना शुरू कर सकती है.
                                          छोटे राज्य राष्ट्रीय पार्टियों के लिए कोई बहुत बड़े अवसर के रूप में सामने आये हों ऐसा भी नहीं क्योंकि जहाँ पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव था वहां आज भी राष्ट्रीय दल संघर्षरत ही दिखाई देते हैं और इससे सबसे बड़ा नुक्सान यही होता है कि क्षेत्रीय सोच राष्ट्रीय परिदृश्य को देखने लायक दृष्टि पर पर्दा डाल दिया करती है. अच्छा हो कि देश में राजनैतिक और प्रशासनिक सुधारों को तेज़ी से लागू किया जाये और आने वाले समय के लिए कुछ ऐसा भी किया जाये कि जनता को यह लगे कि सरकारें उनके लिए ही बनायीं जाती हैं. आर्थिक रूप से असमान बंटवारे वाले छोटे राज्य पूरे देश की अर्थ व्यवस्था पर ही कुप्रभाव डालने वाले हैं और किसी भी तरह के राजनैतिक रूप से अस्थिर माहौल में छोटे राज्यों में भारी भरकम मंत्रिमंडल भी दिखाई दे सकते हैं जो पूरी तरह से देश और राज्य के संसाधनों पर डाके के समान ही होते हैं. अतीत में राजनैतिक अस्थिरता का खामियाज़ा बड़े राज्य यूपी और छोटे राज्य झारखण्ड ने झेला भी है. अब समय आ गया है कि राजनैतिक रूप से अलग हटकर पूरे देश के बेहतर प्रशासनिक और राजनैतिक नियंत्रण के लिए सोचना शुरू किया जाये.
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