मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 6 जून 2014

हिंदी और पीएम का प्रोटोकॉल

                                                                       पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से राजनयिकों और राष्ट्राध्यक्षों से मिलने के लिए आधिकारिक रूप से हिंदी को अपनी भाषा के रूप में इस्तेमाल करने का निर्णय किया वह सराहनीय ही है क्योंकि अभी तक देश के नेताओं ने जिस भी भाषा में उन्हें उचित लगा अन्य देशों के प्रतिनिधियों से बात करने के मामले में उदारता बरतते हुए इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था. अब मोदी का यह निर्णय संभवतः उन अंग्रेजी पसंद नेताओं और अन्य अधिकारियों को हिंदी के बारे में उनकी सोच बदलने का अवसर दे सके. वैसे मोदी अंग्रेजी अच्छी तरह से बोल और समझ लेते हैं पर उन्होंने यह निर्णय भी किया है कि उनकी तरफ से सारी बातचीत हिंदी में ही होगी भले सामने वाला अंग्रेजी में बात करने में सक्षम ही क्यों न हो. इस तरह के क़दमों से जहाँ लम्बे समय से भारतीय भाषाओँ के गौरव को लौटने की बात की जाती थी उसमें भी कुछ सुधार देखने को मिलने वाला है. अभी तक पीवी नरसिंह राव ही ऐसे पीएम हुए हैं जिन्हें देशी विदेशी लगभग १० भाषाओं का ज्ञान था और वे अपनी इस क्षमता से सामने वाले को विस्मृत कर दिया करते थे. 
                                                           भाषाई मुद्दे देश में हमेशा से ही संवेदनशील रहा है और आने वाले समय में केवल हिंदी की बात करने से जहाँ अंतर्राष्ट्रीय मंचों से भारत की आधिकारिक भाषा को महत्वपूर्ण स्थान मिलने की सम्भावना है वहीं देश में भाषा के नाम पर की जाने वाली राजनीति को नए विवाद खड़े करने के अवसर भी मिलने वाले हैं. पीएम के रूप में मोदी का अंतर्राष्ट्रीय मंचों और लोगों से बात करने में हिंदी को सभी भाषाओं पर प्राथमिकता देना अच्छा है पर एक कदम और आगे बढ़कर उन्हें देश भर में भारतीय भाषाओँ के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए भी आवश्यक कदम उठाने ही होंगें क्योंकि देश की घटिया राजनीति कब किस तरह से भाषा की पुरानी राजनीति को फिर से ज़िंदा करने की तरफ लौट जाये यह किसी को नहीं पता है. मानव संसाधन विभाग को सपा प्रमुख मुलायम सिंह की स्पष्ट भाषा नीति के बारे में उनके प्रयासों को आगे बढ़ने की तरफ भी सोचना चाहिए.
                                                 यूपी में पहली बार सत्ता में आने पर मुलायम सिंह ने जिस तरह से प्रदेश के विश्वविद्यालयों में भारतीय भाषाओं को पहली बार पढाने की गंभीरता को सोचते हुए नीति बनायीं थी उस पर संभवतः अन्य सरकारों ने उतनी तेज़ी से काम नहीं किया. यदि देश के अहिन्दी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रसार को बढ़ाना है तो उसके लिए सही कदम तो यही होगा कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी अन्य भारतीय भाषाओं को पढ़ाने की उचित व्यवस्था भी की जाये. आज देश-विदेश में जिस तरह से संचार के विभिन्न माध्यमों के द्वारा हिंदी बड़े क्षेत्र तक फैलने में लगी हुई है तो उस स्थिति में सरकारी स्तर पर केवल पीएम के प्रयासरत होने से कुछ ख़ास हासिल नहीं होने वाला है. इसके लिए सभी भारतीय भाषाओं को पूरे देश में उचित सम्मान दिए जाने की आवश्यकता भी है. पीएम ने हिंदी के गौरव को दुनिया में आगे बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ा ही दिया है अब यह देश के सभी राज्यों और नेताओं पर निर्भर करता है कि वे आने वाले समय में इस कदम की केवल तारीफ करने वाले हैं या भारतीय भाषाओं के लिए धरातल पर भी वास्तव में कुछ करने वाले है.
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