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मंगलवार, 26 मई 2015

जयललिता और राजनीति

                                                 विभिन्न राजनैतिक कारणों से कई बार कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे जिन पर देश के नेताओं और राजनैतिक दलों को अपना कड़ा रुख दिखाने की आवश्यकता होती है वे पीछे छूट जाया करते हैं और उसके स्थान पर तात्कालिक राजनीति को अधिक महत्व दे दिया जाता है. इस तरह का सबसे ताज़ा उदाहरण जयललिता मामले में देखा जा सकता है जिन पर कभी जनता पार्टी के नेता रहे और अब भाजपा में शामिल सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सबसे पहले आय से अधिक संपत्ति मामले में १९ साल पहले आवाज़ उठाई थी पर आज राजनैतिक दबाव और भाजपा की रणनीतिक मजबूरी के चलते यह मामला पूरी तरह से ठन्डे बस्ते में जाता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि राज्यसभा में मोदी सरकार की कमज़ोर स्थिति उसे ममता और जया जैसे नेताओं के साथ समन्वय बनाने के लिए मजबूर किया करती है. २००३ में डीएमके की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तमिलनाडु से बाहर कर्णाटक में चलाने का आदेश जारी किया था तभी से अब तक यह कर्णाटक में चल रहा था पिछले वर्ष सेशन कोर्ट में जया को सजा सुनाने के बाद उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ा था पर इस वर्ष हाई कोर्ट के द्वारा उन्हें बरी किये जाने से मामला एक बार फिर से तमिलनाडु की राजनीति की दो धुरियों के बीच पहुँच गया है.
                                    अब इस मामले में जया के साथ भाजपा की पूरी नरमी को देखते हुए कांग्रेस सरकार की तरफ से कुछ भी ख़ास किये जाने की संभावनाएं नगण्य ही हैं क्योंकि इन दोनों दलों का यही मानना है कि द्रविड़ दलों के साथ अनावश्यक रूप से उलझना ठीक नहीं है क्योंकि ये आवश्यकता पड़ने पर कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के साथ आते जाते रहते हैं. हाई कोर्ट के फैसले के बाद कर्णाटक सरकार यदि चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है पर अभी तक जिस तरह के संकेत दिखाई दे रहे हैं उनमें यह मुश्किल ही लगता है कि ऐसा कोई कदम सरकार की तरफ से उठाया जायेगा क्योंकि तकनीकी रूप से यह मामला तमिलनाडु का था और कर्णाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इसे अपने यहाँ चला रही थी अब इस मामले में जो मूल पक्ष डीएमके या स्वामी थे यदि चाहें तो मामले को आगे बढ़ाने की तरफ जा सकते हैं. मोदी के भाजपा में प्रभाव के चलते अब स्वामी के लिए यह मुश्किल ही होने वाला है कि वे अपनी इस लड़ाई को आगे सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की कोशिश करें हाँ यदि वे भाजपा से बाहर आना चाहते हैं और उन्हें आज मोदी शाह की भाजपा में कोई पूछ भी नहीं रहा है तो शायद वे खुद ही विद्रोह कर अपने हाथ खोलने का प्रयास करें.
                                                    कर्णाटक सरकार की तरफ से मामला आगे ले जाया जाये या नहीं यह पूरी तरह से राजनैतिक फैसला ही होने वाला है और वर्तमान में अपने राजनैतिक सफर में कमज़ोर साबित हुई कांग्रेस अनावश्यक रूप से इस मामले में अपने हाथ नहीं जलाना चाहेगी क्योंकि यदि इस मौके पर उसकी तरफ से कोई बड़ी पहल हुई तो आने वाले समय में उसके लिए तमिलनाडु में जया की तरफ से किसी गठजोड़ की सम्भावना से भी हाथ धोना पड़ सकता है. फिर जब इस स्थिति में कांग्रेस को कोई तात्कालिक राजनैतिक लाभ नहीं मिल रहा है तो वह क्यों अपने को इसमें उलझाना चाहेगी ? फिलहाल तो भाजपा और मोदी के सामने इस बात का जवाब देने का दबाव अधिक रहने वाला है कि जब वे भ्रष्टाचार के खिलाफ बातें किया करते हैं तो जया मामले में उनकी तरफ से कोई कड़ी प्रतिक्रिया सामने क्यों नहीं आ रही है तथा स्वामी की अब तक की गतिविधियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भाजपा से उनका लगभग मोह भंग हो ही चुका है तो वे अपने को एक बार फिर से सुर्ख़ियों में बनाये रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. वैसे भी राफेल सौदे को देश विरोधी बताते हुए उनकी तरफ से इस निर्णय के खिलाफ कोर्ट जाने की बात पहले भी की जा चुकी है.          
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