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मंगलवार, 25 नवंबर 2014

पीएम की पत्नी जशोदाबेन की सुरक्षा

                                        पीएम नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदाबेन ने जिस तरह से मेहसाना में अपनी सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्था के बारे में तीन पेज की आरटीआई दाखिल की है उससे उनकी सुरक्षा में चल रही गंभीर चूक की तरफ पूरे देश का ध्यान जाना स्वाभाविक ही है. यह सही है कि लम्बे समय से वे पीएम के साथ नहीं रह रही हैं पर जिस तरह से आम चुनावों से पहले दाखिल किये गए शपथ पत्र में कानूनी बाध्यता के चलते स्वयं नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था तो अब उनके पीएंम बन जाने के बाद केंद्र और राज्य सरकार की यह ज़िम्मेदारी तो बनती है है कि उन्हें उचित और मज़बूत सुरक्षा कवर दिया जाये जिससे अवांक्षित तत्व उन पर किसी तरह की कोई कार्यवाही न करने पाएं. इस मुद्दे पर किसी भी तरह की कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यदि जशोदाबेन के साथ कोई भी दुर्घटना होती है तो पूरे देश के लिए यह बहुत ही शर्मनाक और चिंताजनक बात हो जाएगी इसलिए बिना किसी भी तरह की अनावश्यक सोच के केंद्र और राज्य सरकार को इस बारे में सोचना ही होगा और उन्हें यथोचित सुरक्षा भी देनी होगी.
                                        जहाँ तक पीएम और उनके परिवार को सुरक्षा दिए जाने का प्रश्न है तो यह काम केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन अाता है और केंद्रीय गृह मंत्री इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं क्योंकि जिस तरह से उन्होंने बिना किसी शोर शराबे के १० लोगों को जेड सुरक्षा प्रदान की है उसके बाद उनसे यह सवाल तो बनता ही है कि क्या केवल जशोदाबेन के कहने भर से ही उनकी सुरक्षा वापस लिया जाना गृह मंत्रालय का सही निर्णय था ? आज भले ही पीएम का जशोदाबेन के साथ कोई संपर्क नहीं हो पर क्या उनसे जुडी सुरक्षा सम्बन्धी चिंताओं को नकारा जा सकता है वह भी तब जब देश के दुश्मन हर तरह से देश को नीचे दिखाने की कोशिशों में ही लगे हुए हैं ? ईश्वर न करे पर यदि कोई अवांक्षिित घटना या सुरक्षा सम्बन्धी समस्या जशोदाबेन के सामने आ जाती है तो भारत सरकार के पास उससे निपटने के लिए क्या विकल्प शेष बचने वाले हैं और उस स्थिति में केंद्रीय गृह मंत्रालय का रुख क्या होगा ?
                                   इस तरह की किसी भी समस्या के सम्बन्ध में बात करने से पहले मोदी और उनकी सरकार पर प्रश्न चिन्ह भी लगता है क्योंकि जशोदाबेन का यह कहना कि उन्होंने इस बारे में पीएम को दिल्ली कई पत्र लिखे पर उनका कोई जवाब नहीं मिला है तो मजबूर होकर वे यह कदम उठा रही हैं इससे क्या खुद पीएम और सरकार की संवेदनहीनता का ही पता नहीं चलता है ? पीएम आज खुद देश के हर नागरिक से मन की बात तो करना चाहते हैं पर पत्नी की हैसियत से न सही पर एक नागरिक की हैसियत से जशोदाबेन की बात तो उन्हें सुननी ही चाहिए और वह भी जब उनकी कोई महत्वकांक्षा सामने नहीं आ रही है और वे केवल सुरक्षा सम्बन्धी मसले पर ही जानकारी चाह रही हैं. ख़बरों के अनुसार उनकी पुलिस थाने में पुलिसकर्मियों से बहस भी हुई थी जबकि गुजरात में भी मोदी की चरण पादुकाएं लेकर आनंदीबेन सरकार चला रही हैं यदि यह घटना किसी अन्य राज्य में होती तो भी क्या भाजपा को इसी तरह से सांप सूंघ जाता ? फिलहाल इस मुद्दे पर राजनाथ सिंह को तत्काल निर्णय लेते हुए उन्हें पीएम की पत्नी के रूप में मिलने वाली सुरक्षा अविलम्ब प्रदान करनी चाहिए.
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