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सोमवार, 24 नवंबर 2014

चीन पर दोहरे बयान

                                               केंद्र सरकार के दो प्रभावशाली मंत्री राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े चीनी घुसपैठ के मसले पर किस तरह से दो तरह की बातें कर रहे हैं यह आज सभी को अचम्भे में डालने वाला काम ही अधिक लगता है. विपक्ष में रहते हुए भाजपा के निशाने पर जिस तरह से चीनी घुसपैठ और पाक की गोलीबारी को बड़ा मुद्दा बताते हुए उस पर वोट भी मांगे गए थे तो अब भाजपा की सरकार बनने के बाद ही जिस तरह से उसके नेताओं के सुरों में वास्तविकता के अनुसार बदलाव देखा जा रहा है वह उसके दोहरे चरित्र को ही प्रदर्शित करता है. आज सत्ता में होने पर भाजपा का यह मानना है कि ये घुसपैठ की समस्याएं स्थानीय हैं और इसका कारण सीमा का स्पष्ट रूप से निर्धारण न होना भी है. तो क्या भाजपा को ज़िम्मेदार दल होने के नाते इस बात को पहले नहीं समझना चाहिए था और इस मुद्दे पर किसी तरह की राजनीति से बचना भी चाहिए था पर उसने मुद्दों पर जनता को भटका कर कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने से अधिक कुछ भी नहीं किया.
                                         आज जब भी चुनाव बिसात बिछी होती है तो भाजपा वहां पर सीमा की समस्या को उठाती है और साथ ही यह भी कहने से नहीं चूकती है कि इसके लिए कांग्रेस ही ज़िम्मेदार है पर जब किसी गंभीर मंच पर इस पर बात की जाती है तो भाजपा कांग्रेस का ही दूसरा संस्करण नज़र आने लगती है. लेह में चुनावी सभा में राजनाथ सिंह कहते हैं कि सीमा पर घुसपैठ दोनों देशों के संबंधों के लिए अच्छी नहीं है और चुनावों को देखते हुए वे काफी कुछ बोल जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सुलझे हुए रक्षा मंत्री अपनी बात कहते हुए कहते हैं कि सीमा पर घुसपैठ इतना बड़ा मुद्दा नहीं है कि उस पर वे चर्चा भी करें जिससे भाजपा की राजनीति का स्पष्ट रूप से खुलासा होता है. आज उसे जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाने के लिए कोशिशें करनी पड़ रही हैं तो जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख में उसके सुर राजनीति के अनुसार बदलते ही रहते हैं.
                                         विपक्ष में बैठकर हर बात पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की नीति कुछ हद तक लाभकारी हो सकती है पर जब भी उसके लिए सत्ता के दरवाज़े खुलते हैं तो उसके पास कहने और अपने पुराने बयानों के बचाव के लिए बहुत कुछ शेष नहीं रह जाता है. इस बात से कांग्रेस भी अनभिज्ञ नहीं है कि सरकार चलाने में किस तरह की समस्याएं सामने आती रहती हैं तो अब उसे भी इन बयानों को भाजपा की तरह मुद्दा बनाये जाने से बचना चाहिए पर भाजपा के दोहरे चरित्र को जनता के सामने लाने के अपने अधिकार का उपयोग भी करना चाहिए पर उसे भाजपा की तरह किसी भी तरह की अनावश्यक राजनीति को बीच में नहीं लाना चाहिए. देश के सामने आने वाली चुनौतियों से बारे में किसी भी सरकार द्वारा जो कुछ भी सोचा जाता है वह परिस्थिति के अनुसार सही ही होता है पर अभी भी देश के नेताओं को समस्याओं और राजनीति में वास्तविक अंतर करना नहीं आ पाया है और आज़ादी के सातवें दशक में भी यदि हमारे नेता इस तरह से सोचते हैं तो यह उनकी सोच का ही परिचायक है.
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