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शनिवार, 7 जून 2014

असोम और शांति

                                                                असोम के कार्बी आंग्लांग ज़िले में कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स के हमले में जिस तरह से पुलिस अधीक्षक नित्या नन्द गोस्वामी शहीद हुए हैं उससे यही लगता है कि २०१० में शुरू किये गए इस चरमपंथी समूह से हमला करने के लिए घातक हथियारों और लोगों को प्रशिक्षित करने का पूरा इंतज़ाम कर लिया है. असोम एक समय में बहुत ही अशांत क्षेत्र भी रह चुका है तो इस परिस्थिति में किसी भी तरह से इस तरह की घटनाओं को हलके में लेने से जहाँ के तरफ पुलिस और प्रशासन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं वहीं दूसरी तरफ इनके हौसले बढ़ते हुए भी दिखाई दे सकते हैं. अभी तक जहाँ पर भी पुलिस बल पर घात लगाकर हमले हुए हैं या आमने सामने मुठभेड़ में कोई अधिकारी या जवान शहीद हुए हैं तो उसमें कहीं न कहीं से रणनीतिक चूक अवश्य ही दिखाई देती है क्योंकि ऐसी परिस्थिति में आतंकी इन बलों को अपने जाल में उलझाकर अपने काम को अंजाम दिया करते हैं.
                                                                इस घटना में जिस तरह से आतंकियों को खोज रहे पुलिस दल ने अपने को तीन हिस्सों में बांटकर हमला करने की योजना बनाई संभवतः वही इतनी घातक सिद्ध हुई है क्योंकि यदि सभी साथ में रहते तो संभवतः आतंकियों पर वे भारी भी पड़ सकते थे पर इस मामले में पुलिस दल की योजना पूरी तरह से सफल नहीं हो पायी और आतंकियों ने एक साहसी अधिकारी और उसके सुरक्षा कर्मी को अपना शिकार बना ही लिया. इस तरह के मामलों में कई बार ऐसा हो चुका है कि कहीं पर नक्सलियों या आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाने वाले दल इस तरह के उनके ही जाल में फंस जाया करते हैं और उन्हें भारी नुकसान भी उठाना पड़ जाता है. आखिर क्या कारण है कि अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के द्वारा इस तरह की चूक आम तौर पर हुआ करती है और उसका खामियाज़ा पुलिस बल के मनोबल पर पड़ने के रूप में सामने आता है.
                                                                  जो कुछ हो चुका है उस पर कुछ नहीं किया जा सकता है पर आने वाले समय के लिए किसी भी आतंकियों की खोज और धर पकड़ में जिस तरह की रणनीति की आवश्यकता होती है वह बनाये जाने पर अवश्य ही ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि जब तक इस मसले पर गंभीरता से एक रणनीति के तहत काम नहीं किया जाएगा तब तक ऐसी घटनाओं को रोकने में पूरी तरह से सफलता नहीं मिलने वाली है. आज देश के जवानों और सुरक्षा बलों को कश्मीर के आतंकियों से लोहा ले रहे सैनिकों और जम्मू कश्मीर की पुलिस की तरह ट्रेनिंग की बहुत आवश्यकता है क्योंकि वहां पर आसन्न खतरों से निपटने के लिए सुरक्षा बल हर समय अतिरिक्त चौकसी बरतते रहते हैं जिससे किसी भी मुठभेड़ में नुकसान को कम ही रखने में सफलता मिल जाया करती है, नीतियां हमेशा ही कारगर रहें ऐसा भी नहीं होता है फिर भी किसी जगह विशेष रूप से छापा आदि डालने से पहले उसके लिए दोहरी तैयारी किये जाने की आवश्यकता भी है क्योंकि थोड़ी सी छूट इस तरह की घटनाओं को सामने लेकर रख देती है.          
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