मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 8 जून 2014

पुणे का संकट

                                                             छोटी सी बात किस तरह से बहुत बड़ी बन जाया करती है इसका सबसे बड़ा उदाहरण पुणे में मोहसिन शेख की निर्मम हत्या के बाद समझा जा सकता है. जिस तरह से एक फेसबुक पोस्ट को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि अपने को शिवाजी महराज और बाल ठाकरे के समर्थक बताने वाले यह भूल गए कि किसी एक की गलती की सजा पूरे समुदाय से कैसे ली जा सकती है ? नफरत की आग ने उन लोगों को ऐसा कदम उठाने की तरफ बढ़ा दिया जिसके बाद अब उनका भविष्य तो अँधेरे में चला ही गया पर एक परिवार का सहारा भी हमेशा के लिए ख़त्म हो गया है. मोहसिन शेख की हत्या को किसी भी मामले में कम करके नहीं आँका जाना चाहिए क्योंकि यही वे तत्व होते हैं जो ऐसी हरकत कर सबूतों के अभाव में या फिर कानून को ठेंगा दिखाते हुए आसानी से बच निकलते हैं जबकि इनके लिए कठोर दंड का प्रावधान और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुक़दमा चलाने की अनिवार्यता होनी चाहिए.
                                                             इस तरह के किसी भी मामले को जितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए अभी तक उस पर काम नहीं हो पाया है क्योंकि अभी तक अधिकारी अपने अनुसार केवल रिपोर्ट्स भेजकर सरकार का पक्ष रख दिया करते थे पर इस बार महाराष्ट्र सरकार की रिपोर्ट से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असहमति जताते हुए यह पूछ लिया है कि यदि यह मामला सांप्रदायिक हिंसा का है तो अभी तक मोहसिन शेख के परिवार को आर्थिक सहायता क्यों नहीं दी गयी है इससे जहाँ अब महाराष्ट्र सरकार के लिए इस मसले पर काम करना आसान हो गया है वहीं सरकारी बाबुओं की संवेदनहीनता भी सामने आ गयी है. अच्छा ही है कि इस मामले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से और जानकारी मांग ली है और आने वाले समय में पूरे देश एक बाबुओं और सरकारों के लिए एक अघोषित सन्देश भी जारी है कि केवल सतही रिपोर्ट्स नहीं स्वीकार की जायेंगीं.
                                                     सांप्रदायिक मोर्चे पर यदि केंद्र सरकार एक बार कड़ा रुख अपना लेती है तो आने वाले समय में इस पर की जाने वाली राजनीति पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा और विभिन्न राज्य सरकारों को और भी अधिक ज़िम्मेदारी के साथ काम करने की नसीहत भी मिल ही जाएगी. राजनैतिक लाभ के लिए सभी दल अपने अनुसार परिस्थितियों को अपनी तरफ घुमाने का प्रयास किया ही करते हैं पर अब यह सब अधिक समय तक नहीं चलने वाला है. अच्छा हो कि इस तरह की रिपोर्ट्स मांगने के लिए केंद्र सरकार एक पोर्टल भी बनाये जिसमें इस तरह की किसी भी घटना के बारे में राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक कर दिया जाये कि वे अपने आधिकारिक रुख को यहाँ पर लोड करें जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय देख सके और अन्य राज्यों के साथ पूरे मामले को आवश्यक पड़ने पर साझा भी कर सके जिससे आने वाले समय में ऐसी घटनाओं को सख्ती से रोका जा सके. जब तक राजनैतिक लाभ के लिए सभी दलों द्वारा इन घटनाओं का दुरूपयोग करना बंद नहीं होता है तब तक कोई भी सरकार तेज़ी से काम नहीं कर सकती है.                                                     
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