मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 25 मई 2015

जल संकट और भारत

                                             देश में भूमिगत जल दोहन के बारे में स्पष्ट नीति न होने से जहाँ आने वाले समय में गंभीर जल संकट के बारे में चेतावनियां जारी की जा रही हैं वहीं आज भी केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्ययोजना अभी तक नहीं बनायीं जा सकी है. जल प्रबंधन के क्षेत्र में काम करने वाली ईए वाटर कंपनी द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में इस बात की आशंका जताई गयी है कि २०२५ तक भारत में गंभीर जल संकट हो सकता है और यदि इसके लिए ठोस योजनाएं नहीं बनायीं गयीं तो आने वाले समय में विदेशी कंपनियां बड़े पूँजी निवेश के साथ ही लाभ कमाने की दिशा में काम करना शुरू कर सकती हैं. एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में १३ अरब डॉलर के पूँजी निवेश के साथ भारत इस क्षेत्र में भी एक बड़ा बाज़ार बनकर उभरने वाला है जिसके लिए कनाडा, इस्राइल, जर्मनी, इटली, अमेरिका और चीन जैसे देश मोटी कमाई करने की जुगत में है। देश के जल संकट में यदि कोई विदेशी कम्पनी बड़ा निवेश कर काम शुरू करती है तो वह देश में रोज़गार बढ़ाने के साथ अपने लाभ की दिशा में भी काम करने वाली है और उस स्थिति में हमारे जल संसाधन भी दूसरों के हाथों में जाते हुए दिखाई देने वाले है.
                                          आज देश में कृषि के साथ हर गांव व् शहर में काज में जल की खपत बढ़ती ही जा रही है पर किसी का ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा है कि आने वाले समय में हम जिस भूमिगत जल का दोहन तेज़ी से कर आज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में लगे हुए हैं उसमें लगातार होने वाली कमी को किस तरह से पूरा किया जायेगा ? देश में भ्रष्टाचार के चलते ही शहरों गांवों और कस्बों में आज तालाब और कुंएं जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल स्रोतों को पाटने का काम तेज़ी से किया जा रहा है और कुछ विभागों की मिलीभगत से आज यह लाभ का सौदा बन चुका है पर इसके दुष्प्रभाव भी अभी से दिखाई देने लगे हैं. देश का कृषि क्षेत्र भी जिस तरह से आज के समय में फसल चक्र पर ध्यान न देने के स्थान पर केवल लाभ पर ही टिक गया है उससे भी भूमिगत जल स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. जिस तेज़ी से भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे की तरफ जा रहा है और हम आज भी इस दिशा में चेत नहीं रहे हैं तो आने वाला समय वास्तव में पूरे देश की स्थिति ख़राब ही करने वाला है क्योंकि हमारे संकट में कोई मदद नहीं करेगा बल्कि सभी लाभ कमाने के लिए ही अपनी योजनाओं को लागू करने वाले हैं.
                                अब समय आ गया है कि इस संकट को भांपते हुए सरकार की तरफ से जनता को जागरूक करने की कोशिशें शुरू की जाएँ वैसे इस दिशा में अभी तक काफी काम शुरू किया जा चुका है पर आज भी आम लोगों की भागीदारी इस तरफ नहीं बढ़ पायी है. इस दशा में किसी भी सरकार के प्रयास केवल जागरूकता तक ही सीमित रह सकते हैं और असली काम तो जनता के हाथों में ही है वह जिस तरह से चाहे अपने भविष्य के लिए जल संसाधनों को बचाये रख सकती है. आम लोगों को वर्षा जल संचयन के बारे में खुद ही जागरूक होना पड़ेगा जिससे हर शहर, गांव और कस्बे में अपने आप ही भूमिगत जल-संचयन और रिचार्ज के बारे में लोगों द्वारा प्रयास शुरू किये जा सकें. प्राचीन काल से चली आ रही खेती की विधि के साथ उसमें निश्चित मात्रा में आधुनिकता का समावेश करना चाहिए जिससे राज्यों की अलग अलग परिस्थितियों के अनुसार लोग इस क्षेत्र में काम कर सकें. शहरों में सरकार को कुछ अनुदान और विभागीय मदद के साथ लोगों को घरों में वर्षा जल के भूगर्भ में भेजने की कोशिश को बढ़ावा देने के बारे में सोचना चाहिए जिससे आने वाले समय में किसी भी तरह से वर्षा के जल को बेकार होने से बचाया जा सके और देश के लिए आसन्न बड़े संकट से नित्प्तने के लिए कुछ प्रयास किये जा सकें.       

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